28/July/2020 Tuesday
Editorial
>> अयोध्या शहर (पूर्व में फैज़ाबाद) के जमशेद खान ने कहा, “धर्म बदल लेने से किसी के पूर्वज नहीं बदल जाते हैं। हम ऐसा मानते हैं कि राम हमारे वास्तविक पूर्वज थे। हम अपने हिन्दू भाइयों के साथ खुशी के इस मौके में शामिल होंगे।“
पीएम मोदी राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के निमंत्रण पर ५ अगस्त को भूमिपूजन के लिये जा रहे हैं। इसका विरोध रामद्रोही कांग्रेस, वामपंथी, एनसीपी और यहॉ तक की शिवसेना भी अपने–अपने तरीके से कर रही हैं। शरद पवार ने तो कह दिया कि कोरोना काल में भूमि पूजन का कार्यक्रम नहीं होना चाहिये। जबकि कोरोनाकाल में ही वाशिंगटन हाऊस में वेदों का मंत्रोत्चार हुआ। मदर टेरेसा को अटल जी के शासनकाल में भारत रत्न दिया गया। क्या कभी भारत के किसी भी शासनकाल मेें किसी शंकराचार्य को भारत रत्न दिया गया?
शिवसेना भी अपने ढंग से अपनी तीन पहिये की सरकार को महाराष्ट्र में चलाये रखने के लिये मुस्लिम तुष्टिकरण के लिये अलगाववादियों को खुश करने के लिये कहा है कि वीडियो कांफे्रेस के जरिए भूमि पूजन का कार्यक्रम आयोजित होना चाहिये। इसी प्रकार से वामपंथी पार्टियों ने अब यह मोदी सरकार से गुहार लगाई है कि भूमिपूजन के कार्यक्रम का दूरर्दान मेें प्रसारण नहीं होना चाहिये।
कांग्रेस ने राहुल गांधी के निर्देश पर साकेत गोखले को उकसाया और उसके जरिए भूमि पूजन का कार्यक्रम रूकवाने की याचिका हाईकोर्ट में दिलाई गई जो कि रद्दी के टोकरी में फेंक दी गई है।
जिस जस्टिस रंजन गोगाई का विरोध कांग्रेस ने उनके राज्यसभा सदस्य बनने पर किया था उसी कांग्रेस के लोकसभा के नेता अधीर रंजन चौधरी अब कह रहे हैं कि रंजन गोगोई को भी भूमिपूजन में आमंत्रित करना चाहिये।
१९९२ में ‘राष्ट्रीय एकताÓ पुस्तक का प्रकाशन हमने किया था। उसका दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। उसके पृष्ठ ४ में डॉ राही मासूम रजा के कथन और प.पू.गुरूजी का संस्मरण भी है।
महाभारत की स्क्रीप्ट लिखने वाले डा. राही मासूम रज़ा ने लिखा था-”मैं एक मुसलमान हिन्दू हूं। कोई विक्टर इसाई हिन्दू होगा और कोई ‘मातादीन‘ वैष्णव या आर्य समाजी हिन्दू एक देश में कई र्म समा सकते हैं परंतु एक देश में कई कौमें नहीं समा सकती। मेरे पुरखों में गालिब और मीर के साथ सूर, तुलसी और कबीर भी आते हैं।”
प.पू. गुरूजी का ए क संस्मरण है – एक वरिष्ठ अमेरिकी प्रोफेसर के प्रश्र करने पर गुरूजी ने उन्हीं से प्रश्र कर दिया : ”मान लीजिये हमारे देश का ही व्यक्ति अमेरिका जाता है, बसने लगता है और वहां का नागरिक बनना चाहता है। किंतु वह आपके लिंकन, वाशिंगटन, जेफरसन तथा अन्य राष्ट्रंीय महापुरूशों को स्वीकार करने से इंकार करता है, स्पष्ट उत्तर दीजिये कि क्या आप उसे अमेरिका का राष्ट्रीय कहेंगे।” उन्होने कहा नहीं।
मोहम्मद इकबाल कश्मीरी पंडित थे। जिन्ना भी धर्मांतरित हिन्दू फैमिली के सदस्य थे। जब तक मोहम्मद इकबाल भारत में थे जिन्ना की मुस्लिम लीग में जब सम्मिलित नहीं हुए थे तब उन्होंने लिखा था : सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
परंतु बाद में हिन्दुस्तान में रहते हुए जिन्ना के प्रभाव में आकर वे मुस्लिम लीग में शामिल हो गए थे। वहॉ पहुंचकर उन्होंने लिखा :
“तराना -इ मिली which says मुस्लिम
हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा
्र चीन –ओ अरब हमारा , हिंदुस्तान हमारा
केरल में कम्युनीस्ट पार्टियों का शासन है । इसके पूर्व कांग्रेस और मुस्लिम लीग का शासन था। क्रिस्चियन, मुस्लिम और कम्युनीस्ट वहॉ पर बहुमत में है। इसी प्रकार से हमनें देखा कि राष्ट्रवादी शक्तियां जिस प्रदेश में जिस स्थान पर भी कमजोर हुई है वहॉ पर राष्ट्रविरोधी शक्तियां हावी हो गई है।
भारतीय सेना को आतंकी बताने वाले लेक्चर की पढ़ाई केरल में, अरुंधति रॉय हैं लेखिका: क्चछ्वक्क ने राज्यपाल को लिखा पत्र।
