7-7-2022
महाराष्ट्र के राजनीतिक द्वंद्व में जिस प्रकार महाविकास अघाड़ी को धोबी पछाड़ मिली है, उससे यह सिद्ध हो गया है कि अघाड़ी अब भूतकाल हो गया है। वर्तमान में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भाजपा के देवेंद्र फडणवीस सत्ता में काबिज हो चुके हैं। इन दोनों ने ही अघाड़ी की हालत पस्त करने का काम किया है। महाविकास अघाड़ी के पतन की तस्वीर प्रतिदिन स्पष्ट होती जा रही है। सोमवार को हुए फ्लोर टेस्ट ने अपने नतीजों से अंतिम मुहर लगा दी कि महाविकास अघाड़ी अब नाम मात्र के लिए अस्तित्व रखता है बाकी तो वो अस्तित्व विहीन ही है।
स्पीकर चुनाव के बाद जब फ्लोर टेस्ट की बारी आयी तो नव-शपथ ग्रहण करने वाली एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार ने सोमवार को विश्वास मत हासिल किया। सत्तारूढ़ गठबंधन ने भाजपा, शिवसेना, छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों के अलावा उद्धव खेमे के विधायक संतोष बांगर और विधायक श्यामसुंदर शिंदे के वोट भी हासिल किए। इसका अर्थ है कि शिवसेना के 55 में से 40 विधायक अब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के पास हैं।
असल खेला तो तब हुआ जब एक दिन पूर्व हुए स्पीकर चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार को कुल 107 वोट मिले और बहुमत परीक्षण वाले दिन संख्या गिरकर 99 ही रह गयी। ऐसे में विश्वास नाम की चीज ही नहीं है, कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव के विधायकों के मन में यही धून चल रही होगी। और तो और महाराष्ट्र विधानसभा में शिंदे धड़े के सचेतक भरत गोगावाले ने उद्धव ठाकरे के धड़े के 14 शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रस्ताव पेश किया है। प्रस्ताव विश्वास मत में व्हिप का उल्लंघन करने के लिए शिवसेना के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग करता है। ज्ञात हो कि, उद्धव ठाकरे के धड़े के सचेतक सुनील प्रभु ने भी शिंदे गुट के उन विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रस्ताव भेजा था जिन्होंने कल शिवसेना के अध्यक्ष उम्मीदवार के खिलाफ मतदान किया था।
ऐसी स्थिति में महाविकास अघाड़ी का विनाश स्वयं उन्हीं तीन पहियों ने कर दिया जिनके सहारे अघाड़ी सरकार बनी थी। फ्लोर टेस्ट पास करने के बाद तो भाजपा को नया जीवन तो उद्धव को भयंकर झटका लगा। उद्धव के हाथ न ही सरकार बची, न ही पार्टी और न ही बचे कूचे विधायकों की सदस्यता क्योंकि उद्धव के समर्थन वाले सभी विधायकों को अयोग्य करार कर देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। ऐसी बुरी हालत कि अब रजया में विपक्ष के नेता भी एनसीपी के अजित पवार बने हैं, उद्धव का अस्तित्व कहीं भी रहा ही नहीं है और कांग्रेस का तो सरकार बनने से लेकर गिरने तक होना या न होना एक समान था।
सौ बात की एक बात यह है कि उद्धव ठाकरे की सबसे बड़ी भूल “महाविकास अघाड़ी” ही था जो सत्ता के लोभ में उसके सहारे सरकार तो बना ली पर जल्द ही अधिकार खो दिए। अब न उद्धव के पास पार्टी है और न विधायकों का साथ है और महाविकास अघाड़ी तो खैर भूतकाल हो ही चुका है।
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