11-10-2022
अटल जी की यह कविता अवश्य पढि़ए। इस कविता में सिर्फ उत्साह-उमंग-जोश ही नहीं है बल्कि यह कविता भारत के जनमानस की बात कहती है, उस जनमानस की जो वर्षों से कश्मीर को भारत का मुकुट बताता आया है, उस जनमानस की जो कश्मीर के लिए अपने बेटों को न्योछावर करता आया है, उस जनमानस की जो कश्मीर के बिना भारत की कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन वो जनमानस स्वतंत्रता के बाद से ही हताश था, निराश था, उदास था, इसकी वजह एकदम साफ थी- सरकारों का कश्मीर पर ढुलमुल रवैया, लेकिन 2014 के बाद सबकुछ बदल गया। संसद में सीना पीटकर अमित शाह ने दावा किया कि क्कह्र्य हमारा है, तो उस जनमानस ने चैन की सांस ली। जब आर्टिककल 370 हटाया गया तो उस जनमानस ने त्योहार की तरह इसे सेलिब्रेट किया, अब उसी जम्मू-कश्मीर को लेकर जो ख़बर सामने आई है, उसे भी सेलिब्रेट करने की आवश्यकता है।तो इस सेना के मुखिया हैं कमर जावेद बाज़वा, बाज़वा से भारतीय अपरिचित नहीं हैं क्योंकि बाज़वा जेल में बंद कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धू के परममित्र भी हैं। सिद्धू ने बाज़वा को ख़ूब झप्पियां पाईं हैं, तो इसी बाज़वा ने अब जो कहा है वो बहुत महत्वपूर्ण है। बाजवा का 6 वर्ष लंबा कार्यकाल इसी नवंबर में ख़त्म हो जाएगा और इससे पहले बाजवा ने जो बयान दिया है वो कई मायनों में महत्वपूर्ण है। क़मर जावेद बाजवा ने कहा कि हमें सभी द्विपक्षीय मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर विचार करना चाहिए। एक-दूसरे से लडऩे के बजाय हमें एकसाथ आकर गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, जनसंख्या विस्फोट और बीमारियों से लडऩा चाहिए। पाकिस्तान मिलिट्री अकेडमी में जनरल बाजवा ने इसके साथ ही कहा, “हम कोशिश कर रहे हैं कि दक्षिण एशियाई देशों में जो राजनीतिक बातचीत पर रोक लगी है, उसे खत्म किया जाए और सभी द्वपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए।”जनरल बाजवा का यह बयान अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि कभी कभार ही ऐसा होता है जब पाकिस्तान का आर्मी चीफ दक्षिण एशिया में शांति की बात करे और उसमें कश्मीर का जिक्र ना करे। भले ही अपने बयान में बाजवा ने सीधे तौर पर भारत का नाम नहीं लिया है लेकिन उसका इशारा सीधे-सीधे भारत की तरफ ही था, वो भी बिना कश्मीर का जिक्र किए हुए। इसके क्या-क्या अर्थ हो सकते हैं।
इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि पाकिस्तानी सेना अब समझ गई है कि कश्मीर की लड़ाई वो कभी नहीं जीत पाएंगो इसलिए उसका जिक्र करना ही बंद कर दो या फिर यह भी हो सकता है कि मोदी जब तक भारत में है तब तक कश्मीर मुद्दे का जिक्र करना बेवकूफी है इसलिए उससे इतर बात करो। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि पाकिस्तानी सेना समझ गई है कि आज पाकिस्तानी सत्ता के पास पैसा नहीं है, उधारी पर उनका देश चल रहा है। आने वाले समय में हो सकता है सेना के बजट को भी कम कर दिया जाए इसलिए कश्मीर को छोड़कर दूसरे मुद्दों पर बात करो जिससे कि व्यापार करने का रास्ता खोला जा सके जो भी हो लेकिन एक बात स्पष्ट है कि पाकिस्तानी सेना ने अभी के लिए तो कश्मीर पर अपनी उम्मीदें छोड़ दी हैं।अब आगे बढ़ते हैं और आगे बढ़ते हुए हम बात करते हैं अमेरिका और जर्मनी की। पाकिस्तानी सेना ने भले ही अपने एजेंडे से कश्मीर को निकाल दिया हो लेकिन अमेरिका और जर्मनी यह बात नहीं पचा पा रहे है। वो पाकिस्तान को दोबारा से पालने लगे हैं, दोबारा से उसके मुंह में रुपये भरने लगे हैं, उसके एजेंडे को समर्थन देने लगे हैं। हाल ही में अमेरिका बार-बार ऐसा करते हुए देखा जा सकता है। अमेरिका ने सबसे पहले तो पाकिस्तान को स्न-16 के लिए अरबों रुपये दिए इसके बाद उसने बाजवा को पेंटागन में बुलाकर सम्मानित किया।यहां तक तो ठीक था लेकिन इससे आगे जो अमेरिका ने किया उससे उसकी नियत पर सवाल खड़े हो गए। पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत ने डोनाल्ड ब्लोम ने पिछले दिनों पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी कि क्कह्र्य का दौरा किया था। सबसे पहले तो क्कह्र्य में अमेरिकी राजदूत का दौरा ही गैर-कानूनी है क्योंकि क्कह्र्य भारत की जमीन है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा करके रखा है। लेकिन दौरा करने के बाद अमेरिकी राजदूत ने जो कहा वो और अमेरिका का घटिया चेहरा दिखाता है। अमेरिकी राजदूत ने क्कह्र्य को आजाद कश्मीर कहकर संबोधित किया जिसका जिक्र हर बार आजाद कश्मीर कहकर ही किया।
अमेरिका की हरकत को भारत ने खाली नहीं जाने दिया, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “Óपाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत ने हाल ही में पाक अधिकृत कश्मीर का दौरा किया और कई मीटिंग में भी शामिल हुए। इस पर हमें आपत्ति है क्योंकि कश्मीर के इस हिस्से को भारत अपना मानता है। भारत ने इसे लेकर अमेरिका के समक्ष अपनी आपत्ति जता दी है।”
अमेरिका की इस बिलबिलाहट के पीछे की वज़ह आप जानते ही हैं, अमेरिका चाहता है कि भारत उसके निर्देश पर चले लेकिन भारत अपने अनुसार चलता है, अपने हित को देखते हुए फैसले करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी अमेरिका ने बहुत कोशिश की कि किसी तरह से भारत को रूस के विरुद्ध खड़ा कर दिया जाए लेकिन भारत ने वही किया जो उसे सही लगा। इससे अमेरिका जल-भुन गया, उसने पहले भारत को धमकी दी, काम नहीं चला तो डर दिखाया, जब उससे भी कुछ नहीं हुआ तो विनती करने लगा और जब उससे भी कुछ नहीं हुआ तो अब पाकिस्तान को दोबारा से भीख डालने लगा।
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