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Editorial: जम्मू-कश्मीर में मोदी सरकार के फैसलों से पाक ही हालत खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे जैसी

8-5-2022

खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे, पाकिस्तान और उसके नए नवेले सत्ता पर विराजे नेताओं की स्थिति ठीक कुछ इस प्रकार की है। भारत और विशेषकर भारत के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर में हलकी हलचल पाकिस्तानी हुक्मरानों की नींद उड़ा देती है। यह तब है जब अवैध रूप से कब्जाए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को संभाल नहीं जा रहा और सपने हैं भारत के हिस्से वाले कश्मीर को हथियाने के।
दरअसल, राजनीतिक रूप से पुन: जम्मू-कश्मीर को सुदृढ़ बनाने के लिए जिस परिसीमन आयोग का गठन मार्च 2020 में किया गया था अब बृहस्पतिवार को उसकी अधिसूचित अंतिम रिपोर्ट जारी कर दी गयी है। जिसके बाद पाकिस्तान की सुलगने के साथ ही उसकी तबियत लाल-हरी-नीली और पीली हो गयी है। पाकिस्तान ने जो ज्ञान दिया है उसका प्रतिउत्तर ‘द वेडनेसडेÓ के अनुपम खेर के इस डायलॉग से दिया जा सकता है “पूछा मैंने, पूछा।”
दरअसल, परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू संभाग के लिए 43 विधानसभा सीटों और कश्मीर क्षेत्र के लिए 47 सीटों की सिफारिश की है। आयोग ने विधानसभा में कश्मीरी प्रवासियों और ‘पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीरÓ से विस्थापित लोगों को प्रतिनिधित्व देने की भी सिफारिश की। इसके बाद तो पाकिस्तानियों का रुदन ऐसे चालू हुआ कि बात ही क्या की जाए। पाकिस्तानी सरकार की जड़ें हिल गयी हों ऐसी ऐसी प्रतिक्रियाएं आने लगी। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि पाकिस्तान में भारतीय राजनयिक से कहा गया कि परिसीमन आयोग का मकसद जम्मू-कश्मीर की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी को ”बेदखल करना और कमजोर बनानाÓÓ है। बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान स्पष्ट रूप से जम्मू-कश्मीर पर बने तथाकथित परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को खारिज करता है। बयान के अनुसार, भारतीय पक्ष से कहा गया कि यह पूरी कवायद हास्यास्पद थी और जम्मू-कश्मीर में सभी राजनीतिक दलों ने इसे पहले ही खारिज कर दिया था, क्योंकि इस कदम के जरिये भारत केवल पांच अगस्त 2019 के अपने अवैध कृत्य को ”वैधÓÓ बनाना चाहता था।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने यहां भारतीय राजनयिक को तलब किया है और एक सीमांकन दिया है जिसमें इस्लामाबाद द्वारा परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करने की बात कही गई है। भारत सरकार द्वारा परिसीमन आयोग को जम्मू और कश्मीर में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से बनाने का काम सौंपा गया है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना देसाई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल ने गुरुवार को केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर किए।
रिपोर्ट किया गया है कि अंतिम परिसीमन आदेश के अनुसार, इस क्षेत्र के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू क्षेत्र और 47 कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा होंगे। इससे पहले जम्मू में विधानसभा में केवल 37 सीटें थीं, जबकि कश्मीर का प्रतिनिधित्व 46 सीटों के साथ हुआ था। इस असंतुलन ने कश्मीर को विधानसभा में अधिक प्रतिनिधित्व करने में मदद की, यही वजह है कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में हमेशा एक मुस्लिम मुख्यमंत्री रहा है, और कभी भी एक हिंदू या अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित व्यक्ति नहीं था।

नई परिसीमन संख्या 2011 की जनगणना पर आधारित है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू संभाग की कुल जनसंख्या 53 लाख 78 हजार 538 थी, जिसमें डोगरा प्रमुख समूह था, जिसमें 62.55 प्रतिशत आबादी शामिल थी। जम्मू का क्षेत्रफल 25.93 प्रतिशत और जनसंख्या का 42.89 प्रतिशत है। इसके विपरीत 2011 में कश्मीर संभाग की जनसंख्या 68, 88,475 थी जिसमें 96.40 प्रतिशत मुसलमान थे। हालांकि इसमें राज्य के क्षेत्रफल का 15.73 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन यह आबादी का 54.93 प्रतिशत है।

पांच साल पहले स्थिति कुछ और थी

पांच साल पहले तक जो अकल्पनीय था, उसे आज मोदी सरकार ने एक संभावना बना दिया है – यह सब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और उसके बाद किए गए परिसीमन के कारण हुआ। जम्मू और कश्मीर में परिसीमन लंबे समय से राष्ट्रवादियों की सबसे बड़ी मांगों में से एक था, क्योंकि उन्होंने जम्मू के क्षेत्र को अपना सही प्रतिनिधित्व देने के लिए जोर दिया, न कि केवल शीतकालीन राजधानी जहां राजनेता कश्मीर के बर्फीले सर्दियों के बीच एक गर्म विकल्प की तलाश करते हैं। जम्मू-कश्मीर में अंतिम परिसीमन अभ्यास 1995 में किया गया था। 2002 में, फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2026 तक परिसीमन अभ्यास को फ्रीज करने के लिए जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन किया। परिणाम स्वरुप, फारूक अब्दुल्ला सरकार की तत्कालीन गलतियों को सुधारने के लिए- 6 मार्च, 2020 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में, इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी सदस्य और जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी हैं। पांच सांसद सहयोगी सदस्य के रूप में आयोग को रिपोर्ट के साथ आने और निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए एक वर्ष का समय दिया गया था। हालांकि, कोविड और कुछ नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसदों द्वारा आयोग की कार्यवाही का बहिष्कार करने का मतलब था कि पहला मसौदा केवल इस साल की शुरुआत में जनवरी में प्रस्तुत किया गया था।

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अब जब जम्मू कश्मीर में एक हिन्दू सीएम बनने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी तो स्वाभाविक है कि जिहादियों और पाकिस्तान की तो ऐसा होने के स्वप्न भर से घिग्घी बंध जाएगी। पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में हो रहे परिसीमन जैसे अभ्यास और उसके अंतिम परिणाम को खारिज करना सदैव जारी रखेगा क्योंकि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती है। हालांकि, भारत सरकार अपने कोशिश से पूरी तरह बेफिक्र है। वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश परिसीमन के साथ आगे बढ़ रहा है और इस्लामाबाद इस प्रक्रिया में मुंह चलाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकता है।