6-9-2021
कुछ दिनों पहले भारत के लिए एक बेहद सुखद समाचार आया था, जब प्रखर अलगाववादी और आतंकवाद को बढ़ावा देने में अग्रणी रहे हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु हो गई। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। लेकिन इतना बड़ा भारत-विरोधी नेता मर जाए और पड़ोसी मुल्क चुप रहे, ऐसा भला हो सकता है क्या? पाकिस्तान ने एड़ी चोटी का जोर लगाया कि बुरहान वानी की भांति गिलानी की मृत्यु से भी कश्मीर घाटी में अशान्ति फैले और भारत में त्राहिमाम मचे। परंतु मोदी सरकार ने उनके सारे किये कराए पर ऐसा पानी फेरा कि वे न घर के रहे और न ही घाट के।
1 सितंबर को श्रीनगर में अपने निवास अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। वो 91 वर्ष का था और उसके कारण पिछले 4 दशकों से कश्मीर घाटी और उत्तरी भारत में अशान्ति का वातावरण व्याप्त था। लेकिन मृत्यु के बाद जिस प्रकार से गिलानी को गुपचुप तरह से दफनाया गया, न कोई कवरेज मिला और न ही कोई विशाल भीड़ एकत्रित हुई। ये बातें अपने आप में कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती हैं। इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक ही तीर से दो निशाने साध दिए। उन्होंने न केवल पाकिस्तान द्वारा घाटी में अशान्ति फैलाने की योजना को विफल किया, अपितु सैयद अली शाह गिलानी को ऐसी विदाई दी, जिसके लिए वह वास्तव में योग्य था – लाइमलाइट से दूर, गुमनामी के अंधेरे में।
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