November 12, 2018
आरएसएस फोबिया से ग्रस्त कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के अपने घोषणा पत्र में कसम खाई है कि यदि खुदा न खास्ता वह सत्ता में आई तो आरएसएस की शाखाओं पर प्रतिबंध लगा देगी।
यहॉ यह उल्लेखनीय है कि जितनी भी देश विरोधी ताकतें हैं उन सबको संरक्षण देना उनकी पैरवी करना कांग्रेस अपना धर्म समझती है।
सिमी पर एनडीए शासनकाल में प्रतिबंध लगाया गया था। उस समय सोनिया गांधी के निर्देश पर सलमान खुर्शीद ने उस पर प्रतिबंध हटाये जाने की पैरवी अदालत में की थी।
कांग्रेस ने जिस हामिद अंसारी को उप राष्ट्रपति बनाया था वही अंसारी आईएसआईएस से संबंधित केरल के पीएफआई संगठन के कार्यक्रम में सम्मिलित होते है, संबोधित करते हैं। इसी पीएफआई द्वारा राहुल गांधी के सिपहेसालार जिग्रेश को विधानसभा चुनाव के समय आर्थिक मदद उपलब्ध कराई गई थी।
इसी पीएफआई के युवाओं द्वारा कर्नाटक में हिंसात्मक कार्रवाई की गई थी हिन्दू संगठनों के विरूद्ध। इस अपराध में वे जेल में बंद थे। पिछले विधानसभा चुनावों के समय उन्हें जेल से बाहर निकालकर स्वतंत्र करने का षडयंत्र भी उस समय की कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने किया था।
अभी हाल का ही उदाहरण लें तो शहरी माओवादियों पर मोदी सरकार द्वारा कार्रवाई की गई तो राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस के प्रवक्ता सुप्रीम कोर्ट के एड्व्होकेट अभिषेक सिंघवी उनकी पैरवी करने पहुचे थे सुप्रीम कोर्ट।
देश के अधिकांश हिस्से विशेषकर बस्तर नक्सल हिंसा से प्रभावित है। बावजूद इसके वोटों के लालच में कांग्रेस के स्टार प्रचारक राज बब्बर छत्तीसगढ़ पहुंचकर नक्सलियों को क्रंातिकारी की संज्ञा दी।
जेएनयू मेें अफजल गुरू शहीदी दिवस का आयोजन कन्हैय्या कुमार और ऊमर खालिद के नेतृत्व में हुआ था। उनकी उपस्थिति में आजादी के नारे लगे थे। इनकी पीठ थपथपाने के लिये राहुल गांधी जेएनयू पहुंच गये थे। कन्हैय्या कुमार और ऊमर खालिद पर देशद्रोह का मुकदमा भी चल रहा है बावजूद इसके इन्हेें कांगे्रस का संरक्षण प्राप्त है।
अब यदि कांग्रेस की मध्यप्रदेश के मैनोफैस्टो में संघ शाखाओं पर प्रतिबंध लगाये जाने की चर्चा करें तो हमें राहुल गांधी के नाना स्टेफनो मैनो तक जाना पड़ेगा। स्टैफनो मैनो हिटलर के साथी मुसोलिनी की सेना संगठन में सम्मिलित थे। इस अपराध में उन्हें रूस की जेल में दो–तीन साल के लिये बंद भी रखा गया था। राहुल गांधी पर अपने नाना–नानी की छाप पड़ी हुई है।
अब यदि पंडित नेहरू की भी चर्चा की जाये तो हमें स्मरण रखना होगा कि उनके केबिनेट में रक्षामंत्री कामरेड कृष्ण मेनन थे। इन्हीं के कारण १९६२ के युद्ध में चीन ने हिमालय तराई के भारत के बहुत बड़े भू–भाग को हड़प लिया था।
इससे दुखित होकर १९६३ में पंडित नेहरू को देशभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्मरण हुआ और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में संघ के स्वयंसेवकों को सम्मिलित होने का आव्हान किया था। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि इसी पंडित नेहरू ने १९४८ में संघ पर प्रतिबंध लगाया था। जिसे बाद में उनकी सरकार को हटाना पड़ा था।
इसके बाद यदि इंदिरा गांधी की चर्चा करें तो उनके कीचन कैबिनेट में कम्युनिस्टों का ही बोलबाला था।
राजीव गांधी के बाडीगार्ड तो रूस के केजीबी द्वारा प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी थे।
इस प्रकार के देश विरोधी बैकग्राऊंड की कांग्रेस की चौकड़ी हैं : दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया। इनके द्वारा रचित मध्यप्रदेश का कांग्रेसी घोषणापत्र है।
दिग्विजय सिंह के संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि उन्होंने २६/११ मुंबई धमाकों में आरएसएस का हाथ बताया था।
कमलनाथ के संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि १९८४ सिक्ख दंगों में उनका भी कुछ हाथ था, यह उन पर आरेाप है। इसी कारण पंजाब विधानसभा चुनाव के समय जब उन्हें वहॉ का चुनाव प्रभारी बनाया गया था तो विरोध होने पर उन्हें उस जिम्मेदारी से पीछे हटना पड़ा था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह स्मरण रखना चाहिये कि संघ और जनसंघ (अभी की भाजपा) के विस्तार में उनकी दादी राजमाता सिंधिया का विशेष सहयोग रहा है।
कांग्रेस आरोप लगाती है कि आरएसएस भाजपा की सहायक संस्था है। इस डर से भयभीत होकर वह उस पर प्रतिबंध लगाने का सपना देख रही है।
राहुल गांधी को और उनकी कांग्रेस को समझना चाहिये कि लाईन को छोटी न कर उसके समानांतर दूसरी लाईन बड़ी खींचे तो उचित रहेगा। वे कांग्रेस की अनुसांगिक संस्था कांग्रेस सेवादल को मजबूती देें और देशहित की सोचें तो उचित रहेगा। अलगाववादी हिंसात्मक गतिविधियां करने वाली संस्थाओं को संरक्षण देना बंद होना चाहिये और राष्ट्रहित में कार्य करने वाले संगठनों के मार्ग में बाधा पहुचाने का सपना देखना बंद करना चाहिये।
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