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Editorial: नक्सल प्रभावित राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकरनक्सलवाद के खात्मे के लिए तैयार हैं अमित शाह

27-09-2021

देश में नक्सलवाद के विरुद्ध नि:संदेह सख्त कार्रवाई हुई है, मोदी सरकार के आने के बाद से लगातार रेड कॉरिडोर वाले इलाकों में सीआरपीएफ से लेकर विभिन्न राज्यों की पुलिस तक कार्रवाई कर रही है। इसका नतीजा ये है कि नक्सली हमलों से संबंधित वारदातों में भारी कमी आई है। इन कार्रवाइयों के बीच 2018 में हुई भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद पिछड़े इलाकों से लेकर बुद्धिजीवी बनकर बैठे लोगों पर भी कार्रवाई की गई, और बौद्धिक आतंकवाद की कमर ही तोड़ दी गई। इसके विपरीत नक्सलियों ने पुन: देश में नक्सली जाल बुनने की प्लानिंग शुरु कर दी है। नक्सलियों की इस सक्रियता के बीच गृहमंत्री अमित शाह पुन: एक्शन में आ गए हैं, और उन्होंने इस मुद्दे पर देश के नक्सल प्रभावित दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर आगे की रणनीति तैयार करने में जुट गये हैं। अमित शाह की इस बैठक को इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि इन नक्सली इलाकों को ऑपरेट करने का काम शहरों मे बैठे अर्बन नक्सलियों द्वारा भी किया जाता है।

 2014 से 2019 के बीच देश के गृहमंत्री रहे वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के कार्यकाल के दौरान नक्सलवाद की कमर तोडऩे के कई अहम फैसले लिए गए। पीएम मोदी के नेतृत्व में आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर राजनाथ सिंह ने बेहतरीन प्रदर्शन किया, और नक्सलवाद कुछ राज्यों में ही सीमित होकर रह गया। वहीं अब गृहमंत्री अमित शाह राजनाथ सिंह के अभियान को तेज करने के लिए लगातार सक्रिय हैं। यही कारण है कि सीआरपीएफ को अत्याधुनिक हथियार देने के साथ ही लोगों को मुख्यधारा में लाने के प्रत्येक संभव प्रयास किए जा रहे हैं।  हाल के बीजापुर के हमले को छोड़ दें, तो नक्सली हमलों की घटना में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।

ऐसे में अपने नक्सल विरोधी रोडमैप और देश में आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे को कंट्रोल करने के लिए अमित शाह ने पुन: एक्शन के संकेत दिये हैं। गृहमंत्री 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने वाले हैं। ये सभी ऐसे राज्य हैं, जहां नक्सलवाद की जड़ें मजबूत हैं, या उनकी सीमाएं नक्सल प्रभावित इलाकों से मिलती हैं। दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बात करें, तो छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे, झारखंड सीएम हेमंत सोरेन, ओडिशा सीएम नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव, आंध्र मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और केरल सीएम पिनराई विजयन शामिल होंगे।

 विज्ञान भवन में होने वाली इस बैठक को लेकर खबरें हैं कि अमित शाह नक्सलवाद के विरुद्ध चल रहे राष्ट्रव्यापी और राज्यों के अपने-अपने अभियानों का जायजा लेंगे। विशेष बात ये है कि कार्रवाई से इतर गृह मंत्री अमित शाह इन माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों की समीक्षा भी कर सकते हैं, जिनमें सड़क निर्माण से लेकर ब्रिज, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों के विकास के कार्य संबंधित हैं। खास बात ये है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान नक्सली हमलों में गिरावट आई है, और अब ये खतरा मात्र 45 जिलों में ही सिमट कर रह गया है।

वहीं, केन्द्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि ,2015 से 2020 के बीच वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न घटनाओं में करीब 380 सुरक्षाकर्मी, 1,000 आम नागरिक और 900 नक्सली मारे गए। इस दौरान करीब 4,200 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था, जो कि एक बड़ी सफलता का आधार है। वहीं, महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव मे ही हिंसा के आरोपियों में कुछ बुद्धिजीवियों  का नाम आने और उन पर सख्त कार्रवाई होने के चलते शहरी क्षेत्रों मे नक्सलवाद का जिन्न थम गया था, जो कि मोदी सरकार के लिए सकारात्मक था।

 ऐसे में ये सवाल उठ सकता है कि अचानक इतनी बड़ी बैठक क्यों बुलाई गई, वास्तव इसे गृहमंत्री अमित शाह की दूरदर्शिता से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, पिछले दिनों ही इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट आई थी, और उसमें ये कहा गया था कि कैसे नक्सली पुन: अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए शहरी क्षेत्रों में गरीबों को भ्रमित कर उन्हें अपने गिरोह में शामिल कर रहे हैं। इतना ही नही, इन लोगों ने देश के विश्वविद्यालयों के जरिए बौद्धिक आतंकवाद को पुन: विस्तार देने की शुरु कर दी है। ये लोग अपना जाल बांग्लादेश तक फैला चुके हैं, और सोशल मीडिया से लेकर तकनीक का इस्तेमाल कर ये लोग गोरिल्ला वॉर की तैयारी कर रहे हैं, जो कि राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकता है।

 नक्सलियों के विरुद्ध ये कार्रवाई इसलिए भी अहम हो जाती है, क्योंकि भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद से जिस तरह से नक्सलियों का खात्मा किया था, उसके बाद से शहर और गांव में ये नक्सली दोबारा एक्टिव हो गए हैं। यहां अर्बन नक्सलियों का रोल अहम इसलिए है क्योंकि ये लोग नक्सलियों की भर्ती करने का काम भी करते हैं, और उन्हें फंड के साथ हथियार उपलब्ध कराने के साथ ही टारगेट संबंधित निर्देश देते हैं। ऐसे में इनका एक्टिव होना खतरा है।

 संभवत: अब गृहमंत्री भी इस मुद्दे को समझ चुके हैं और इसीलिए अब नक्सलवाद के विरुद्ध कड़े प्रहार की नीयत रखते हुए वो मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर आगे का रोडमैप तैयार कर सकते हैं, जो कि नक्सलवाद के विरुद्ध एक आखिरी हमला हो सकता है।