2-5-2022
अप्रैल के आखिरी महीने में एक साथ कोयले से जुड़ा कथित संकट सामने आया है। दिल्ली में राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि देश की राजधानी में केवल 1 दिन का कोयला स्टॉक मौजूद है। दूसरी और महाराष्ट्र और केंद्र सरकार के बीच में कोयला खरीद के बाद भुगतान को लेकर विवाद हो गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार ने कोयले का भुगतान नहीं किया है जबकि महाराष्ट्र सरकार ने ऐसे आरोप से अपना पल्ला झाड़ लिया है।
दिल्ली के बिजली मंत्री ने कहा था कि मेट्रो ट्रेनों और अस्पतालों सहित प्रमुख स्थानों पर, कोयले की कम आपूर्ति के कारण, राष्ट्रीय राजधानी को बिजली की कमी का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली के बिजली मंत्री ने एक पत्र में केंद्र सरकार से शहर के थर्मल प्लांटों को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है ताकि बिजली की मांग को पूरा किया जा सके। दिल्ली अपनी बिजली की आवश्यकता का 26-30 प्रतिशतदारी और ऊंचाहार बिजली स्टेशनों के माध्यम से पूरा करती है।
“ये पावर स्टेशन दिल्ली के कुछ हिस्सों में ब्लैकआउट को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और आगामी गर्मी के मौसम में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, अस्पतालों और लोगों को बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक हैं।”
ऊंचाहार और दादरी के स्टेशन अच्छे से कार्य करें तथा दोनों के पास क्रमश: 95 हजार मीट्रिक टन और 14000 मीट्रिक टन कोयला भंडार मौजूद है।
केंद्रीय बिजली मंत्री ने कहा कि बिजली कटौती मुख्य रूप से इसलिए हो रही है क्योंकि राज्यों ने सीआईएल को अपना बकाया नहीं चुकाया है। केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि 18 अप्रैल को, राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों या राज्य बिजली बोर्डों द्वारा, केंद्र संचालित सीआईएल को 7,918.72 करोड़ रुपये की बकाया राशि भुगतान करनी थी, जिसमें महाराष्ट्र की पावर जेनेरेशन यूटिलिटी पर कम से कम ? 2,608.07 करोड़ देनदारी बाकी थी।
स्पष्ट है कि केंद्र और राज्य के दामों में भारी अंतर है जो विवाद का कारण है। पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में किसी प्रकार का चोर बचा था कि देश में कोयला संकट पैदा होता है और हमारे पास कोई लेकर पर्याप्त भंडार नहीं है। उस समय कई राज्यों द्वारा एक दिन और 2 दिन की कोयला भंडारण की बात स्वीकार की गई थी और कहा गया था कि जल्द ही ब्लैकआउट की स्थिति बनती है। हालांकि 1 दिन के शेष कोयला भंडार के बाद कम से कम 1 महीने तक चलाई गई किंतु कोयला खत्म नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त गैर भाजपाई राज्यों में दिखाई दे रहा था।
जिस प्रकार विपक्ष ने राफेल के ऊपर एक कथित घोटाले की कहानी लिखी थी उसी प्रकार यह कोयला संकट की कहानी भी रखी जा रही है। इसका उद्देश्य देश में घबराहट और अस्थिरता को बढ़ाना है जिससे केंद्र पर दबाव बढ़े। पिछली बार ऐसे प्रयास सफल हुए थे इसलिए कुछ महीने रुक कर नए सिरे से पुन: प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि आम नागरिकों पर विपक्ष के ऐसे खोखले आरोपों का कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला है।
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