एक तरफ, राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस की जीत के लिए दलित मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं, तो वहीं दूसरी ओर, राज्य के एक प्रमुख दलित नेता ने पार्टी छोड़ दी। राहुल गांधी लंबे समय से दलित मतदाताओं को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। इस साल, उन्होंने बिहार के लगभग आधे दर्जन दौरों के दौरान दलित मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन जिस तरह से पूर्व मंत्री और 6 बार के विधायक डॉ. अशोक कुमार राम ने पार्टी छोड़ी और जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए, वह कांग्रेस और राहुल की तैयारियों के लिए एक बड़ा झटका है।
अशोक राम ने कांग्रेस छोड़ने से पहले आरोप लगाया कि पार्टी में दलितों की अनदेखी की जा रही है, जबकि उनका पार्टी के साथ लगभग चार दशकों का जुड़ाव रहा है। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर काम कर चुके अशोक राम पार्टी में अपनी अनदेखी से नाराज बताए जा रहे थे। साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि उनकी बिहार में कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अलावरू से भी नहीं बन रही थी।
डॉ. राम एक बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता बालेश्वर राम भी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। वह 1952 से 1977 तक 7 बार विधायक और सांसद रहे। इतना ही नहीं, उन्हें इंदिरा गांधी की सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया था। अपने पिता की तरह, डॉ. अशोक भी खुद 6 बार विधायक रहे और 2000 में राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री बने। वह समस्तीपुर जिले में पड़ने वाली रिजर्व रोसड़ा विधानसभा सीट से चुनाव जीतते रहे हैं।
चुनाव से ठीक पहले उनका पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि वह दशकों तक कांग्रेस का दलित चेहरा रहे। उन्होंने राज्य में पार्टी के लिए सामाजिक न्याय की धारणा को मजबूत किया। लेकिन दलित मतदाताओं को साधने के चक्कर में, कांग्रेस ने बिहार प्रदेश की कमान अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह राजेश राम को सौंप दी।
बताया जा रहा है कि डॉ. अशोक राम इस फैसले से नाराज थे। वह खुद इस पद पर आना चाहते थे, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो सका। डॉ. राम से पहले बिहार में मंत्री अशोक चौधरी भी कांग्रेस में थे, लेकिन कुछ साल पहले वे जेडीयू में चले गए थे।
राहुल गांधी पिछले कई महीनों से बिहार में दलित मतदाताओं के बीच कांग्रेस के लिए माहौल बनाने में जुटे हुए हैं। फरवरी में, कांग्रेस ने प्रख्यात पासी नेता जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती धूमधाम से मनाई। इस कार्यक्रम में खुद राहुल गांधी भी शामिल हुए। उन्होंने दलित नेता राजेश राम को बिहार प्रदेश का अध्यक्ष बनाया, तो एक अन्य दलित नेता सुशील पासी को बिहार में पार्टी का सह-प्रभारी बनाकर पार्टी को इस बिरादरी का शुभचिंतक बताने की कोशिश की।
इसके अलावा, जून में बिहार दौरे के दौरान, राहुल गांधी माउंटेन मैन दशरथ मांझी के परिजनों से मिलने उनके गांव गए। वहां उन्होंने दशरथ मांझी स्मारक पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, साथ ही उनके बेटे भागीरथ से भी मिले। उनके साथ नारियल पानी भी पिया। तब भागीरथ ने कांग्रेस के नेता से अपने लिए पक्का घर बनवाने की मांग की थी, और राहुल ने इस मांग को पूरा करते हुए उनके परिवार के लिए 4 कमरे वाला पक्का घर बनवा दिया। भागीरथ पहले जनता दल यूनाइटेड में थे, लेकिन अब वह कांग्रेस के साथ आ गए हैं और उन्होंने राहुल से चुनाव लड़ने के लिए टिकट की भी मांग की है।
बिहार में लगभग 19 प्रतिशत आबादी दलितों की है और यह कभी कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक हुआ करता था। लेकिन समय के साथ ये मतदाता छिटकते चले गए। कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और पार्टी 3 दशक से भी अधिक समय से अपने दम पर सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी। अब राहुल गांधी दलित मतदाताओं की नाराजगी दूर करने और उन्हें अपने साथ रखने की कोशिश में लगे हैं।
दलित मतदाताओं की बिहार में अहमियत इस लिहाज से है क्योंकि 243 सीटों वाली विधानसभा में से 38 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए और 2 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। 1990 में कांग्रेस का यहां पर वोट प्रतिशत 24.78 प्रतिशत था जो गिरते-गिरते इकाई में आ गया। राष्ट्रीय जनता दल के साथ पिछले 2 विधानसभा चुनावों में मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी कांग्रेस दहाई के आंकड़े को नहीं छू सकी। 2015 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6.7 था तो 2020 में इसमें मामूली सुधार हुआ और 9.48 प्रतिशत हो गया।
बिहार कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार राम के पार्टी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड में आने के बाद जेडीयू की ओर से दावा किया जा रहा है कि ‘कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है। पार्टी के कई नेता अब भी हमारे संपर्क में बने हुए हैं।’ वहीं कांग्रेस भी अशोक राम के आरोपों पर हमलावर है। कांग्रेस ने जेडीयू में शामिल होने को लेकर उन्हें ‘घोर अवसरवादी’ करार दिया। जबकि डॉ. राम का दावा है कि कांग्रेस से अभी कई और नेता पार्टी छोड़ने वाले हैं।
कांग्रेस डॉ. राम पर मौकापरस्त होने का आरोप लगा रही है तो वह पार्टी पर दलितों की उपेक्षा करने का आरोप लगा रहे हैं। चुनावी मौसम में ऐसे आरोप लगाए जाते रहे हैं, लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को दलितों के बीच पैठ बनाने की कवायद के बीच यह भी ध्यान रखना होगा कि पार्टी में ज्यादा टूट न होने पाए। अगर वे टूट रोक पाने में नाकाम रहे तो दलित मतदाताओं में गलत संदेश जाएगा और उन्हें बिहार में अपनी सियासी जमीन बनाने को लेकर खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।