12-dec-2021
घृणित, कुत्सित, विकृत और अत्यंत निकृष्ट। प्रियंका गांधी वाड्रा के इस कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए कम है। वो कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव हैं, अन्यथा उनका कृत्य तो दंड के योग्य है। आप सोचेंगे कि ऐसा क्या हुआ? पूरा देश जब अपने सर्वोच्च सेनापति को अंतिम विदाई दे रहा था, तब तथाकथित देशभक्त नेता प्रियंका गांधी गोवा में नृत्य कर रहीं थी। पूरा देश जब अपने जनरल को अंतिम प्रणाम कर रहा था, तब प्रियंका गांधी गोवा के कुछ जनजातीय समूहों के साथ आनंदोत्सव में मग्न थी। उन्हें ना तो जनजाति समूहों के विकास और उत्थान से मतलब है और ना ही देश के स्वाभिमान से। उन्हें और उनके भाई राहुल गांधी को तो सिर्फ और सिर्फ सत्ता के सिंहासन की कुंजी चाहिए! कितने निकृष्ट हैं ये?
एक ओर जहां इस शोक संतप्त खबर के सुनते ही देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मंत्री-संतरी सभी लोगों ने अपने-अपने कार्यों और उत्तरदायित्वों को स्थगित कर भारत के इस शेर और 13 दिवंगत रत्नों को नमन करने पहुंचे, तो दूसरी ओर प्रियंका गांधी वाड्रा अगले साल होने वाले गोवा विधानसभा चुनाव के चुनाव प्रचार में व्यस्त थी। उनका कथित तौर पर ना तो जनजातीय मुद्दों से कोई सरोकार है और ना ही भारत के जनजातीय व्यवस्था के बारे में कोई ज्ञान है। वो तो बस ऐसे खुश हो रहीं थी, जैसे कोई बड़े घर की “रईसजादी” मदारी देखकर होती है!
प्रियंका गांधी वाड्रा खुश हुईं, तो उन्हें देखकर उनके चाटुकार भी खुश हुए! कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट किया, जिसका सारांश यह था कि देखो, देखो मैडमजी, इन कबीलों का नृत्य देखकर कितनी खुश हुई!!! वैसे देश के कर्णधारों को अपमानित करना कांग्रेस की पुरानी परंपरा रही है। चाहे वो कर्णधार कोई शूरवीर सैनिक या फिर जनप्रिय राजनेता ही क्यों ना हो।
इसी तरह का अपमान एक और शूरवीर को झेलना पड़ा था, क्योंकि 1971 में भारत की जीत से मां भारती के इस लाल का कद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी ऊपर उठ गया था। उनका नाम था- सैम मानेकशॉ। 1971 के युद्ध में भारत की जीत के सूत्रधार मानेकशॉ ने जब जून 2008 में सैन्य अस्पताल वेलिंगटन में अंतिम सांस ली, तो राजनीतिक नेता उनके अंतिम संस्कार से दूर रहे।
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल (सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ), तत्कालीन उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि और तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला कोई भी इस शूरवीर के पास नहीं था। राष्ट्र के इस सच्चे सपूत को अंतिम श्रद्धांजलि देने का समय भी किसी के पास नहीं था।
तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी के पास भी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने का समय नहीं था। तर्क दिया गया कि एंटनी की पूर्व राजनीतिक व्यस्तताएं थी, जो मानेकशॉ के अंतिम संस्कार में शामिल होने से अधिक महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने कनिष्ठ तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री पल्लम राजू को भेजा।
जब मामले ने तूल पकड़ा तो कहा गया कि वेलिंगटन जैसे छोटे से जगह में वीवीआईपी के आने हेतु प्रोटोकॉल सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकती, अर्थात् सैनिक को श्रद्धांजलि से ज़्यादा प्रोटोकॉल महत्वपूर्ण है। उन कांग्रेसियों को कौन समझाए ये वेलिंगटन कोई न्यूजीलैंड नहीं, बल्कि भारत में ही स्थित है। ज़रा सोचिए अगर ये लोग इतनी भी जहमत नहीं उठा सकते तो देश क्या खाक संभालेंगे?
निष्कर्ष
ये किस प्रकार की राजनीतिक पार्टी है, जिसके कथित सर्वेसर्वा राहुल गांधी मुंबई हमलों के बाद दिल्ली में जश्न मनाते है। देश की विपदा के समय इटली चले जाते हैं। जब देश अपने पहले सीडीएस की मौत पर मातम मना रहा होता है, तब उनकी बहन नृत्य और राजनीतिक जीत के गणित में जुट जाती हैं। उनकी माताजी राष्ट्रपुरुषों को अपमानित करती हैं! बाटला हाउस एनकाउंटर के लिए रोती हैं। ये पार्टी 1 प्रतिशत भी मेहनत नहीं करती, लेकिन श्रेय सभी चीज़ों का ले लेती है चाहे वो किसान आंदोलन हो या भ्रष्टाचार आंदोलन! जनता सब देखती है और सब जानती है। फिर, जब इन्हीं कुकृत्यों के कारण जनता इन्हें मताधिकार का प्रयोग कर दंडित करती है, तो ये लोग कहते है कि मोदी सरकार ने ईवीएम हैक करा दिया!
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