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रिफाइंड तेल की कीमत: केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों पर 20 प्रतिशत हिस्सा आयात शुल्क, महंगा होगा रिफाइन आइल

14 09 2024 refined oil price hike
त्योहारी सीजन में तेल की औसत वृद्धि का घर के बजट पर असर।

पर प्रकाश डाला गया

  1. मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दी किराया शुल्क बढ़ाने की जानकारी।
  2. विदेश से तेल आयात करने पर 5 प्रतिशत ड्यूटी लग रही थी।
  3. विदेशी तेल के आयात के दबाव से स्थानीय उद्योग नहीं चल पा रहे हैं।

लोकेश एंटरप्राइज़, नईदुनिया एजेंट(रिफाइंड तेल की कीमत)। दीपावली के पहले तेल के दाम बढ़ते हैं। सरकार खाद्य तेल के उद्यम पर साहस बढ़ाने की घोषणा की है। इस एक तीर से तीन स्वतंत्रता साध जायेंगे। देश के तेल उद्योग की मांग पूरी होगी। किसानों की उपज का दाम बढ़ेगा और सरकार के रिकॉर्ड से समर्थन मूल्य पर खरीद का भार भी खुद-ब-खुद कम हो जाएगा।

केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात में बढ़ोतरी की है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने अपने हैंडल एक्स पर लिखा कि ‘किसान हितैषी मोदी सरकार ने किसान हितैषी-बहनों के हित में फैसला लेते हुए खाद्य तेलों पर 0% से 20% कर दिया है। अन्य उपकरणों को जोड़ने पर कुल प्रभावशाली शुल्क 27.5% हो जाएगा।

आयात शुल्क बढ़ाने से सोयाबीन के फसल की सीमा में वृद्धि होगी और खाद्य तेल निर्माता भी घरेलू किसानों से फसल क्षति के लिए प्रेरित होंगे। जिससे किसान मजदूर-बहनों को उनकी फसल का ठीक दाम मिल सके।

इस निर्णय से सोया खली का उत्पाद भंडार, और उसकी सहयोगी होली। साथ ही सोया से जुड़े अन्य सेक्टरों को भी मिलेगा फायदा। ‘किसानों के हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ये अहम फैसला’

महंगा होगा तेल

इस फैसले से जनता को महंगे तेल खरीदने पर मजबूर होना पड़ेगा। देश में विदेशी खाद्य तेल विदेश से आयात करने पर 5 प्रतिशत ड्यूटी लग रही थी। 2023 के पहले तक किराए पर कुल शुल्क 37-38 प्रतिशत था।

20 से 30 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है

खुदरा बाजार में सोयाबीन रिफाइन्ड के कच्चे माल में 20 से 30 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है। रिलेटिव ऑयल कंपनीज के प्रमुख प्रतिनिधि संगठन डायबियोनियम स्टोर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) और साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसआईआईई) केंद्र सरकार से मांग कर चुके हैं कि आक्रामक रुख पुराने स्तरों पर लाना चाहिए।

विदेशी तेल से नहीं चल पा रहे स्थानीय उद्योग

एसोसिएट्स के दस्तावेज़ हैं कि विदेशी तेल के दबाव से स्थानीय उद्योग नहीं चल पा रहे हैं। इससे किसान सोयाबीन भी नहीं बिक रहे। स्थानीय तेल उत्पादन, वृद्धि से उद्योग भी चल, दाम भी और किसान को भी मिलेगा सही दाम।

सरकार का भी फ़ायदा

आयथ-निर्यात से जुड़े शोरूम अरुण दोशी के इरादे से सोया तेल की मांग बढ़ने से यदि 140 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया तो बाजार में सोयाबीन के दाम खुद-ब-खुद 5000 रुपये के पार पहुंच जाएंगे। अभी दाम 4000 से 4500 रुपये महंगा है। सरकार ने किसानों की मांग पर समर्थन मूल्य 4892 रुपये की दर से सोयाबीन खरीद की घोषणा की है।

खुले बाजार में दाम समर्थन मूल्य से ज्यादा हो गए तो किसान खुद ही समर्थित मूल्य पर सरकारी बिक्री में रुचि नहीं रखते। ऐसे में सरकार के रिकॉर्ड से खुद ही खरीद और किसानों को भुगतान का बोझ उठाना पड़ेगा। क्योंकि सोयाबीन का सरकार के लिए भी कोई उपयोग नहीं है। यह घटिया तो नहीं है जिसे सरकारी पीडीएस में डाला जा सके। आगे की कारोबारी सरकार को भी तेल संयंत्रों को ही अपना सोयाबीन बेचाना चाहिए।