8 July 2020
क्या भारत तिब्बत के प्रति एक नया दृष्टिकोण अपना रहा है?
2 साल पहले, नई दिल्ली में दलाई लामा का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था। लेकिन लद्दाख में भारत-चीन गतिरोध के बीच, भारतीय नेताओं ने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई दी। क्या भारत तिब्बत के प्रति एक नया दृष्टिकोण अपना रहा है?
१९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ और १९४९ में चीन को स्वतंत्रता मिली। चीन जब स्वतंत्र हुआ था तब चीन और भारत के बीच आजाद तिब्बत और ईस्ट तुर्किस्तान देश की सीमाएं थीं।
>> भारत की सीमा में चीन किस प्रकार से घुसा इसकी कथा इस प्रकार है : उसने सबसे पहले १९४९ में ही ईस्ट तुर्किस्तान (अर्थात आज का शिनजियांग चीन का प्रंात के उइगर मुस्लिम) को अपने कब्जे में लिया। उसके बाद १९४९ में तिब्बत पर आधिपत्य किया।
इस प्रकार से चीन भारत का पड़ोसी बन गया। १९५१ के बाद से ही चीन के विस्तारवादी नेताओं ने पंडित नेहरू को अपने जाल में लेना शुरू किया, उस समय के रक्षामंत्री कामरेड कृष्ण मेनन के माध्यम से।
>> १९६२ के युद्ध में उसने भारत की अक्साई-चीन सीमा को हड़प लिया। १९६२ के युद्ध में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी और उस समय के रक्षामंत्री कामरेड कृष्ण मेनन चीन की सेना को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विरूद्ध सहायता किये थे?
कृष्ण मेनन और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के जैसे ही राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को भी चीन ने २००८ में अपने चंगुल में फांसने का प्रयत्न किया, यह आरोप अब लग हैं। २००८ में राहुल गांधी ने बीजिंग में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक एमओयू में दस्तखत किये। उसके बाद चीन की एम्बेसी और चीन की सरकार से राजीव गांधी फंाउंडेशन को डोनेशन भी दिया गया। डोकलाम विवाद के समय दो बार चीनी एम्बेसेडर से गुप्तरूप से मिले। इसको आधार मानकर राहुल गांधी की आलोचना हो रही है। आलोचकों का यह कहना है कि गलवान घाटी के संघर्ष के बाद से राहुल गांधी और कांग्रेस भारत की सेना और भारत के प्रधानमंत्री पर तो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हमला बोल रहे हैं परंतु चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले।
>> वर्ष 1947 में भारत-चीन सीमा की लंबाई चार हजार किमी से कुछ अधिक ही थी। वर्ष 1962 युद्ध के बाद भारत अक्साई चिन से हाथ धो बैठा। इस युद्ध के बाद डिफेंस डिक्शनरी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) नामक एक नया शब्द शामिल हो गया। जम्मू और कश्मीर के संदर्भ में सरकार का रुख स्पष्ट करने के क्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अक्साई चीन का जिक्र संसद में करते हैं। सचमुच 3,488 और 4,056 के बीच का फ ासला कम नहीं है।
>> हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में 17 मार्च 1959 को दलाई लामा ने 24 वर्ष की आयु में भारत में शरण ली थी। भारत में ही तिब्बत की निर्वासित सरकार कायम है। भारत में लगभग १ लाख तिब्बती हैं वे निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री तथा अन्य का लोक तांत्रित तरीके से चुनाव करते हैं।
>> चीन पिछले माह गलवानघाटी में खूनी संघर्ष कर भारत को ही नहीं पूरे विश्व को जतला दिया कि अब चीन के विरूद्ध विश्व के सभी देशों का एकत्रित होकर चीन के विस्तारवाद को खत्म करना आवश्यक है।
चीन के विस्तारवादी नीति का विरोध करते हुए कांग्रेस के लोकसभा के नेता अधीररंजन चौधरी ने एक ट़्वीट किया था उस ट्वीट को राहुल गांधी के विरोध के कारण डिलीट करना पड़ा था। परंतु डिलीट करने बाद अधीर रंजन ने ताईवान को धन्यवाद दिया था कोरोना के संबंध में भारत को कीट्स सप्लाई के लिये।
भाजपा ने भी अपने दो सांसदों को ताईवान की आजादी के जश्र में भाग लेने के लिये भेजा था।
हांगकांग में जिस प्रकार से चीन काला कानून लाकर लोकतंत्र का गला घोंट रहा है उसका भी विरोधी भारत ने किया है।
