8 July 2020
भारत, अमिश देवगन अभी भी काफी अपने लद्दाख यात्रा से प्रधानमंत्री संदेश द्वारा लिया गया था, “क्या था ये 56 इंच वाला संदेश?” सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने बताया, ‘Ó सेना में हम कमांडर को ‘टाइगरÓ कहते हैं। इस बार पीएम ने साबित कर दिया कि वह भी एक बाघ हैं। “
प्रसाद को तब एक कहावत की याद दिलाई गई, “एक कहावत है, ‘अगर एक बाघ की अगुवाई में एक हज़ार भेड़ें हों, तो यह एक भेड़ की अगुवाई वाली हज़ार बाघों की सेना से बेहतर है।” सही।
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने कहा कि पीएम मोदी ६९ वर्ष की आयु में ११ हजार फिट ऊचाइ पर स्थित लेह पर पहुंचे और वहॉ तैनात सैनिकों का मनोबल बढ़ाते हुए ओजस्वी भाषण दिया। शंकर प्रसाद जी ने कहा कि वे वहॉ की स्थिति से भली-भांति परिचित हैं। वहॉ तैनात सैनिक को दो शब्द भी बोलने मेें बहुत कठिनाई महसुस होती है इसलिये उनको ठंड से बचने के लिये दवाई दी जाती है।
>> गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो में पीछे हटने लगे चीनी सैनिक स्ट्रक्चर भी उखाड़े परंतु हमारे सैनिक वहॉ चीन पर नजर रखने के लिये लंबे समय तक डटे रहेंगे। इसीलिये लद्दाख में लंबे मोर्चे के लिए सेना ने कसी कमर: 30,000 सोल्डिएर्स को मिलेंगे माइनस तापमान में उपयोगी कोल्ड वेदर टेंट।
भारत ने चीन की दुखती रग पर रखा हाथ, आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर पहुंचाई बड़ी चोट
>> गैल्वान वैली नरसंहार ने चीन के आर्थिक प्रभुत्व को पूरी चुनौती दी है कि 2016 में ट्रम्प के निर्वाचित होने पर कई अमेरिकियों ने मतदान किया था। “चीन पर बहिष्कार के लिए और बीजिंग के लिए एक साहसिक सरकार की प्रतिक्रिया के लिए भारतीयों का समर्थन अमेरिकी भावनाओं को इंगित करता है।””ब्रेइटबार्ट समाचार ने रिपोर्ट में कहा।
नई दिल्ली द्वारा चीन के बहिष्कार के लिए उठाए जा रहे ठोस कदमों से पता चलता है कि कम्युनिस्ट पार्टी को राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं से दूर करना कोई कल्पना नहीं है। “।
अमेरिका की तुलना में घर पर बहुत कमजोर अर्थव्यवस्था और घर पर समान रूप से सख्त चीनी कोरोनावायरस महामारी के साथ नई दिल्ली चीन का बहिष्कार करने के लिए ठोस कदम उठा रही है, यह दर्शाता है कि चीन को राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला से दूर करना एक कल्पना नहीं है। यदि भारत ऐसा कर सकता है, तो अमेरिकियों ने “मुक्त व्यापार” नीतियों से जो आधुनिक चीन का निर्माण किया है, जल्द ही महसूस कर सकते हैं, तो अमेरिका कर सकता है।
>> मतदान से पता चलता है कि ऑस्ट्रेलियाई , फिलिपिनो , केन्याई , भारतीय और एक बढ़ती हुई कोरसदुनिया भर के अन्य नागरिकों ने हाल के इतिहास में चीन पर अपनी राय को खट्टा देखा है, न केवल चीनी कोरोनावायरस महामारी के उत्पाद के रूप में, बल्कि चीन के उपनिवेशण परियोजनाओं के जवाब में, जैसे कि दक्षिण चीन सागर और “बेल्ट एंड बेल्ट” के अवैध पुनग्र्रहण सड़क “बुनियादी ढाँचा पहल। कम्युनिस्ट चीन का सामना करना एक लोकप्रिय कदम है।
