18 January 2019
मोदी फोबिया से ग्रस्त तो सभी परिवारवादी विपक्षी पार्टियां हैं। परंतु क्या इनके सहारे और सिर्फ मोदी हटाओ अभियान के जरिये राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का अपना स्वप्र पूरा कर सकेंगे?
राहुल गांधी केजरीवाल की राह पर चलकर एनार्किस्ट बनने की नकल कर रहे हैं। इस नकल से उन्हें बचना चाहिये।
केजरीवाल की आप पार्टी का आधार सीमित था। केजरीवाल ने अपनी राजनीति, कांग्रेस के विरूद्ध विद्रोह कर छेड़ी। इसका फायदा उसे दिल्ली राज्य में ही मिला। यहीं तक सीमित रहा।
उनके मोदी विरोधी अभियान का फायदा सच पूछा जाये तो भाजपा को मिला। क्योंकि कांग्रेस का विकल्प के रूप में लोगों ने भाजपा को ही चुना।
इसी प्रकार से हम देख रहे हैं कि मोदी हटाओ अभियान का नेतृत्व घृणात्सपद, नकारात्मक उल–जलूल बकवास करते हुए राहुल गांधी कर रहे हैं। वे इसी निमित्त महागठबंधन बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।
कांग्रेस की स्थिति कुछ प्रांतों पंजाब, कर्नाटक, केरल और हिन्दी भाषी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में ही मजबूत है। अन्य शेष सभी राज्यों में उसकी उपस्थिति नहीं के बराबर है। ऐसी स्थिति में वह २०१९ में तीन का आंकड़ा प्राप्त नहीं कर सकती, अर्थात वह ४४ और १०० के बीच ही सीटों पर विजय प्राप्त कर सकती है।
सर्वे के अनुसार १३७ सीटें जहां भाजपा को हराने के लिए विपक्ष का छूट सकता है पसीना। अर्थात इन १३७ सीटों मेें कुछ ही सीटों पर भाजपा को हराया जा सकता है २०१९ के चुनाव में।
2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिलने वाली 44 सीटों का पूरा हिसाब, अधिकतर पर दूसरे नंबर पर थी भाजपा। अर्थात इन ४४ सीटों में से अधिकांश सीटों पर २०१९ में भाजपा विजय प्राप्त कर सकती है।
राहुल गांधी येन–केन–प्रकारेण विपक्षी पार्टियों का महागठबंधन बनाना चाहते हैं। इसके लिये वे जनेऊ भी धारण कर लिये हैं। गोएबल्स की नकल करते हुए एक ही झूठ को बार–बार दोहराते जा रहे हैं। राफेल का मुद्दा इसका उदाहरण है।
उन्हें यह मालूम ही नहीं है कि उनकी पार्टी का जनाधार कौन है? एक तरफ वे जनेऊधारी ब्राम्हण रामभक्त बनते हैं तो दूसरी तरफ राम मंदिर मुद्दे के विरोध में खड़े हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में वे कपिल सिब्बल के माध्यम से इस विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में २०१९ के बाद हो इसकी दुहाई दी। अभी भी वे नहींचाहते कि इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला २०१९ के लोकसभा चुनाव के पूर्व आये।
एक तरफ वे मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाते हैं तो दूसरी तरफ वे तीन तलाक का विरोध करते हैं।
इतना ही नहीं उनकी कांग्रेस पार्टी के कई नेता उनके इशारे पर भारतीय सेना की आलोचना कर चुके हैंं। आर्मी चीफ विपिन रावत को शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने सड़क का गुंडा तक कहा था।
एक तरफ राहुल गांधी अपने आपको युवा कहते हैं और युवाओं के हितैषी बनने का बखान करते हैं।
ठीक इसके विपरीत राजस्थान मेें युवा नेतृत्व सचीन पायलट की जगह वे बुजुर्ग अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाते हैं। इसी प्रकार से युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्थान पर वे ७२ वर्षीय कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाते हैं।
इसी प्रकार से दिल्ली में अजय माकन को हटाकर वे ७८ वर्षीय शीला दीक्षित को दिल्ली राज्य कांग्रेस की कमान देते हंै।
पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। बावजूद इसके १९८४ सिक्ख नरसंहार के आरोपी कमलनाथ? को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए।
अभी शीला दीक्षित के एक कार्यक्रम में जगदीश टाईटलर को भी प्रथम पंक्ति में बैठाया गया।
इन गतिविधियों से पंजाब और दिल्ली राज्य में विशेषकर कांग्रेस अपना जनाधार खायेगी।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के प्रकरण में भी राहुल गांधी अनिर्णय की स्थिति में हैं। वे अपनी गतिविधियों से लेफ़्ट विचारधारा के पोषक माने जा रहे हैं। यह स्थिति उनके लिये, कांग्रेस पार्टी के लिये २०१९ में लाभदायक नहीं रहेगी।
बावजूद इसके राहुल गांधी महागठबंधन बनाने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उसका नेतृत्व करने का प्रयास भी कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि वे महागठबंधन की उम्मीद ना उम्मीद के बीच झूल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में माया और अखिलेश ने गठबंधन कर कांग्रेस को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया है।
तेलंगाना की टीआरएस ने तो स्पष्ट रूप से मना कर दिया है महागठबंधन में शामिल होने के लिये। उनके फेडरल एलायंस में वाईआरएस भी शामिल हो चुका है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस टीएमसी के साथ एलायंस कर नहीं सकती। दूसरी तरफ महागठबंधन के घटक ममता बैनर्जी के आव्हान पर कोलकाता में इक_ा हो रहे हैं। राहुल गांधी टुकुर–टुकुर निहार रहे हैं।
इस समीक्षा से समझा जा सकता है कि वे अपनी कांग्रेस पार्टी को २०१९ में किस स्थिति में पहु़चायेंगे?
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