21-12-2022
संकेत हैं कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर के वर्चस्व के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी है। अब देखने की बात यह होगी कि क्या अरब देश इसमें उसका साथ निभाते हैं।ऐसा लगता है कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर के वर्चस्व के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी है। अब देखने की बात यह होगी कि क्या अरब देश इसमें उसका साथ निभाते हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल की सऊदी अरब यात्रा के बाद से ये सवाल चर्चित है कि क्या अरब देश अपने कच्चे तेल के बदले चीन से उसकी मुद्रा युवान में भुगतान स्वीकार करने को तैयार होंगे? अगर अरब देश इस पर राजी हो गए, तो उसका विश्व अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर होगा। पिछले हफ्ते सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अरब नेताओं के साथ अपनी बैठक के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऊर्जा कारोबार में युवान के इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा। ये खबर दुनिया भर में चर्चित हुई। इसलिए कि चीन लंबे समय से विश्व व्यापार पर डॉलर के वर्चस्व को तोडऩे की तैयारी में जुटा रहा है। डॉलर के वर्चस्व का एक प्रमुख पहलू इसका ऊर्जा कारोबार की मुद्रा होना है। अगर यहां युवान या किसी दूसरी मुद्रा ने अपनी जगह बनाई, तो समाचार एजेंसी रॉयटर ने उचित अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि उसका भूकंप जैसा असर होगा।अरब सम्मेलन में शी जिनपिंग ने कहा कि चीन खाड़ी देशों से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का आयात करता रहेगा। वह चाहता है कि इस आयात के बदले भुगतान वह युवान में करे। उन्होंने कहा कि इस भुगतान के लिए शंघाई पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस एक्सचेंज प्लैटफॉर्म का पूरा उपयोग किया जाएगा। तेल उत्पादक अरब और खाड़ी देशों का इस बारे में क्या रुख है, यह मालूम नहीं हुआ है। लेकिन ऐसी खबरें हैं कि सऊदी अरब युवान में सेटलमेंट के बारे में चीन के साथ बातचीत कर रहा है। सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक है, जबकि चीन उसके तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। सऊदी अरब ने अगर युवान में तेल का कारोबार शुरू कर दिया, तो अनेक विशेषज्ञों की राय है कि उससे दुनिया में डॉलर का वर्चस्व खत्म होने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पश्चिम से प्रतिबंधित रूस और ईरान जैसे देश पहले से ही ऐसा कर रहे हैँ।
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