21 January 2020
रविंद्र नाथ टैगोर की पौत्री शर्मिला टैगोर हैं और शर्मिला टैगोर के पुत्र हैं सैफ अली खान। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से संबंधित एक्टर का यह कहना कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत का अस्तित्व नहीं था एक प्रकार से भारत के विरूद्ध जिहाद है।
सैफ को सोशल मीडिया में लोगों ने उक्त कथन पर घेरा है। इसके कुछ ट्विट इस संपादकीय के नीचे अलग से दिये गये हैं।
दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई अर्थात भारत के दर्शकों की पसंद नहीं बन पाई क्योंकि जेएनयू में आजादी के नारे लगाने वाले छात्रों के साथ उनका खड़ा होना सिने प्रेमियों को पसंद नहीं आया।
ठीक इसके विपरीत देशप्रेम से सराबोर फिल्म ‘तानाजी- द अनसंग वॉरियरÓ (गढ़आला पर सिंहगेला) दर्शकों को बहुत पसंद आ रही है। इस फिल्म में सैफ अली खान को भी एक महत्वपूर्ण भूमिका मिली है।
>> फिल्म की कहानी 4 फरवरी 1670 में हुए सिन्हागढ़, जिसे तब कोणढाना के नाम से जाना जाता था, के युद्ध के बारे में है. इस युद्ध में तानाजी (अजय देवगन) और मराठा योद्धाओं ने छत्रपति शिवाजी महाराज (शरद केलकर) के लिए औरंगजेब (ल्यूक केनी) और उसके खास आदमी उदयभान राठौड़ (सैफ अली खान) के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.
औरंगजेब पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा करना चाहता है और शिवाजी के खास तानाजी उसे रोकने के लिए अपनी जान दांव पर लगा चुके हैं. क्या होगा उदयभान और तानाजी की लड़ाई का अंजाम? यही इस फिल्म में देखा जा सकता है.
>> 1 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पेशवा बाजीराव पर ब्रिटिश सैनिकों की जीत जश्न मनाया जा रहा था, तब हिंसा भड़क उठी जिसमें एक शख़्स की जान गई और उस दौरान कई वाहन भी फूंके गए थे.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वहॉ हिंसक प्रदर्शन में अर्बन नक्सलियों का भी हाथ जिन पर भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की भी साजिश रचने का आरोप है।
संभव है सैफ अली खान को यह सोच कर के दु:ख हो रहा हो कि पेशवा बाजीराव हारने पर जश्र मनाया जा रहा है उसी प्रकार से तानाजी फिल्म का भी हश्र क्यों नहीं हुआ अर्थात ÓÓगढ़आला पर सिंहगेला की जगह में सिंह भी गेला औ गढ़ भी ना झाला ÓÓ
इसीलिये सैफ अली खान बहकी-बहकी बात कर रहे हैं तानाजी फिल्म के बारे में भी लोगों को बहकाने की दृष्टि से। यही कार्य कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सीएए एनपीआर के विरोध में मुस्लिम महिलाओं को आगे कर भ्रम और अफवाह फैला रहे हैं।
>> तानाजी फिल्म पर टिप्पणी करते हुए सैफ ने यह भी कहा है कि हम सेक्युलरिज्म से दूर जा रहे हैं। सैफ का मानना है कि देश के लोग इसके लिए स्टैंड नहीं ले रहे हैं। अगर लोग किसी चीज का विरोध कर रहे हैं तो उन्हें पीटा जा रहा है, वहीं अगर कोई एक्टर स्टैंड लेता है तो उसकी फिल्म पर इसका असर पड़ता है। यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री के लोग पॉलिटिकल कॉमेंट करने से बचते हैं।
>> इससे स्पष्ट है कि सैफ को तानाजी फिल्म की प्रसिद्धि होना और दीपिका जो जेएनयू में जाकर आजादी के नारे लगा रहे छात्र नेताओंं के साथ खड़ी दिखी थी की फिल्म छपाक का फैल होना खल रहा है।
>> उन्होंने ऊपर एक बात और कही है कि अगर लोग किसी चीज का विरोध कर रहे हैं तो उन्हें पीटा जा रहा है।
इस संदर्भ में यहॉ सीएए के विरोध में और समर्थन में जो प्रदर्शन हो रहे हैं उसकी समीक्षा सैफ को स्वयं ही करनी चाहिये।
सीएए के विरोध में हिंसक प्रदर्शन भी हुए और महिनों में शाहीनबाग में सड़क को जाम कर भी प्रदर्शन हो रहे हैं। वहॉ प्रधानमंत्री को कातिल कहने वाले भी पहुंच रहे हैं और जिन्ना की आजादी वाले नारे भी लग रहे हंंै।
बावजूद इसके सीएए के विरोध मेें जो प्रदर्शन हो रहे हैं उसका शारीरिक विरोध सीएए के समर्थन करने वालों द्वारा नहीं हुआ है।
ठीक इसके विपरीत सीएए के समर्थन में जो शांतिमय रैलियां हो रही हैं उसका बाधा पहुंचाने के लिये उसके आयोजकों की हत्या करने की भी साजिश की गई है।इसका उदाहरण बैंगलोर के भाजपा सांसद की हत्या में गिरफ्तार हुए ६ पीएफआई के सदस्य हैं।
इतना ही नहीं मध्यप्रदेश के ब्यावर और राजगढ़ में भारत माता की जय के नारे लगाते हुए जो शांतिमय रैली निकल रही थी उसमें शामिल लोगों को वहॉ के राजगढ़ के कलेक्टर ने वहॉ की कांग्रेस सरकार के आदेश पर पीटा है। वहीं दूसरी तरफ ब्यावर में प्रदर्शन कर रहे लोगों को वहॉ की डिप्टी कलेक्टर ने तमाचा जड़ी है एक को नहीं अनेक प्रदर्शनकारियों को।
डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर दोनों को बहादुर देशभक्त की संज्ञा वहॉ के कांग्रेस के नेताओं ने दी है। यहॉ उल्लेखनीय है कि जाकिर नाईक को शांतिदूत कहने वाले और २६/११ मुंबई हमले में आरएसएस का हाथ बताने वाले दिग्विजय सिंह का वह गढ़ है।
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