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Editorial:क्या हिंसा से त्रस्त लोग बंगाल में टीएमसी की उल्टी गिनती शुरू करेंगे

20-4-2022

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार द्वारा कोरोनाकाल में मई 2020 और जनवरी 2021 के बीच चक्रवात अम्फान (तूफ ़ान) प्रभावित राज्य की गरीब आबादी के लिए गृह निर्माण अनुदान में 2,000 करोड़ रुपये के वितरण में “बहुत बड़ी संख्या में अनियमितताओं” पर सवाल उठाए हैं। अम्फान के आने से कई घर उजड़ गए थे, जिसके बाद केंद्र सरकार ने सहायता और घरों के पुनर्निर्माण के लिए राज्य सरकार को जनता के हित और राहत के लिए सहायता राशि दी थी, जिसका वितरण हुआ ही नहीं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीएजी के अवलोकन के हवाले से कहा कि “पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अम्फान राहत में बहुत बड़ी संख्या में अनियमितताएं थी, जो दर्शाती हैं कि न केवल लाभार्थियों का चयन गैर-पारदर्शी था बल्कि राहत को अनुचित तरीके से वितरित किया गया था और भुगतान में धोखाधड़ी तक की गई।” ऑडिटर ने जिम्मेदारी तय करने के लिए सरकारी अधिकारियों के खिलाफ राहत की ‘वितरण की प्रक्रियाÓ और ‘आवश्यक जांचÓ की सिफारिश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भेज दी है।
यह सत्य है कि घोटाले आज की नहीं बहुत पुरानी बीमारी है, जिसके नियंत्रण के लिए कई बार उच्च स्तरीय कमेटियां गठित की जाती हैं पर इस कमेटी के लोग ही अन्तोत्गत्वा भ्रष्ट निकल जाते हैं, ऐसे में किसपर भरोसा किया जाए और किसे विश्वासपात्र माना जाए यह बेहद जटिल काम है। यह टीएमसी सरकार की नीचता ही है जो कोरोना और उसके साथ ही एक और अम्फान (तूफ़ान) की मार झेल रहे पीडि़तों के हक़ का पैसा सीएम ममता और उनके मंत्री और आला अफसर डकार गए और बेशर्मी ऐसी कि उन्होंने यह भी दिखा दिया कि अधिकांश पीडि़तों को राहत मिल गई है।
वास्तव में सब था इसके उलट ही, केंद्रीय ऑडिटर की ओर से गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कलकत्?ता हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद राज्?य सरकार की ओर से राहत वितरण के ऑडिट में सहयोग नहीं मिला। सीएजी ने पाया कि ‘लाभार्थियों का चयन पारदर्शी तरीके से नहीं किया गया। इसके अलावा फंड भी अनुचित तरीकों से बांटे गए।Ó सीएजी ने पाया कि 1,500 से ज्?यादा मामलों में लोगों को 94 लाख रुपये का भुगतान किया, जबकि उनके दावे इस आधार पर खारिज हो चुके थे कि मौके पर कोई नुकसान नहीं मिला। इस देश की कितनी बड़ी विडंबना है कि जहां एक पत्ता न गिरा उसे बाढ़ प्रभावित बनाकर उसे सहायता राशि आवंटित कर दी गई और मूल रूप से त्रस्त और जिनके घर उजड़ गए उन लोगों को राशि का “र” भी नसीब नहीं हुआ।
यह बिल्कुल 2004 के उस बाढ़ राहत घोटाले की पुनरावृत्ति है जो बिहार में आरजेडी ने की थी, जिसका निर्देशन स्वयं आरजेडी सुप्रीमो और तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया था। सुशील मोदी ने बाढ़ राहत घोटाले के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि केंद्र ने बाढ़ राहत के लिए बिहार को 400 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी थी, लेकिन चारा घोटाले की तरह कोई राहत सामग्री नहीं खरीदी गई और फर्जी बिल से आरजेडी नेताओं ने राहत राशि हड़पने का जबरदस्त घोटाला किया। पश्चिम बंगाल में भी आपदाओं के डबल अटैक के समय पुन: इस रीत को टीएमसी और ममता बनर्जी ने बखूबी निभाया और अम्फान (तूफ़ान) में ममता बनर्जी ने बिना तथ्यों और अवैध ढंग से सहायता राशि को घोटाले में परिवर्तित कर दिया और जो सहायता जहां पहुंचनी चाहिए थी, वहां कभी पहुंची ही नहीं।

इस घोटाले को बीते वर्ष गृह मंत्री अमित शाह ने भी उजागर करते हुए टीएमसी सरकार पर निशाना साधा था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अम्फान तूफ़ान की सहायता राशि में किए गए घोटाले को लेकर ममता सरकार पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 10,000 करोड़ रुपए की सहायता राशि भेजी थी, लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों को कुछ नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया था कि भतीजा एंड कंपनी ये पैसा खा गई। उन्होंने भतीजा अर्थात् ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को संदर्भित करते हुए यह बात कही थी।

शाश्वत सत्य तो यही है कि जो व्यक्ति इस जन्म में जितनी गलतियां करता है उसका प्रतिफल उसे इसी जन्म में मिलता है, लेकिन यह तो अमानवीय कृत्य और अपराध से कम नहीं है। जिस वंचित व्यक्ति के सर से उसकी छत ऐसे समय पर उड़ गई हो जब देश वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से आए दिन हज़ारों मौतों की खबरें सुन रहा हो, उस व्यक्ति के लिए यह कितना कठिन समय रहा होगा, जिसे उस समय कोरोना से बचने के साथ-साथ अब पुन: बसने के लिए स्थान तलाशने पड़ रहे थे। ऐसे मजलूमों की बद्दुआएं बहुत लगती हैं, यकीन न हो तो लालू प्रसाद यादव की वर्तमान यथा स्थिति देख लीजिए शायद आंखों का मरा हुआ पानी जीवंत हो जाए।