22 January 2019
कांग्रेस को तीन राज्यों मेें मिली जीत 2019 में बदलेगी हार में
कर्नाटक कांग्रेस के चार विधायक अभी भी कांग्रेस नेतृत्व के पहुंच के बाहर हैं, चाहे वे मुंबई में हों या और कहीं।
सिद्धारमैया ने कांग्रेस विधायकों की बैठक दो–तीन दिन पूर्व बुलाई थी। अब पुन: कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई गई है। इससे स्पष्ट है कि आज नहीं तो कल कर्नाटक कांग्रेस के हाथ से फिसलने वाला है ।
3 राज्यों में मिली जीत से कांग्रेस ने देश की सियासत में जोरदार वापसी की है. लेकिन कर्नाटक का सियासी ड्रामा कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मुश्किल खड़ी कर सकता है. कांग्रेस के भीतर ही उठते विरोध के सुर सिर्फ कर्नाटक में नहीं हैं बल्कि उड़ीसा में भी तब दिखाई दिए जब कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने दी धमकी– बोले : ऐसा खुलासा करूंगा कि मुंह नहीं दिखा पाएंगे राहुल गांधी। यह समाचार इसी अंक के प्रथम पृष्ठ में प्रकाशित है।
मध्यप्रदेश में कांगे्रस अल्पमत में रहते हुए भी सपा–बसपा और निदर्लिय विधायकों की बदौलत सत्ता सुख भोग रही है। चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात होने ही वाली है।
१० दिनों के अंदर वहॉ पर चार भाजपा नेताओं की निर्मम हत्याएं हो चुकी है। ये हत्याएं १९८४ का स्मरण करा रही हैं। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव प्रचार के समय कमलनाथ का जो वीडियो वायरल हो रहा था उसकी भी पुन: गूंज इन हत्याओं से सुनाई दे रही है।
कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को १९८४ सिक्ख नरसंहार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा दिलाने वाले मुकदमा लडऩे वाले एड्व्होकेट फुल्का ने यह अपना निश्चय दोहराया है कि उक्त सिक्ख नरसंहार के आरोपी कमलनाथ को जब तक वे जेल नहीं पहुंचा देंगे तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे।
इस वीडियो में कमलनाथ मुस्लिम समुदाय के लोगों से बात करते नजर आ रहे हैं। जिसमें वो कह रहे हैं–
‘मैं तो छिंदवाड़ा की बात करूं, मुझे तो लोग आ के बता देते हैं। उनके आरएसएस, क्योंकि नागपुर से जुड़ा हुआ है। वहां तो उनके लिए सुबह आओ, रात को चले जाओ और बड़ा ही आसान है। वो उनका एक ही स्लोगन है। अगर हिंदू को वोट देना है तो हिंदू शेर मोदी को वोट दो। अगर मुस्लिम को वोट देना है तो कांग्रेस को वोट दो। केवल दो लाइन, और कोई पाठ पढ़ाने नहीं जाते। ये इनकी रणनीति है और इसमें आप सबको बड़ा सतर्क रहना पड़ेगा। आपको उलझाने की कोशिश करेंगे। हम निपट लेंगे इनसे बाद में पर मतदान के दिन तक आपको सबकुछ सहना पड़ेगा।Ó
उक्त सब बातों से स्पष्ट है कि दस दिनों में जो चार हत्याएं हुई हैं वे आदतन और बदले की भावना से हुई हैं। यदि इसी प्रकार की हरकतें जारी रही तो मध्यप्रदेश में भी लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस का उसी प्रकार से सफाया होगा जिस प्रकार से २०१४ में हुआ था।
कांगे्रस द्वारा ही कांग्रेस के विधायकों को रिसोर्ट में बंधक बनाया गया है। इन बंधक बनाए गये विधायकों के बीच हुई मारपीट संकेत दे रही है कि सिद्धारमैया के नेतृत्व में विधायकों के बीच सबकुछ सामान्य नहीं है. कहीं तो कुछ तो गड़बड़ है. क्या ये डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच सबकुछ सामान्य है? आखिर किसकी वजह से कर्नाटक में गठबंधन की सरकार पर बार–बार आंच आ रही है? क्या कांग्रेस की अंदरूनी कलह की वजह से गठबंधन की सरकार गिरने की कगार पर पहुंच चुकी है और आरोप बीजेपी पर मढ़ा जा रहा है?
