Author: Lok Shakti

क्या पाँच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव वाकई देश की राजनीति में नया प्रयोग का रास्ता बनने जा रहे हैं। यूँ तो अब तक इस मिथक को तोड़ नहीं जा सका है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरता है। काफी हद तक सही भी है। उत्तर प्रदेश के उत्तराखण्ड में बँट जाने के बाद भी हैसियत में किसी प्रकार की कोई कमीं नहीं आई। लेकिन राजनीतिक दलों के बनते, बिगड़ते समीकरणों से नया कुछ होने के आसार से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी मतदान गुप्त होता है। नतीजों के पूर्व…

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साम्प्रदायिक कट्टरता, संकीर्णता एवं उन्माद अक्सर हिंसा, तनाव, बिखराव एवं विध्वंस का कारण बनता रहा है। इन स्थितियों को आधार बनाकर शिक्षण संस्थानों में तनाव, अराजकता एवं बिखराव का जहर घोलना चिन्तनीय है। कट्टरवादी शक्तियां इन घटनाओं को तूल देकर राजनीति स्वार्थ को सिद्ध करने का खेल खेल रही है, जो राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिये घातक है। कर्नाटक में अब ऐसे स्कूल और कॉलेजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जहां मुस्लिम समुदाय की छात्राएं, हिजाब पहन कर कक्षाओं में उपस्थित रहनेे की इजाज़त मांग रही हैं। हिजाब की नहीं बल्कि कर्नाटक के स्कूलों में बच्चों द्वारा क्लास…

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भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय की पवित्र भावना से ओतप्रोत पंडित दीनदयालउपाध्याय का एकात्म मानववाद का दार्शनिक चिंतन वैश्विक कल्या ण की विशुद्ध भारतीयपरिकल्पना के शाश्वत विचार प्रवाह का वो अमृत कलश है जो समाज के अंतिम छोर परखड़े शोषित, पीड़ित, निर्धन, निरीह और निराश व्यक्ति के समग्र उत्थान अर्थात अंत्योदयके प्रति समर्पित है। यह महज एक नारा नहीं वरन सर्वत्र मानव समाज का एकात्म रूप मेंदर्शन का जीवंत विचार है। यह यूरोपीय पुनर्जागरण के मानववाद से परे नए संस्करण मेंसमग्र समाज को एक भिन्न दृष्टि से देखने के कारण नई समाज रचना का गतिशीलप्रतिमान प्रस्तुत करता है। पंडित उपाध्याय का…

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कोरोना महामारी के कारण बच्चों के शिक्षा पर भी गहरा असर पड़ा है। लंबे समय तक स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने के स्तर में भारी गिरावट देखने को मिली है। हालांकि, अब देश के शिक्षण संस्थानों ने सामान्य हालात की ओर कदम बढ़ा दिये हैं। सोमवार को देश के बहुत से प्रदेशों में स्कूल-कॉलेज खुल गए, उनके परिसरों में पुरानी रौनक लौट आई। लगभग दो वर्षों बाद कंधों पर बस्ते लादे स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चों को देखना संभव हुआ है, जो सुखद अहसास का सबब बन रहा है। देश के ज्यादातर प्रदेशों में कक्षा नौ से ऊपर की…

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मामलों की त्वरित सुनवाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१ में निहित जीवन और स्वतंत्रता के मौलिकअधिकार का एक अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है. तथापि, लंबित मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि सेमामलों के निपटान में होने वाली देरी के कारण इस अधिकार से वंचित होना पड़ता है. पीआरएस लेजिस्लेटिवरिसर्च द्वारा किया गया एक​ अध्ययन बताता है कि १५ सितंबर, २०२१ तक, भारत की सभी अदालतों में ४.५करोड़ से अधिक मामले लंबित थे. २०१० और २०२० के बीच, सभी अदालतों में लंबित मामलों में २.८% कीदर से वृद्धि हुई है. बेबुनियाद और तुच्छ मामलों की बढ़ती संख्या और विवाद समाधान की…

