एक समय था जब आज तक के कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने कहा था कि राहुल गांधी यदि प्रधानमंत्री पद के लिये मुलायम सिंह को स्वीकार कर लेते हैं तो सपा कर सकती है सपोर्ट कांग्रेस को। इसके उपरांत सपा पर सम्राज्य अखिलेश का किस प्रकार से हुआ यह किसी से छिपा नही है।
इसी प्रकार से कुमार स्वामी भी सोचते हैं कि जब उनके पिताजी कुछ लोकसभा सदस्यों के बल पर प्रधानमंत्री बन गए थे तो वे खुद भी क्यों नहीं बन सकते? मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी कांग्रेसी को सौंप कर वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार क्यों नही हो सकते? चलिये वे नहीं हो सकते तो उनके पिताजी देवगौड़ा तो फिर से प्रधानमंत्री बन ही सकते हैं। ज्योतिषी ने भी उन्हें यह भरोसा दिलाया था। फिर अन्य सभी दावेदारों से वे सीनियर और अनुभवी पूर्व प्रधानमंत्री हैं।
राहुल गांधी अमेरिका में जाकर भी घोषित कर चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। यही बात उन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय भी दोहराई थी।
मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने में किसको मना किया जा सकता है। इसीलिये जब कुमार स्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ बैंगलोर में ले रहे थे तब प्रधानमंत्री पद के दावेदार समझने वाले शेखचिल्लियों का जमावड़ा हो गया था।
जब कुछ लोकसभा सदस्यों के बल पर जयेन्द्र चौधरी के पिता केन्द्र में मंत्री बन सकते हैं तो जयेन्द्र चौधरी स्वयं प्रधानमंत्री पद के लिये दावा क्यों नही ठोक सकता?
अखिलेश यादव तो इसी लालसा से औरंगजेब बनकर अपने पिता को पीछे ढकेल दिया था।
मायावती तो ४० लोकसभा सीटों पर खड़े होने की अपनी पार्टी की मांग को आगे बढ़ाकर यह साबित कर दिया है कि यूपी की राजमाता मायावती भी किसी से पीछे नहीं है।
पश्चिम बंगाल की राजमाता ममता बैनर्जी तो बंगाल से कभी दिल्ली तो कभी बैंगलोर प्रधानमंत्री बनने की लालसा में ही उछल–कूद कर रही है।
राजकुमारों की भीड़ में कहां खड़े हैं राहुल गांधी? अकेले राहुल गांधी ही नहीं, उनकी तरह ही सत्ता पर दावेदारी के लिए राजकुमार, राजमाताओं और क्षत्रपों की पूरी फ ौज खड़ी है।
साल भर में फाइनल है. उससे पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के चुनाव हैं. रवायती सवाल पूछने का वक्त है. कौन होगा अगला प्रधानमंत्री? फिर जवाब का विश्लेषण किया जाए. पहला सवाल, क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनौती बनकर उभरेंगे? सियासत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुश्किल पैदा करेंगे? राहुल को लेकर जो धारणा बनाई गई है, उसके दायरे में सोचेंगे, तो इसे मजाक मानकर हंसी उड़ा देंगे. लेकिन राजनीति को अनिश्चित संभावनाओं का खेल माना जाता है.
सोनिया गांधी की तरह कांग्रेस से सदाशयता रखने वाले घनघोर समर्थक का भी जवाब है कि मौके के बावजूद राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सीधी चुनौती नहीं हैं. बल्कि राहुल गांधी खुद चुनौतियों से घिरे पड़े हैं. उनको असली चुनौती सियासत में उनकी तरह ही उभरे राजकुमार, राजमाताओं और क्षत्रपोंं से है.
सत्तर साल हो गए. शताब्दी बदले अठाहर साल बीत गए. फिर भी लोकतंत्र के परिपक्व होने का इंतजार है. पांच साल बाद आजादी की हीरक जयंती मनेगी. तब भी तय है कि सियासत पर राजतंत्र का जलबा बरकरार रहेगा. राजकुमारों ने चारों ओर से दमदार दावेदारी ठोक रखी है. नजर उठाकर देखिए, तो राहुल गांधी अकेले नहीं बल्कि राजकुमार, राजमाताओं और क्षत्रपों की पूरी फौज नजर आएगी. राजकुमार, राजमाताओं और क्षत्रपों के बीच ही सियासत के सिमटते कारोबार का नजारा मिलेगा. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक शायद ही कोई ऐसा कोना है जहां राजनेताओं की अगली पीढ़ी के शेखचिल्लियों पर दमदार दावेदारी नहीं पेश कर रहे हैं।
यह ठीक ही कहा गया है कि लगभग हर राज्य में है वंशवाद की पॉलिटिक्स।
राहुल–वरुण–प्रियंका गांधी ही नहीं, बिहार में लोगों की उम्मीद तेजस्वी–तेजप्रताप से बन रही है. नीतीश कुमार का सियासी झटका सियासत लालू के बच्चों को राजनीति में स्थापित कराने के लिए है या, झारखंड में हेमंत, पश्चिम बंगाल में अभिषेक, ओडिशा में नवीन पटनायक, उत्तर प्रदेश में अखिलेश– जयंत–आनंद, हिमाचल प्रदेश में अनुराग, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य, राजस्थान में सचिन, छत्तीसगढ़ में अमित जोगी– अभय–अजय–दुष्यंत, इसमें राहुल गांधी अकेले नहीं है, बल्कि आने वाले दिनों में उनको असली चुनौती राजकुमारों के फौज से ही मिलने वाली है. जिनमें जम्मू कश्मीर से कर्नाटक, उत्तर प्रदेश से राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के उदाहरण भरे पड़े हैं।
इन सबके सामने बड़ी पर्टियों की बैसाखी पर बने कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों के उदाहरण हैं : जैसे चरणसिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल, वी.पी. सिंह। जब ये प्रधानमंत्री बन गये तो ऊपर लिखे अन्य राजकुमार, राजमाताएं और क्षत्रप क्यों नहीं सोच सकते कि वे भी प्रधानमंत्री २०१९ के चुनावों के बाद बन सकते हंै।
नीतिश का तेजस्वी पर व्यंग भी इसी परपेक्ष्य में समझा जा सकता है : आज का युवा परिवार के दम पर राजनीति में आता है। अब इससे आगे बढ़कर मैं इस संपादकीय में लिख सकता हूं कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने से भी कोई नहीं रोक सकता।
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