अब ऐसा लगता है कि जहॉ २०१८ में मोदी सरकार ने दिल्ली में दलाई लामा के कार्यक्रम को रद्द कर दिया था वहीं अब सोमवार को दलाई लामा के जन्मदिन पर बधाई देते हुए कई नेता उस कार्यक्रम में भाग लिये।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव और भाजपा के मीडिया प्रमुख अनील बूलानी के अलावा अरूणाचल के सीएम खांडू तथा मोदी सरकार के खेलमंत्री रिजीजू भी उपस्थित हुए।
वहॉ पर दलाई लामा को भारत रत्न दिये जाने और तिब्बत की आजादी के लिये आवाज बुलंद करने का भी आव्हान कई संगठनों ने किया। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि ष्टञ्ज्र के निर्वासन अध्यक्ष लोबसांग सांगे ने पाल को चेतावनी दी थी कि चीन तिब्बत पर कब्जे के बाद 1960 के दशक से पूरे उप-महाद्वीप पर कब्जा करना चाहता है। सांगे ने कहा कि चीन ने तिब्बत के साथ जो किया, वह नेपाल के साथ उसी का अनुकरण करता हुआ दिख रहा है। चीनी युद्धपोत पर बोलते हुए, संगे ने कहा कि चीनी नेतृत्व ने कहा था कि बीजिंग अपनी ‘फाइव फिंगरÓ योजना को पूरा करना चाहता था, जहां तिब्बत हथेली थी, जबकि लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पांच उंगलियां।
अब हम देख रहे हैं कि जहॉ नेपाल की स्वतंंत्रता के समय नेपाल में एक भी इसाइ और कम्युनिस्ट नहीं था वहीं अब वहॉ पर लाखों इसाइ बन गये हैं और नेपाल पर कम्युनिस्ट पार्टी ने कब्जा कर लिया है। चीन परस्त नेपाल के सीएम ओली की सत्ता कायम रखने के लिये नेपाल में चीन की महिला राजदूत किस प्रकार से प्रयास कर रही है इसकी चर्चा तो मीडिया में हो ही रही है।
By Rajesh Agrawal :-
भारत और चीन संघर्ष की समाप्ति के लिये तिब्बत की आजादी आवश्यक है।
हिंसक गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद जहॉ भारत के 20 जवानों ने शहादत दी थी, चीन के चंगुल से तिब्बत को मुक्त करने का आंदोलन एक बार जोर पकड़ लिया है। भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के जिला मुख्यालय धर्मशाला में स्थित तिब्बती सरकार का निर्वासन और कई अन्य स्वतंत्र निकाय अब इस मुद्दे पर लगातार आव्हान कर रहे हैं।
तिब्बती नेतृत्व ने दावा किया है कि जब तक तिब्बत मुद्दा हल नहीं होगा तब तक भारत और चीन के बीच संघर्ष जारी रहेगा। गलवान में हुए झड़प जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, ष्टञ्ज्र के सूचना सचिव त्सावांग ग्यालपो आर्य ने जोर देकर कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा ‘भारत-तिब्बत सीमाÓ है, न कि ‘भारत-चीन सीमाÓ। “हम सरकार, मीडिया और अन्य लोगों से इसे स्वीकार करने का आग्रह करते हैं। यह समय की बात है कि तिब्बत के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाना चाहिए।
यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत-चीन के गतिरोध के बाद, अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने भी इसी तरह की भावनाओं को प्रतिध्वनित किया था , जिसमें रु्रष्ट को ‘भारत-तिब्बत सीमाÓ बताया था।
चीन ने 1951 में तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया था
चीन द्वारा 1951 में तिब्बत में कब्जा करने के बाद तिब्बत की सरकार इस समय निर्वासित है ।
भारत-तिब्बत सीमा के रूप में अरुणाचल प्रदेश में अपनी सीमा को भी संदर्भित करता है। कथित तौर पर, दलाई लामा सहित लगभग 1 लाख तिब्बती भारत में निर्वासन में रह रहे हैं।
इस बीच, मुक्त तिब्बत के अभियान और वकालत प्रबंधक (तिब्बत की स्वायत्तता की वकालत करने वाला एक आंदोलन), जॉन जोन्स ने कहा कि तिब्बत का बढ़ता सैन्यीकरण आबादी को और अधिक जोखिम में डालता है। “तिब्बती लोगों को इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था कि क्या वे चाहते थे कि उनके लोग और क्षेत्र एक सीमा संघर्ष का हिस्सा हों। चीन को तिब्बत के सैन्यीकरण को समाप्त करना चाहिए और अपने कब्जे को भी समाप्त करना चाहिए। उम्मीद है कि बीजिंग पर बढ़ती रिपोर्टिंग और अंतरराष्ट्रीय दबाव मदद कर सकता है, “उन्होंने कहा।
