22-8-2022
किसी भी क्षेत्र के लिए उसकी तरक्की का रास्ता उसकी स्वतंत्रता के साथ ही खुलता है। जब तक कोई ऐसा शासन हो जिसका नियंत्रण गैर-लोकतंत्रवादी हो या उसकी सोच में विष भरा हो, विभाजन चाहता हो तब तक वो क्षेत्र पनप ही नहीं सकता है। कुछ ऐसा ही हाल देश का मुकुट कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर का था। अब भले ही उसने अनुच्छेद 370 से निजात पा लिया हो, देश की मुख्यधारा से धीरे-धीरे ही सही पर जुडऩे लगा है पर जब तक लोकतांत्रिक रूप से उस क्षेत्र में लोकतंत्र का पर्व नहीं मन जाता तब तक बहुत कुछ अधूरा रह गया इस बात का भान होने ही लगता है।
लेकिन शीघ्र ही यह पर्व अर्थात चुनाव भी होने को है जिससे जनप्रतिनिधियों को चुना जा सके। ऐसे में जो केंद्र शासित प्रदेश शांति और स्थिरता का नया अध्याय लिख रहा है। अब समय आ गया है कि उस क्षेत्र के लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को सुगम बनाया जाए।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी हिरदेश कुमार सिंह ने बुधवार को कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में 1 जनवरी, 2019 के बाद होने वाली मतदाता सूची के विशेष सारांश संशोधन से मौजूदा मतदाताओं में लगभग 25 लाख नये मतदाताओं के जुडऩे की संभावना है। “अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, सामान्य रूप से रहने वाला व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए जम्मू-कश्मीर में मतदाता बन सकता है।” यानी क्षेत्रीय बाध्यता को पूर्ण रूप से ख़त्म करने की निमित्त यह कदम सराहनीय कहा जा सकता है। स्थायी-अस्थायी से ऊपर उठकर लिया गया निर्णय बेहद महत्वपूर्ण इसलिए बन जाता है क्योंकि यदि जुडाव लाना है तो स्वयं को ही लाना होता है, कोई बाहर से आकर पहल नहीं करेगा ।
सीईओ ने बताया कि 15 सितंबर को प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाता सूची का प्रारूप जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि “विधानसभा सीटों के पुनर्गठन के बाद हमने 600 नये मतदान केंद्र जोड़े हैं और कुल मतदान केंद्रों की संख्या अब 11,370 हो गयी है।” उन्होंने यह भी बताया कि एक अक्टूबर तक या उससे पहले 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले युवा मतदाता के रूप में नामांकित होने के पात्र हैं। हालांकि नये मतदाताओं को जोडऩा एक निरंतर अभ्यास है और कोई भी हमसे ऑफ़लाइन और ऑनलाइन संपर्क कर सकता है, चल रहे विशेष सारांश संशोधन के लिए 25 अक्टूबर दावों और आपत्तियों की अंतिम तिथि है और 25 नवंबर तक 90 विधानसभा क्षेत्रों के अनुसार अंतिम मतदाता सूची जारी की जाएगी।
जिस स्तर और गति से काम चल रहा है यह कोई आसान बात नहीं थी यह सभी को विदित है। सूची के इतर घाटी के बाहर रहने वाले कश्मीरी प्रवासियों के बारे में बोलते हुए सीईओ ने कहा कि ऐसे विस्थापित लोगों के लिए विशेष प्रावधानों के अनुसार उनके बीच नये मतदाताओं को पंजीकृत करने के लिए शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यह कदम उठाना अभी बेहद आवश्यक है, यदि यह अब भी नहीं होता तो विस्थापन जैसी बातें तो दूर घाटी छोड़कर गए कश्मीरी पंडितों को अब भी वरीयता नहीं दी जाती जो कि बड़ा अन्याय होता लेकिन विशेष रूप से शिविरों का आयोजन किया जाएगा अब तो इसकी भी पुष्टि कर दी गयी है।
ज्ञात हो कि पूर्व में संविधान के अनुच्छेद 370 और उसके बाद के विशेष दर्जे के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश में संसद का कोई भी अधिनियम लागू नहीं था। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, जो भारत में चुनाव प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, वहां भी लागू नहीं था। विशेष दर्जा ने राज्य को विशिष्ट चुनाव कानून प्रदान किए, जहां वहां रहने वाले लोग कभी भी राज्य के मतदाता नहीं बन सकते। कुछ लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करने और राजनीतिक एकाधिकार का प्रबंधन करने के एक जानबूझकर किए गए प्रयास में जनसांख्यिकी को विनियमित किया गया। यह किसी खाड़ी इस्लामिक देश जैसा था, जहां दशकों से रह रहे लोग कभी मतदाता नहीं बन सकते।
मजदूरों, महिलाओं और अन्य प्रवासियों जैसे आम लोगों के अधिकारों को निरस्त्र कर दिया गया था। उनकी मान्यता, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और चुनाव के अधिकार का वर्षों से उल्लंघन किया गया था। पूरा जम्मू, कश्मीर और लद्दाख कुछ स्वार्थी राजनेताओं के बंदी बन उन्हीं के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया था। बीते माह, जम्मू और कश्मीर के परिसीमन आयोग ने विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन करते हुए जम्मू को छह और कश्मीर को एक सीट आवंटित की थी।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की कुल 90 सीटों में, जम्मू में अब पहले की 37 सीटों में से 43 सीटें हैं, और कश्मीर में पहले की 46 सीटों में से 47 हैं। इसके बाद एक आस यह जगी कि नहीं अब लोकतंत्र, स्वतंत्रता और अन्य सभी मूलभूत जनजीविका के कानूनों से सभी आम जन का सीधा लाभ हो पाएगा। ऐसे में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को साकार करने में मदद करेगा।
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