शोले फिल्म का गब्बर सिंह एक ऐसा यादगार और रहस्यमयी किरदार था जिसकी चर्चा आज भी होती है। उसका खौफ और प्रभाव रावण से कम नहीं था। गब्बर सिंह अब सिनेमा की दुनिया में एक मिथक बन चुका है, विज्ञापनों में इस्तेमाल होता है और किस्से-कहानियों का हिस्सा है। गब्बर सिंह सालों से डर और रोमांच का पर्याय रहा है, दबंगई का प्रतीक रहा है। गब्बर का मतलब निडर, बेखौफ और हठी, जैसे रावण भी हठी था। रामलीला में सबसे ज्यादा रोमांच राम-रावण युद्ध में आता है, उसी तरह शोले देखते समय जिस किरदार का सबसे ज्यादा इंतजार होता है, वह है गब्बर सिंह। जब गब्बर और ठाकुर के बीच हाथापाई होती है तो मानो पैसा वसूल हो जाता है। शोले का असली मजा इन दोनों की दुश्मनी और डायलॉगबाजी में है, जैसे रामलीला में रावण ललकारता है।
गब्बर सिंह रावण की तरह पंडित या विद्वान नहीं था, लेकिन अनपढ़ या अंगूठा छाप भी नहीं था। उसे पढ़ना आता था। रामगढ़ से चेतावनी भरी चिट्ठी को वह पढ़ता है- जिसमें लिखा था- ‘तुम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे।’ गब्बर वह चिट्ठी पढ़कर अपने आदमियों को सुनाता है, बदले की आग से भीतर ही भीतर धधक उठता है और गांव वालों को अंजाम भुगतने की धमकी देता है। हालांकि, गब्बर सिंह कितना पढ़ा-लिखा था, किस कॉलेज या यूनिवर्सिटी से डिग्री ली थी या वह कहां से रामगढ़ के नजदीक चट्टानी इलाके में आकर बस गया था, यह किसी को नहीं पता, लेकिन उसका खौफ पचास-पचास मील दूर के गांवों तक था और उसके नाम पर पुलिस ने पचास हजार का इनाम घोषित कर रखा था।
अगर आज से पचास साल पहले 1975 में रिलीज हुई फिल्म में किसी किरदार ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं तो वो गब्बर सिंह ही था। इस किरदार को निभाने वाले अमजद खान के लिए मानो लॉटरी ही निकल पड़ी। शोले के हिट होते ही अमजद खान को कई ऑफर मिले और उन्होंने कई हिट फिल्में दीं। सत्यजित राय जैसे फिल्मकार ने भी उनकी प्रतिभा को पहचाना और शतरंज के खिलाड़ी में उन्हें रोल दिया। पचास साल से गब्बर और ठाकुर की दुश्मनी की चिंगारी आज तक बरकरार है। शोले फिल्म की कहानी तो तीन-सवा तीन घंटे में खत्म हो जाती है, लेकिन इस फिल्म पर चर्चा कभी खत्म नहीं होती। रिलीज के पचास साल पूरे होने पर इस फिल्म की कहानी, किरदार और डायलॉग एक बार फिर से बहस का विषय हैं।