26-6-2022
1966 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से इंदिरा गांधी लगातार हर वो दांव आजमाती रहीं जिससे उनकी कुर्सी में जरा भी डगमगाहट की आशंका ना बचे। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से इंदिरा गांधी कांग्रेस के अंदर जमे दूसरी धारा के नेताओं के लगातार निशाने पर थीं। 1967 के आम चुनाव में जब गैर-कांग्रेसवाद के नारे के तले कांग्रेस का जनाधार खिसका तो उनके विरोधियों को नई ताकत मिल गई। 1969 आते-आते अंदरूनी घमासान तेज हो गया और कांग्रेस का विभाजन हो गया। पार्टी के अंदर मौजूद अपने शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों से निपटने के लिए इंदिरा गांधी साम-दाम-दंड-भेद की नीति पर उतर आईं। पार्टी के विभाजन के बाद लोकसभा में कांग्रेस के पास 228 सदस्य रह गए थे और उसकी सरकार वामपंथियों के सहारे टिकी थी। इंदिरा गांधी ने तय किया कि वे मध्यावधि चुनाव कराएंगी और लोकसभा भंग कर दी गई।
अपने कुछ तेजतर्रार सलाहकारों से मंत्रणा कर 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओÓ का नारा उछाला। बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रीवी पर्स की समाप्ति जैसे कदमों के साथ इंदिरा गांधी ने आम लोगों में अपनी ये छवि पेश की कि वो गरीबों की हमदर्द हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जनसभाओं में आमजन की हमदर्दी ये कहते हुए बटोरी कि वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ। पांचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने चुनाव में दो-तिहाई सीटें हासिल कर भारी सफलता प्राप्त कर ली।
इंदिरा के कामकाज के तरीके से बढ़ा असंतोष
जल्दी ही ये साफ होने लगा कि गरीबी हटाओ का नारा महज चुनाव जीतने का एक हथकंडा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आम लोगों की गरीबी हटाने की जगह अपने बेटे संजय गांधी के निजी मारुति कार कारखाने के विकास जैसे कामों में लग गईं। ‘गरीबी हटाओÓ के नारे को अभी दो साल भी नहीं हुए थे कि 1973 में देश भर में बिगड़ते हुए आर्थिक हालात, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए। इंदिरा गांधी पर एकाधिकारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जन आंदोलन शुरू हुआ और उसी के असर को दबाने के लिए 1975 में आपातकाल लगा दिया गया। यानी गरीबी तो नहीं हटी, उल्टा इंदिरा गांधी ने देशवासियों को आपातकाल की काली सुरंग में भेज दिया।
गरीबी हटाने की योजना पर कैसे काम किया जाता है वो आज कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासवादी योजनाओं से सीखने की जरूरत है। इन योजनाओं के केंद्र में हमेशा गरीब, किसान और समाज के वंचित वर्गों के लोग होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों को फायदा देने वाली एक पर एक योजना को जमीन पर लागू कर ये साबित किया है कि नीयत में खोट नहीं हो तो जनता से किये तमाम वादों को पूरा किया जा सकता है। जनधन से लेकर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी कई योजनाएं हैं जिनसे गरीबों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है।
कांग्रेस राज में सरकारी स्कीम के लाभार्थियों के हाथ 100 रुपये में से महज 15 रुपये लगते थे। लेकिन अब सौ फीसदी रकम सीधे उनके खाते में पहुंच रही है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के जरिये सरकार ने लाखों करोड़ रुपये बचाए हैं। आधार से डीबीटी योजना के जुडऩे से बिचौलिये और फर्जी लाभार्थी खत्म हो चुके हैं।
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