23-11-2021
सन् 1999 के कारगिल युद्ध के बाद ऊंचाई पर सटीक हमले करने के लिए एक प्रभावी हेलीकॉप्टर की आवश्यकता भारतीय वायुसेना द्वारा महसूस की गई थी। जिसे ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार द्वारा अक्टूबर 2006 में एक स्वदेशी निर्मित और हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर के डिजाइन और विकास को मंजूरी दी गई थी। हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड ने राष्ट्रहित में इस संसाधन को समर्पित करने का बीड़ा उठाया। अपने लगन और अथक परिश्रम से ॥्ररु ने इस साहसिक कार्य को पूर्ण किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में झांसी में आयोजित ‘राष्ट्रीय रक्षा समर्पणÓ समारोह के दौरान भारतीय वायु सेना को स्वदेशी हल्का लड़ाकू हेलीकॉप्टर सौंपा। यह कार्यक्रम 17 नवंबर से 19 नवंबर तक चला। ढ्ढ्रस्न चीफ एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में प्रतीकात्मक रूप से भारतीय वायुसेना की ओर से रुष्ट॥ प्राप्त किया।
भारतीय सेना ने दिसंबर 2013 में हुए एक आधिकारिक कार्यक्रम में अपनी जरूरतों के बारे में सरकार को अवगत कराया, जिसमें कुल 160 एलसीएच की मांग की गयी थी। अब ॥्ररु ने सेना की इस मांग को देखते हुए प्रति वर्ष 30 हेलीकॉप्टर के उत्पादन हेतु प्रतिबद्ध है।
5-8 टन भार वर्ग में जुड़वां इंजन वाला रुष्ट॥ दुनिया का एकमात्र अटैक हेलीकॉप्टर है, जो 5,000 मीटर या 16,400 फीट की ऊंचाई पर भारी मात्रा में हथियारों और ईंधन के साथ टेक-ऑफ कर सकता है। इसके साथ-साथ यह 15 से 16 हजार फीट की ऊंचाई तक उडऩे की क्षमता रखता है। यह बर्फ की चोटियों पर -50 डिग्री सेल्सियस से लेकर रेगिस्तान में 50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी प्रभावी है और सियाचिन जैसे दुर्गम युद्धक्षेत्र में उतरने वाला एकमात्र विमान है।
हवा से हवा और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस रुष्ट॥ में 20 मिमी की बंदूक, 70 मिमी की रॉकेट और हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल भी लगे हुए हैं। अपने एवियोनिक्स और आर्म के साथ मिलकर, यह किसी भी लक्ष्य को ढूंढकर नष्ट कर सकता है, चाहे वह हवा में हो या जमीन पर।
मिशन के दौरान इस अटैक हेलीकॉप्टर को मैन्युअली ऑपरेट किया जाता है। इसे 180 डिग्री पर खड़ा किया जा सकता है और अगर जरूरत पड़ी तो उल्टा भी किया जा सकता है। यह 360 डिग्री पर घूम सकता है यानी इसे हवा में ही तेजी से घूमने और अपना मार्ग बदलने में महारथ हासिल है, जो इसे स्रशद्दद्घद्बद्दद्धह्ल के लिए अजेय बनाती है।
भारत चारों दिशाओं से दुश्मनों से घिरा हुआ है। भारत इनसे दुर्गम सीमाएं साझा करता है, जो आगे जाकर युद्धक्षेत्र में परिवर्तित होने की संभावना रखती है। इसी क्रम में चाहे कारगिल हो या फिर डोकलाम भारत ने सदैव एक उन्नत और हल्के लड़ाकू विमान की आवश्यकता महसूस की है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति की झलक 12 अगस्त 2020 में दिखी, जब भारतीय वायु सेना ने आगे के हवाई अड्डों से सशस्त्र गश्त करने के लिए लद्दाख में दो एलसीएच प्रोटोटाइप तैनात किए। विशेष रूप से ऊंचाई पर संचालन के लिए किसी भी विमान या हेलीकॉप्टर का एक बड़ा हिस्सा मिश्रित सामग्री और टाइटेनियम जैसी हल्की धातुओं से बनता है, ताकि अत्यधिक तापमान और कठिन पर्यावरण को सह सके।
सेना राष्ट्र संसाधन का संग्रह है पर किसी भी राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में वायुसेना की शक्ति अत्यंत आवश्यक है। 1965 की विजय और 1962 के पराजय का मुख्य कारण वायुसेना ही रही। बीते दिनों में वायुसेना के कई स्क्वाड्रन सेवानिवृत हो जाएंगे, जिससे सेना की क्षमता 32 स्क्वाड्रन से 26 स्क्वाड्रन रह जाएगी, जबकि जरूरत 42 स्क्वाड्रन की है। हालांकि, मोदी सरकार ने राफेल के माध्यम से इसे भरने में सफलता प्राप्त की है और रुष्ट॥ को भी सरकार के उसी प्रयास के रुप में देखा जा सकता है।
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