अफगानिस्तान से भारत के गहरे हित जुड़े रहे हैं। अब तालिबान के शासनकाल में वह चीन के खेमे में जा रहा है, तो भारत के भू-राजनीतिक समीकरणों के लिए इसका दूरगामी असर हो असर हो सकता है।चीन ने अपनी मध्यस्थता कूटनीति को और आगे बढ़ाया है। उसका दावा है कि इस्लामाबाद में चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की हुई बातचीत से त्रिपक्षीय सहयोग का एक खाका तैयार हुआ है। इस घटनाक्रम पर भारत को अवश्य नजर रखनी चाहिए। अफगानिस्तान से भारत के गहरे हित जुड़े रहे हैं। अब तालिबान के शासनकाल में वह चीन के खेमे में जा रहा है, तो भारत के भू-राजनीतिक समीकरणों के लिए इसका दूरगामी असर हो असर हो सकता है। इसके साथ ही इस खबर पर भी गौर करना चाहिए कि अगले 18 और 19 मई को चीन- मध्य एशिया शिखर वार्ता आयोजित होगी। उसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखस्तान और किर्गिजिस्तान के राष्ट्रपति भाग लेंगे। ये सारे देश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना का हिस्सा हैं।
अफगानिस्तान के भी इसमें शामिल होने के संकेत हैं। ऐसे में पाकिस्तान से होकर पूरे मध्य एशिया तक चीन की सीधी पहुंच बन जाएगी।चीन के विदेश मंत्री चिन गांग गोवा में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद सीधे इस्लामाबाद पहुंचे। वहां उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन किया। उसके बाद त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की। ये सारे घटनाक्रम एक दूसरे से जुड़े नजर आते हैँ। दरअसल, सऊदी अरब और ईरान में मेल कराने के बाद से चीन दुनिया में अपने को शांति दूत के रूप में पेश करने में जुटा हुआ है। यह उसकी व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। चीन ने अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मेल-मिलाप कराने की पहल की है। इसी के तहत चीनी विदेश मंत्री ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान अफगानिस्तान के विदेश मंत्री को भी वहां बुला लिया। चीन ने दावा किया है कि इसके साथ ही अफगानिस्तान-चीन-पाकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय सहयोग की शुरुआत हो गई है। इससे इस पूरे क्षेत्र में स्थिरता आएगी। साथ ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आपसी भरोसा बढ़ेगा, जिन्हें पिछले कुछ वर्षों में सीमा विवाद का सामना करना पड़ा है। उधर अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों ने चीन की वैश्विक सुरक्षा पहल और वैश्विक विकास पहल में शामिल होने का संकल्प जता दिया है।