वास्तव में, धर्मशाला में कई कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज ने भी चीन के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत को वकालत की है और अंतर्राष्ट्रीय समुदायों से भारतीय क्षेत्र में चीनी सैन्य आक्रमण की निंदा करने का आग्रह किया है। तिब्बती युवा कांग्रेस (टीवाईसी) और स्टूडेंट्स फॉर ए फ्री तिब्बत-इंडिया ने भी एक बयान में विश्व नेताओं से चीनी कदम के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने का आग्रह किया है। “चीन एक विस्तारवादी राष्ट्र है। दशकों पहले उन्होंने तिब्बत के साथ भी ऐसा ही किया था। ‘
तिब्बती युवा कांग्रेस ने हाल ही में भारतीय सेना के समर्थन में टोरंटो में चीनी वाणिज्य दूतावास के सामने एक विरोध प्रदर्शन किया था और तिब्बत पर चीन के कब्जे को समाप्त करने का आह्वान किया था।
बर्मिंघम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग के डॉ। तर्सिंग तोग्याल का कहना है कि चीन की भारत की नीति पर हमेशा रणनीतिक भ्रम की स्थिति रही है, जो वैचारिक मजबूरियों से गुमराह है, प्रतिस्पर्धा के मुद्दों और लक्ष्यों से विखंडित है, और राजनीतिक पराजय से नाकाम है। । हालाँकि, तिब्बती कार्यकर्ता और लेखक तेनजिऩ त्सुदे ने कहा कि भारत अब बेहतर जानता है और अब चीन पर भरोसा नहीं करेगा, लेख में कहा गया है।
लद्दाख में ष्टञ्ज्र प्रतिनिधि का कहना है कि एक स्वतंत्र तिब्बत अब बहुत दूर नहीं है
पत्रकार आरती टीकू सिंह द्वारा साझा किए गए एक वीडियो में, लद्दाख त्सेत्ेन वांगचुक में सीटीए के प्रतिनिधि ने कहा कि स्वतंत्र तिब्बत का सपना अब बहुत दूर नहीं है क्योंकि चीन बहुत दबाव में है, कोरोनोवायरस के कारण, लोकतंत्र की बढ़ती मांग और अन्य भूराजनीतिक मुद्दे। उन्होंने कहा कि चीन में भी कई लोग अब लोकतंत्र का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीटीए का “मध्य-मार्ग दृष्टिकोण” तिब्बत और चीन के लोगों के लिए फायदेमंद होगा।
ष्टञ्ज्र के निर्वासन अध्यक्ष लोबसांग सांगे ने पाल को चेतावनी दी थी कि चीन तिब्बत पर कब्जे के बाद 1960 के दशक से पूरे उप-महाद्वीप पर कब्जा करना चाहता है। सांगे ने कहा कि चीन ने तिब्बत के साथ जो किया, वह नेपाल के साथ उसी का अनुकरण करता हुआ दिख रहा है। चीनी युद्धपोत पर बोलते हुए, संगे ने कहा कि चीनी नेतृत्व ने कहा था कि बीजिंग अपनी ‘फाइव फिंगरÓ योजना को पूरा करना चाहता था, जहां तिब्बत हथेली थी, जबकि लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पांच उंगलियां।
(1)दलाई लामा को भारत रत्न दिये जाने की मांग
तिब्बत का समर्थन करने वाले संगठनों ने भारत सरकार से तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत रत्न दिये जाने के लिये अनुरोध किया है.
धर्मशाला में आयोजित हुए चौथे तिब्बती समर्थन समूहों के सम्मेलन में यह अपील की गई. तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में 100 भारतीय समर्थकों ने भी शिरकत की.
सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों ने घोषणा की कि सितम्बर-अक्तूबर में भारत पर चीनी आक्रमण के पचास साल पूरे होने पर वे प्रदर्शन आयोजित करेंगे.
(2)बीजेपी सांसद ने की दलाई लामा को भारत रत्न देने की मांग, कहा- तिब्बत को चीन से आज़ाद करने का आह्वान हो
कांगड़ा से भाजपा सांसद किशन कपूर ने केन्द्र से तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्नÓ प्रदान करने की मांग की है. इसके साथ ही सांसद ने ये भी कहा कि चीन से तिब्बत की स्वतंत्रता का आह्वान किया जाए\ कपूर ने कहा कि जिस तरह से ज्यादतियों के जरिए चीन ने इस पर कब्जा किया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि चीन को एक अच्छे पड़ोसी की तरह बिना हिंसा के सीमा विवाद के समाधान के लिए आगे आना चाहिए और तिब्बत को दलाई लामा को ”सौंपÓÓ देना चाहिए. ्रद्यह्यश क्रद्गड्डस्र – मैं अभी 20 साल से अधिक जीवित रहूंगा: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा
बता दें कि दलाई लामा सोमवार को 85 साल के हो गए और इस अवसर पर यहां तिब्बत की निर्वासित सरकार के अधिष्ठान पर प्रार्थना और अनुष्ठान के द्वारा दलाई लामा का जन्मदिन मनाया गया. इस दौरान भारत और चीन के बीच हुई झड़प में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को भी श्रद्धांजलि दी गई.