अरूंधति रॉय के इस लेक्चर को कालीकट यूनिवर्सिटी ने सिलेबस में किया शामिल, क्चछ्वक्क ने देशद्रोह बताया।
श्री राम भारत की संस्कृति के पर्यायवाची मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। हमारे रोम–रोम में भारत भूमि के कण–कण में भगवान राम हैं।
पंडित नेहरू ने कहा था कि वे घटनावश जन्म से हिन्दू हैं, संस्कृति से मुस्लिम और शिक्षा से अंग्रेज।
ठीक इसके विपरीत हमारे विचार हैं जननी–जन्मभूमि स्वर्गादपि गर्यषी।
भारत की रक्षा के लिये, भारत माता के जो पुत्र शहीद होते हैं वे यही कामना करते हैं कि यदि उन्हें पुन: जन्म लेना पड़े तो वे भारत की भूमि पर ही जन्म लें। पंडित नेहरू के लिये भारत एक जमीन का टुकड़ा है भारत माता नहीं। वे इसी संदर्भ में किसानों से पूछते हैं कि क्या हिन्दुस्तान एक खुबसुरत स्त्री है। हम रामलीला पसंद करते हैं कोई हो सकता है पसंद करे रोमलीला को।
पुष्प की अभिलाषा :
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ–भूमि पर शीश– चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
Articles
हमारे राष्ट्र पुरूष कौन हैं?(राष्ट्रीय एकता– पृष्ठ 3)
(भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दू, बुद्धिस्ट, सिख, ईसाई पर अत्याचार होते हैं। ईसाई तो यूपरोपियन देश में जा सकते हैं परंतु हिन्दू-बौद्ध-सिख के लिये तो भारत ही है। इसीलिये सीएए का प्रावधान मोदी सरकार ने संसद में दो-तिहाई मतों से पारित कर किया।) इसी का विरोध छद्म धर्मनिरपेक्ष, अलगाववादी तत्वों ने हिंसक प्रदर्शन कर किया। उन तत्वों को हम भली-भांति जानते हैं, उनसे हमें सावधान रहना चाहिये।)
हमारे राष्ट्र पुरूष कौन हैं ? न गोरी रहा है न बाबर रहा है मगर राम युग युग उजागर रहा है अधिकांष मुस्लिम बंधुओं को उनके कट्टरपन और हमारी सरकार की तुश्टीकरण की नीति ने यह सोचने ही नहीं दिया कि मुगलकाल से पहले भीभारत था। वे भी मुगलकालीन भारत के ही नहीं विष्व के सर्वाधिक प्राचीन गौरवषाली जगत गुरू, भारत के वंषज हैं। यही बात ईसाइयों पर भी लागू होती है। भय और लोभ के कारण अनेक लोगों ने धर्म परिवर्तित किया और कुछ लोगों ने जीवन पद्धति भी बदल डाली। अंग्रेजों ने भी अपने षासनकाल में अनेकों को इसाई बनाया और जो इसाई नहीं बने उन्हे लार्ड मेकाले की षिक्षा नीति ने अंग्रेजी सभ्यता का गुलाम बना दिया इन सब बातों का प्रभाव हम आज भी भारत में देख रहे हैं और ये ही बातें राश्टंीय एकता में बाधक है। डा. हेडगेवार ओर वीर सावरकर ही नहीं डा. राधाकृश्णन जैसे महान व्यक्तियों के विचार रहे हैं कि धर्मान्तरण करने वाला संस्कृति की दृश्टि से हिन्दू रह सकता है। प.पू गुरूजी माधव सदाषिव गोलवलकर ने कहा है व्यक्ति के तीन धर्म होते है- व्यक्ति धर्म, कुलध् ार्म, राश्टंधर्म। व्यक्तिधर्म यानी उपासना पद्धति परिवर्तन से कुल धर्म और राश्टंधर्म परिवर्तित नहीं होना चाहिए। फिर इसाई या मुसलमान अपने नाम राम, कृश्ण, अषोक आदि न रख कर जान, थामस, अली, हसन, आदि क्यों रखते हैं। षेख और सैयद अरब की जातियां हैं। फिर भी अधिकांष भारतीय मुसलमान अपने को उनका वंषज कैसे अनुभव करते है यह समझ से परे हैं। मां बाप प्राय: उनके जो आदर्ष रहे हैं उन्हीं जैसा नाम अपनी संतानों का भी रखना चाहेंगे। रावण, कुम्भकरण, जयचंद अपने लड़के का नाम नहीं रखना चाहेंगे। अतएव सिर्फ इस्लाम धर्म के अनुयायी कोई है इसी आधार पर अपनी संतानों का नामकरण नहीं करना चाहिए। हमारे राश्टंपुरूशों और हमारी संस्कृति के अनुरूप ही हमें नामकरण करने चाहिए। इससे राश्टंीय एकता को बल मिलेगा। अभी हाल ही मे ईराक में युद्ध भड़का लाखो भारतीय जिनमें अधिकांष मुस्लिम व इसाई थे भारत में ही वापस लौटे, पाकिस्तान, अरब देष या इंलैण्ड नही गये।
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