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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और साझेदार संगठन डब्ल्यूआरएपी की ओर से जारी खाद्यान्न बर्बादी सूचकांक रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि 2019 में 93 करोड़ 10 लाख टन खाना बर्बाद हुआ, जिसमें से 61 फीसद खाना घरों से, 26 फीसद भोजन विक्रेता के यहां से और 13 फीसद खुदरा क्षेत्र से बर्बाद हुआ। रिपोर्ट के अनुसार यह इशारा करता है कि कुल वैश्विक खाद्य उत्पादन का 17 फीसद भाग बर्बाद हुआ और करीब 69 करोड़ लोगों को खाली पेट सोना पड़ा है। भारत दक्षिण एशिया में सालाना प्रति व्यक्ति खाना बर्बाद करने वाले देशों की लिस्ट में अंतिम पायदान…

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लता मंगेशकर 93 वर्ष देह से विदेह हो गयी है। गायन के क्षेत्र में अब वे एक याद बन चुकी हैं। उनका निधन स्वरों की दुनिया में एक गहन सन्नाटा है , वे ईश्वर का साक्षात स्वरूप थी, उनके स्वरों में मां सरस्वती विराजती थी, उनकी स्वरों में भारत की आत्मा बसी थी ,उनका निधन एक अपूरणीय क्षति है। उनकी आवाज दुनिया के किसी हिस्से के भूगोल में कैद न होकर ब्रह्माण्डव्यापी बन चुकी थी। उन्हें संगीत की दुनिया में सरस्वती का अवतार माना जाता है। हम कह सकते थे कि हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है तो…

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स्वर कोकिला, स्वर साम्राज्ञी, हर दिल अजीज, सुरों की मलिका, बच्चे, बड़े, बूढ़े हर किसी को अपनीआवाज से गुनगुनाने को मजबूर करने वाली अजीम शख्सियत लता दीदी कहें लता ताई या लता जी नहीं तोलता मंगेशकर कुछ भी कह लें बड़ी ही खामोशी से खामोश हो गईं। जिसने भी सुना सन्न रह गया, हर किसीको अपनी आवाज से सुकून देने वाली जानी-पहचानी और सबसे अलग आवाज की ऐसी विदाई ने हर किसी कोगमगीन कर दिया। सचमुच ऐसा लगता है कि एक युग का अंत हो गया है। चीनी घुली वो, मखमली मीठीआवाज जो उम्र के आखिरी मुकाम तक जस की…

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आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए भारतीय राजनीतिक की शुचिता, चारित्रिक उज्ज्वलता और स्वच्छता पर लगातार खतरा मंडराना गंभीर चिन्ता का विषय है। स्वतंत्र भारत के पचहतर वर्षों में भी हमारे राजनेता अपने आचरण, चरित्र, नैतिकता और काबिलीयत को एक स्तर तक भी नहीं उठा सके। हमारी आबादी पचहतर वर्षों मंे करीब चार गुना हो गई पर हम देश में 500 सुयोग्य और साफ छवि के राजनेता आगे नहीं ला सके, यह देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ-साथ विडम्बनापूर्ण भी है। कभी  सार्वजनिक जीवन में बेदाग लोगों की वकालत की जाती थी, लेकिन अब यह आम धारणा है कि…

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जीवन का पड़ाव चाहे संसार हो या संन्यास, सीमा, संयम एवं मर्यादा जरूरी है। मर्यादा जीवन का पर्याय है। धरती, अंबर, समन्दर, सूरज, चांद-सितारें, व्यक्ति, धर्म एवं समाज सब अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं। जब भी उनकी मर्यादा एवं सीमा टूटती है, प्रकृति प्रलय एवं समाज अराजकता में परिवर्तित हो जाता है। इसी मर्यादा की सीख देने वाले धर्म, धर्मगुरु एवं धर्म-संगठन जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर…

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