(3)भाजपा के वरिष्ठ नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम शांता कुमार ने अप्रैल 2019 में केंद्र सरकार को कई राजनीतिक दलों के सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र सौंपा था, जिसमें दलाई लामा के लिए भारत रत्न का समर्थन किया गया था।
पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने भी गालवान घाटी में भारतीय सेना के जवानों और चीनी सैनिकों के बीच झड़प के कुछ दिनों बाद पोस्ट किया था कि उन्हें यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पिछले साल एक लेख में तर्क दिया था कि भारत को दलाई लामा को खुले दिल से भारत रत्न देकर उनका सम्मान करना चाहिए।
(4) तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के जन्मदिन के अवसर पर अमरीका ने भारत को धन्यवाद दिया है। अमरीका ने तिब्बती धर्मगुरु को 1959 से शरण देने के लिए भारत का शुक्रिया अदा करने के साथ ही सरहाना भी की। आपको बता दें कि 1959 में तिब्बत पर चीनी हमले के बाद दलाई लामा ने भारत में शरण ले ली थी व तब से यहां ही रह रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार संचालित होती है। दलाई लामा को उनकी मातृभूमि में लोकतंत्र और आजादी पाने के उनके अहिंसक अभियान के लिए 1989 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। भारत में फिलहाल लगभग 1,60,000 तिब्बती रहते हैं।
(5)ड्रैगन का प्रकोप हांगकांग से लेकर ताइवान और वियतनाम तक में देखा जा रहा है। इसने हिंद महासागर, प्रशांत और दक्षिण चीन सागर को भी नहीं बख्शा।
वर्ष 1947 में भारत-चीन सीमा की लंबाई चार हजार किमी से कुछ अधिक ही थी। वर्ष 1962 युद्ध के बाद भारत अक्साई चिन से हाथ धो बैठा। इस युद्ध के बाद डिफेंस डिक्शनरी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) नामक एक नया शब्द शामिल हो गया। जम्मू और कश्मीर के संदर्भ में सरकार का रुख स्पष्ट करने के क्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अक्साई चीन का जिक्र संसद में करते हैं। सचमुच 3,488 और 4,056 के बीच का फासला कम नहीं है।
हाल ही में तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री रिनपोछे के साथ हुई चर्चा में तिब्बत की ऊंची जमीन पर एक साथ बुद्ध और गांधी को उतारने की वकालत से पहले वह पुरानी परंपरा की अंतिम पीढ़ी और मैक मोहन लाइन का जिक्र करते हैं। गांधी के अवसान के करीब एक दशक बीतने पर उनके अनुयायियों ने वर्ष 1958 में अखिल भारतीय पंचायत परिषद की स्थापना की थी। ग्राम सभा के इस सर्वोच्च संस्था के साथ जुड़ाव के कारण कई बातें पता चलती हैं। तिब्बत में मानसरोवर झील के पास स्थित मनसर गांव 1962 के युद्ध तक भारतीय खजाने को राजस्व देता था। सीमा के पास कई गांवों में भारतीय और चीनी लोगों के बीच सामानों का आदान-प्रदान वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत होता था। इस तरह का लेन-देन लालच पर केंद्रीत मांग के बजाय जरूरत पर आश्रित अर्थव्यवस्था को ही दर्शाता है।
चीन ने फिर दी भारत को धमकी, तिब्बत मामले को छुआ तो होगा नुकसान
चीन ने एकबार फिर भारत को धमकी दी है कि यदि तिब्बत मामले को छुआ तो नुकसान होगा। यह धमकी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े अखबार ग्लोबल टाइम्स की ओर से दी गई है। इस अखबार ने संपादकीय लेख में कहा है कि भारतीय मीडिया के कुछ हिस्से में ये मुद्दा उठाया जा रहा है कि भारत को तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए।
प्रस्तावित ‘तिब्बत कार्डÓ भारतीय इकोनॉमी के लिए नुकसानदायक शीर्षक से लिखे लेख में अखबार ने कहा है कि भारत में कुछ लोगों का ये सोचना कि चीन के साथ तनाव के दौरान तिब्बत कार्ड से फायदा हो सकता है, यह विचार एक भ्रम है। अखबार ने लिखा है कि तिब्बत चीन का आंतरिक मामला है और इस मुद्दे को छूना नहीं चाहिए।
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