>> अब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, यूएस द्वारा खाली की गई भूमिका को भारत के पी एम् मोदी प्राप्त कर चुके हैं।
अर्थात विश्व पटल पर जिस प्रकार से आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को पीएम मोदी ने अलग-थलग कर दिया था उसी प्रकार से अब विस्तारवादी चीन को भी अलग कर दिया है। पाकिस्तान जैसे ही चीन भी अब महशूस करने के लिये मजबूर हो रहा है कि चीन पीएम मोदी की नीतियों ने दृढ़ संकल्पों ने विश्व के सभी देशों को चीन के विरूद्ध कर दिया है।
पाकिस्तान के अलावा चीन का कोई साथी अब नहीं है। नेपाल भी अपनी औकात पहचानकर अब भारतीय सीमा पर दो चौकियां कर दिया है।
>> प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह दौरा, दरअसल, चीन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए सरप्राइज रहा. सरहद पर तैनात जवानों के लिए तो जोश भरने वाला रहा ही. देश के बहुमत के लोगों के मैंडेट के साथ जवानों के बीच पहुंचे प्रधानमंत्री को पाकर तो जवानों का जोश ऐसे कुलांचे मार रहा होगा कि एक इशारा हो तो बीजिंग तक पहुंच कर रु्रष्ट खींच आयें.
सरहद पर तब भी ऐसा ही माहौल रहा होगा जब 2002 में रुशष्ट पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कुपवाड़ा पहुंचे थे – तब भी तकरीबन ऐसा ही तनावपूर्ण माहौल हो गया था. ये बात प्रधानमंत्री मोदी को भी निश्चित तौर पर याद आ रही होगी – हालांकि, तब वो गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
मोदी ने वाजपेयी वाले ही अंदाज में लेकिन दो कदम आगे बढ़ कर चीन के साथ साथ पाकिस्तान को भी बता और जता दिया कि संभल जाओ, वरना बाद में मत कहना कि पहले नहीं बताया. साथ ही, दुनिया के मुल्कों के लिए भी ये भारत का ये संदेश है कि वे चीन के इरादे को पहचान लें – और उसके मंसूबों को देखते हुए वक्त रहते संभल जायें.
चीन के साथ साथ पाकिस्तान को भी मैसेज है कि वो किसी के बहकावे में न आये – वरना, बाद में पछतावे के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह दौरा अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिला रहा है. 22 मई, 2002 को वाजपेयी ने रुशष्ट के नजदीक कुपवाड़ा का दौरा किया था – और मोदी ने लेह की वो जगह चुनी जहां से रु्रष्ट और रुशष्ट दोनों पर राजनीतिक और कूटनीतिक पोजीशन लेकर एक साथ सबको कड़ा मैसेज दिया जा सके.
तब वाजपेयी ने कहा था, “भारत को चुनौती दी गयी है और हमे स्वीकार है. मेरे आने का कुछ मतलब है. हमारे पड़ोसी इसे समझें या नहीं, दुनिया इसे संज्ञान में लेती है या नहीं – इतिहासकार भी याद करेंगे कि हमने जीत की नयी इबारत लिखी है.”
संयुक्त राष्ट्र के मंच से दुनिया को बुद्ध और युद्ध का दर्शन समझा चुके प्रधानमंत्री मोदी ने अब ये भी साफ कर दिया है कि भारत बुद्ध को मानता जरूर है लेकिन युद्ध को लेकर भी कोई संकोच नहीं है – और इसके लिए इस बार मोदी ने कृष्ण का उदाहरण दिया है जो हर वक्त बांसुरी बजाते रहते हैं लेकिन मौके पर सुदर्शन चक्र के इस्तेमाल से भी परहेज नहीं करते.
मोदी ने भी वाजपेयी की ही तरह सरहद पर 24 घंटे मुस्तैद जवानों की पुरजोर हौसलाअफजाई की|
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