8-7-2022
भारत की विदेश नीति में साल 2014 के बाद से बड़ा बदलाव आया है। देखा जाए तो आज भारत विदेश नीति के मामले में अपने सबसे अच्छे स्तर पर खड़ा है। भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है चाहे वो कोई भी सम्मेलन हो या फिर कोई मंच भारत हर जगह अपनी बातें मजबूती से रखता नजर आ रहा है और दुनिया के कई देशों को अपनी बातें मानने को विवश भी कर रहा है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि भारत की विदेश नीति में आखिर इतना सुधार कैसे आया? कैसे हर जगह आज भारत इतनी मजबूती के साथ खड़ा हुआ?
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी देखने को मिला कि भारत शुरू से लेकर अब तक अपने रवैये पर तटस्थ है। भारत ने न तो रूस का साथ दिया और न ही यूक्रेन का। ऐसा कर भारत ने किसी को नाराज भी नहीं किया। परंतु यह संभव कैसे हो पाया? इन सबके पीछे की वजह है “कृष्ण कूटनीति” जिसके रास्ते पर भारत की विदेश नीति चलायी जा रही है।
देखा जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध का मामला एक बहुत ही जटिल मुद्दा था और भारत के लिए इसमें किसी एक का पक्ष लेना संभव नहीं था। अगर भारत यूक्रेन का पक्ष लेता तो इसकी आंच भारत और रूस की दोस्ती पर आ जाती। वहीं अगर वे रूस के पक्ष में खड़ा होता तो पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका के साथ भारत के संबंध बिगडऩे के आसार थे। ऐसे में भारत ने बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया और इसके लिए अपनायी “कृष्ण कूटनीति”।
भगवान श्रीकृष्ण जैसा महान कूटनीतिज्ञ दूसरा नहीं हो सकता। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार जब कुरुक्षेत्र की लड़ाई लगभग तय थी तो श्रीकृष्ण ने युद्ध रोकने के लिए कदम उठाया था और वो कौरवों के पास शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गये थे। उन्होंने कौरवों के सामने वो तमाम स्थितियां रखीं जिससे की युद्ध को टाला जा सके। युद्ध रोकने का उन्होंने भरपूर प्रयास किया था।
अब भारत की विदेश नीति भी श्रीकृष्ण की कूटनीति पर ही आगे बढ़ायी जा रही है। यह बात स्वयं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक कार्यक्रम के दौरान कही। दरअसल, मंगलवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय में “मोदी ञ्च20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी” पुस्तक पर चर्चा में शामिल हुए थे। इसी दौरान जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि फरवरी में संकट शुरू होने के बाद भारत ने “सही रास्ता” अपनाया था। उन्होंने कहा कि यह बहुत जटिल मसला है, जहां सबसे तात्कालिक मुद्दा युद्ध को बढऩे से रोकना है।
आगे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की रणनीति की तुलना भगवान श्रीकृष्ण की कूटनीति से की। जयशंकर ने कहा कि श्रीकृष्ण ने युद्ध को रोकने के लिए उनके बस में जो भी था, उन्होंने वो सब कुछ किया और यही दिल्ली का भी रुख है। भगवान कृष्ण की तरह भारत ने युद्ध को रोकने और बातचीत और कूटनीति के माध्यम से शांति की राह पर वापसी की वकालत करने के लिए सब कुछ किया। उन्होंने कहा कि भारत को अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक हितों के साथ यूक्रेन संकट से निकलने वाले बड़े मुद्दों जैसे ईंधन, भोजन और उर्वरक की कमी का भी प्रबंधन करना है।
यानी आज के समय में भारत की विदेश नीति भगवान कृष्ण कूटनीति के रास्ते आगे बढ़ायी जा रही है और यही वजह है कि देश का डंका आज विश्व पटल पर बज रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हमें हमारे धार्मिक ग्रंथों के द्वारा बेहद ही बहुमूल्य सीख दी जाती है जो देश को चलाने, रणनीति बनाने में बहुत काम आती है।
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