29-09-2021
पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगे पूर्व नियोजित थे। दिल्ली पुलिस के वीर हवलदार रतन लाल के जघन्य हत्या में सम्मिलित कट्टरपंथी मुसलमानों में से एक की जमानत याचिका को रद्द करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह कोई ऐसा उपद्रव नहीं था जो भावनाओं के आवेग में आकर अचानक हुआ था, अपितु ये एक सोचा समझा षड्यन्त्र था, जिसका उद्देश्य स्पष्ट था – दिल्ली में अराजकता फैलाना और लोकतंत्र को अपमानित करना।
बता दें कि पूर्वोत्तर दिल्ली में 24 और 25 फरवरी 2020 को हिन्दू विरोधी दंगों में हवलदार रतन लाल की कट्टरपंथी मुसलमानों ने जघन्यतापूर्ण हत्या की थी। इसी से संबंधित एक व्यक्ति की जमानत याचिका को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी। आरोपी मोहम्मद इब्राहिम की जमानत याचिका को हाईकोर्ट ने न केवल रद्द किया, अपितु अपने निर्णय में ये भी सिद्ध किया कि कैसे दिल्ली दंगे एक प्रकार से हिंदुओं के खिलाफ एक पूर्व नियोजित साजिश थी।
हाईकोर्ट ने कहा, “फरवरी 2020 में देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को दहलाने वाले दंगे स्पष्ट तौर पर एकदम से नहीं हुए। वीडियो और फुटेज में दिखने वाला प्रदर्शनकारियों का बर्ताव जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड में रखा गया, साफ तौर पर दिखाता है कि यह सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ शहर में लोगों के सामान्य जीवन को बाधित करने का एक सुनियोजित प्रयास था।”
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सीसीटीवी कैमरों को भी व्यवस्थित ढंग से नष्ट किया गया था जो शहर में कानून व्यवस्था को बिगाडऩे के लिए एक पूर्व नियोजित साजिश के अस्तित्व की पुष्टि करता है। अदालत ने कहा, “यह (पूर्व नियोजित साजिश) इस तथ्य से भी साफ होती है कि असंख्य दंगाइयों ने बेरहमी से पुलिस अधिकारियों पर लाठी, डंडे, बैट चलाए।”
कहने को पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे इसलिए भड़के थे क्योंकि मुसलमान ष्ट्र्र और हृक्रष्ट का ‘विरोधÓ कर रहे थे। हालांकि ये सब तो बहाना था, क्योंकि प्रारंभ से ही हिन्दू निशाना जो था। पूर्वोत्तर दिल्ली में जो दंगे भड़काए गए थे, मेन में से एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि पर कीचड़ उछालना भी था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत यात्रा पर आए थे, और ष्ट्र्र के प्रति वामपंथियों का अतार्किक और विषैला विरोध अपने चरम पर था। ष्ट्र्र के विरोध के नाम पर शाहीन बाग की तरह जाफराबाद में डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्तावित भारत दौरे से पहले घेराव किया जाने लगा।
जब स्थानीय लोगों सहित भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने इसका विरोध किया, तो पत्थरबाज़ी के साथ-साथ पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काए जाने लगे। करीब 50 से ज़्यादा लोग मारे गए और 250 से अधिक इस हिंसा के कारण घायल हुए। इसी हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस के कर्मचारी, हवलदार रतन लाल और इंटेलिजेंस ब्यूरो में सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा की निर्मम हत्या की खबरें भी सामने आई, जिसके कारण पूरे देश में आक्रोश छा गया।
इसी कारण अमित शाह को मामला अपने हाथों में लेना पड़ा था। तत्कालीन प्रमुख अमूल्य पटनायक के स्थान पर एसएन श्रीवास्तव को दिल्ली पुलिस का प्रमुख बनाया गया और एनएसए अजीत डोभाल को दंगे के जांच पड़ताल की कमान सौंपी गईं। देश में हुए ष्ट्र्र विरोध में पाकिस्तानी कनेक्शन पहले ही सामने आ चुका है। जब आम आदमी पार्टी का पार्षद ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी निकला, तो ये भी सामने आया कि किस प्रकार से सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने ऐसे दंगाइयों को खुलेआम शह दी थी। पुलिस के चार्जशीट के अनुसार दंगा कराने के लिए ताहिर ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे।
इसके लिए वह पूर्व जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के संपर्क में थे। इन दंगों में ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी शामिल है। जांच में सामने आया कि ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। जिसे उसने दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही रिलीज करवाया था। इन दंगों का प्रमुख उद्देश्य था अयोध्या जन्मभूमि का निर्णय हिंदुओं के पक्ष में सुनाए जाने के लिए भारतीय प्रशासन को ‘सबक सिखानाÓ।
देशव्यापी स्तर पर ऐसा प्रदर्शनों का होना कोई मामूली बात नहीं थी, बल्कि यह दिखाता है कि देश भर में दंगा फैलाने वाले लोगों ने सुनियोजित ढंग से प्लान को अंजाम दिया । ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने निर्णय से राष्ट्रवादियों के पक्ष को न सिर्फ सत्य सिद्ध किया है, अपितु टुकड़े टुकड़े गैंग के गाल पर भी एक करारा तमाचा रसीदा है, जिसने सदैव भारत का अहित चाहा है।
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