>> शिवकुमार येन–केन–प्रकारेण मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं। सिद्धारमैय्या की भी महत्वकांक्षा है पुन: मुख्यमंत्री बनने की। ये दोनों कांग्रेस नेता ताकते रह गये और कुछ विधायकों वाली जेडीएस के कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गये। दरअसल, कांग्रेस आलाकमान के दबाव में ही पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जेडीएस को समर्थन देने के लिए राजी हुए थे. दोनों के बीच सरकार बनने के बाद से खींचतान भी लगातार जारी है. कई मुद्दों पर दोनों का विरोध खुलकर सामने आ चुका है. ऐसे में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार संकटमोचक की भूमिका में हैं और उनके ऊपर गठबंधन की सरकार बचाने की बड़ी जिम्मेदारी है और वो गठबंधन और पार्टी में संतुलन बनाने का काम कर रहे हैं।
हालांकि बीजेपी पर विधायकों को करोड़ों रुपए देकर खरीदने का आरोप लगाया जा रहा है लेकिन बागी हुए विधायकों के साथ विधायकों की मारपीट कहानी कुछ और ही बयां करती है.
अभी कांग्रेस–जेडीएस के पास 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में 118 विधायकों का समर्थन है लेकिन कांग्रेस के विधायकों के अलग होने से गठबंधन की सरकार गिर सकती है. इसी डर और आशंका के चलते बीजेपी पर ऑपरेशन लोटस चलाने का आरोप लगाया जा रहा है और कांग्रेस अपने विधायकों को रिजॉर्ट में बंद किए हुए है. वहीं बीजेपी का इस मसले पर कहना है कि कांग्रेस काफी गड़बड़ चल रही है जो उसकी कमजोरी को साबित कर रहे हैं।
विधायक दल की बैठक लगातार दूसरी बार बुलाने के पीछे ऐसा लगता है कि सिद्धारमैया अपने विधायकों को लेकर खुद ही आश्वस्त नहीं हैं. तभी रिजॉर्ट में भेजने के बाद भी विधायकों के बीच महाभारत छिड़ी हुई है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ विधायक नाराज चल रहे हैं. आखिर ये विधायक किससे नाराज हैं? ये गठबंधन से नाराज हैं या फिर राज्य में पार्टी नेतृत्व से? इन विधायकों के कांग्रेस से टूटने से राज्य की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ सकती है.
कांग्रेस नहीं चाहती कि लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में किसी भी सूरत में गठबंधन की सरकार पर कोई आंच आए क्योंकि इससे कांग्रेस की साख पर असर पड़ेगा. यही वजह है कि वो मध्यप्रदेश में भी लगातार बीजेपी पर सरकार गिराने का आरोप लगा रही है. लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई है जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस अल्पमत में है. उसे पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है. कुल 114 सीटों के साथ उसने समाजवादी पार्टी और बहुजनसमाज पार्टी के समर्थन के बूते सरकार बनाई है. ऐसे में अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस पर मायावती दबाव बनाती हैं तो उसके लिए किसी और को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
इसी अंक के प्रथम पृष्ठ में एक और समाचार है जिसके अनुसार कांगे्रस के ही सहयोगी कुमार स्वामी ने प्रधानमंत्री पद के लिये राहुल गांधी की अपेक्षा ममता बैनर्जी को ज्यादा योग्य जाहिर किया है।
इससेे स्पष्ट है कि कर्नाटक के सियासी ड्रामा का संकेत है कि कांग्रेस को तीन राज्यों मेें मिली जीत 2019 में बदल सकती है हार में।