27-10-2022
क्या अब वो समय आ गया है जब भारत खाड़ी देशों के नापाक इरादों को भांपकर उस पर अपनी तेल और उर्वरकों की आयात संबंधी निर्भरता को कम कर रहा है? जी हां आकड़ों से तो यही प्रतीत होता है और प्रतीत यह भी होता है कि ऐसा तो होना ही था। क्योंकि कुछ इस्लामिक देशों के पास कच्चे तेल के विराट भंडार होने के कारण वे वैश्विक पटल पर बहुत अधिक शेखी बघार रहे थे। लेकिन वो शायद ये बात भूल गए कि इस बार उनका पाला भारत से पड़ा है। उस पर से मोदी सरकार ने आकर चार-चांद लगा दिया सो अलग। मोदी सरकार के आने के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था दिन-दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है।वहीं भारत की विदेश नीति मोदी सरकार के आने से पहले इस बात पर भी निर्भर करती थी कि आसानी से राष्ट्र को कच्चे तेल की खपत मिल जाए। ऐसे में कई इस्लामिक देश भारत पर विशेष दबाव बनाते रहते थे लेकिन अब मोदी सरकार की विदेश नीति के तहत रूस से सस्ते तेल लेने से न केवल अमेरिका की छाती पर सांप लोट गया बल्कि इस्लामिक देशों को उनकी हैसियत दिखाने का भी पूरा प्रबंध कर लिया गया है।वाणिज्य विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, तेल और उर्वरकों के आयात में तेजी से वृद्धि के कारण रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार इस वित्तीय वर्ष (2022-23) के केवल पांच महीनों यानी अप्रैल-अगस्त में 18,229.03 मिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। इन आकड़ों को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि खाड़ी देशों पर भारत की निर्भरता आधिकारिक तौर पर अपने अंतिम चरण में जा पहुंची है।
इसके विपरीत, दोनों देशों के बीच होने वाला कुल वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 13,124.68 मिलियन डॉलर और 2020-21 में 8,141.26 मिलियन डॉलर का रहा है। वहीं प्री कोविड, यह 2019-20 में $ 10,110.68 मिलियन, 2018-19 में $ 8,229.91 मिलियन और 2017-18 में $ 10,686.85 मिलियन का था।दरअसल, भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर ब्लूमबर्ग की गणना के अनुसार, अप्रैल से जून के दौरान रूसी बैरल सऊदी क्रूड की तुलना में सस्ता था और मई में लगभग 19 डॉलर प्रति बैरल की छूट के साथ रूस ने जून में भारत को दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में तेल बेचा है। गौरतलब है कि पहले भारत इराक के बाद सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से करता था लेकिन अब सऊदी अरब की जगह रूसी कच्चे तेल ने ले ली है।
इसमें सबसे विशेष बात यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिन नाटो देशों की सीधे रूस से पंगा लेने का साहस नहीं था, उन्होंने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का लोभ दिया था, इनमें सबसे आगे अमेरिका का नाम रहा है। वहीं इससे अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की खपत बढ़ी और आपूर्ति नहीं हो पाई। ऐसे में रूस जो भारत का सच्चा कूटनीतिक मित्र रहा है, वो आर्थिक विपदाओं में घिर गया। ऐसे में भारत ने रूस की आर्थिक मदद के लिए रास्ता निकाला जिससे भारत को भी राहत मिली और रूस को भी आर्थिक लाभ हुआ।वहीं दूसरी ओर जब रूस पश्चिमी देशों के सैन्य और आर्थिक चक्रव्यूह में फंसा, तब वह भारत ही था जिसने पश्चिमी दबाव को झेलते हुए रूस की मदद की। इतना ही नहीं रूस अब डॉलर आधारित आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र को बदलते हुए रुपये, रूबल और युवान आधारित मौद्रिक व्यवस्था स्थापित करने की योजना बना रहा है।
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा तेल का आयात इराक से होता था और उसके बाद सऊदी अरब का स्थान आता था। लेकिन अब इस स्थान पर रूस आ चुका है। भारत ने रूस के प्रति अपना नरम रवैया बनाने के पीछे उसकी सबसे बड़ी कूटनीति यही थी कि भारत सस्ते दामों पर रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू कर सके। भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने रूस से अधिक मात्रा में कच्चा तेल खरीदा। इसी के साथ भारत की रूस पर तेल और उर्वरकों के आयात निर्भरता बढ़ती जा रही है जिससे उसकी खाड़ी देशों पर से निर्भरता जल्द ही समाप्त हो जाएगी।
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