24 September 2020
हथियारों से लैस होना जरूरी, वरना भेडिय़े तो राह चलते साधुओं पर भी अकारण झपट्टा मारते हैं: दिनकर
राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा था कि हम अहिंसा के मार्ग पर चलेंगे, लेकिन साथ ही हम हथियारों
से लैस होकर भी चलेंगे, ताकि हम उन भेडिय़ों से अपनी प्राण-रक्षा कर सकें, जो राह चलते
साधुओं पर भी अकारण झपट्टा मारते हैं। आश्चर्य ही नहीं दु:ख की भी बात है कि
पालघर में साधुओं की जो हत्या हुई उसकी सच्चाई यह है कि वहॉ उपस्थित हथियारों से लेस? पुलिस ने ही निहत्थे साधुओं को हत्यारों की ओर ढ़केल दिया था।
यहाँ हम उन रामधारी सिंह दिनकर की बात करेंगे, जो राज्यसभा सांसद थे और जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सत्ता से सवाल पूछने और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलतियों पर ऊँगली उठाने में कभी झिझक महसूस नहीं की। भारत-चीन युद्ध इतिहास का एक ऐसा ही प्रसंग है, जब नेहरू के मन से ये भ्रम मिट गया था कि अब अहिंसा का युग आ गया है और भारत को हथियारों व सेना की ज़रूरत ही नहीं है।
फऱवरी 21, 1963 में राज्यसभा में दिए अपने भाषण में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने समझाया
था कि अहिंसा का अर्थ या होता है। उन्होंने बताया था कि गाँधी की अहिंसा मात्र अहिंसा ही नहीं थी
बल्कि उसमें आग थी, क़ुर्बानी का तेज था और आहुति-धर्म की ज्वाला थी।
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