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Author: Lok Shakti
इतिहास और साहित्य में ऐसी प्रतिभाएं कभी-कभी ही जन्म लेती हैं जो बनी बनाई लकीरों को पोंछकर नई लकीरें बनाते हैं। वे अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीते हुए नया जीवन-दर्शन निरुपित करते हैं और कुछ विलक्षण सृजन करते हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का व्यक्तित्व और कृतित्व भी इसका अपवाद नहीं हैं। यह शब्द सिद्धा अपने वजूद के रेशे-रेशे में, अपनी सांस-सांस में कविता की सिहरनें जीता हुआ राष्ट्रीय चेतना को बलशाली बनाता गया। शायद इसीलिये उनका बोला हर शब्द कविता बनकर जन-जन में राष्ट्र के प्रति आन्दोलित करता रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन के उस दौर के अधिकांश कवि आजादी…
न्याय में देर करना अन्याय है। भारत की न्यायप्रणाली इस मायने में अन्यायपूर्ण कही जा सकती है, क्योंकि भारत की जेलों में 76 प्रतिशत कैदी ऐसे हैं, जिनका अपराध अभी तय नहीं हुआ है और वे दो दशक से अधिक समय से जेलों में नारकीय जीवन जीते हुए न्याय होने की प्रतिक्षा कर रहे हैं। इन्हें विचाराधीन कैदी कहा जाता है, नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे जिनमें से 76 फीसदी यानी 3,71,848 विचाराधीन कैदी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे विचाराधीन कैदियों के मुद्दे को गंभीरता…
मुफ्त की रेवड़ियां बांटने वाली राजनीति देश के विकास की एक बड़ी बाधा है, यह आम जनता को अकर्मण्य एवं कामचोर बनाने के साथ-साथ राजनीति को दूषित करती है। जो नेता इसे परोपकार मानते हैं, वे देश की जनता को गुमराह करते हैं। यह सरासर प्रलोभन एवं चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित करने का हथियार है और नेताओं की जीत का ताकतवर मोहरा है। जीत के लिए जनता से मुफ्त सामान का वादा, राज्य के खज़ाने पर भारी आर्थिक असंतुलन का कारण है। अब इस मुफ्त संस्कृति एवं रेवड़िया बांटने के राजनीतिक प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही…
संसद का मानसून सत्र भारी हंगामे की भेंट चढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, कोई ठोस कामकाज अथवा राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर सार्थक चर्चा न होना विपक्ष की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है। यह भारतीय लोकतंत्र की बड़ी कमजोरी बनती जा रही है कि सरकार को जरूरी एवं राष्ट्रीय मुद्दों पर घेरने की बजाय उसको नीचा दिखाने, कमजोर करने एवं उसके कामकाज को धुंधलाने की कुचेष्टा के लिये हंगामा खड़ा कर दिया जाता है। आजकल यह रिवाज हो गया है कि संसद सदस्य हर उस मसले को हल्ला-गुल्ला करके ही सरकार की नजर में ला सकते हैं, जिससे वे…
भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप मंे देश के सर्वाेच्च पद पर, प्रथम नागरिक के आसन पर एक व्यक्ति नहीं, निष्पक्षता और नैतिकता, पर्यावरण एवं प्रकृति, जमीन एवं जनजातीयता के मूल्य आसीन हुए हैं। आजाद भारत में पैदा होकर आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में एक ऐसा व्यक्तित्व द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के आसन पर विराजमान हुई है, जिससे पूरा देश गर्व एवं गौरव का अनुभव कर रहा है। उनके शपथ ग्रहण के साथ देश के जनजाति और वनवासी समुदाय का सिर जिस तरह गर्व से ऊंचा उठा है, वह भारतीय राष्ट्र की नई ताकत और भारतीय राजनीति के नए…
देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का चुनाव कई तरह से चर्चा में बना हुआ है। पहले तो एन.डी.ए. ने उन्हें एक आदिवासी उम्मीदवार के रूप में बहु प्रचारित करने की रणनीति बनाई जबकि पूर्व में भी पी.ए. संगमा और अल्फ्रेड स्वेल आदिवासी समाज से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके थे।सामान्यता राष्ट्रपति का पद उनके व्यक्तित्व, समाज में उनके योगदान और उनकी निर्विवाद सेवाओं को लेकर जाने जाते हैं। जाति के आधार पर कभी भी न तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को प्रचारित किया गया ना ही इस आधार पर उन्हें महिमामंडित करने की कोशिश की गई। वे…
भ्रष्टाचार के खेल ने दुनिया के सारे लोकतंत्रों को खोखला कर दिया है। भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इसलिए इसकी साफ-सफाई ज्यादा जरूरी है। इनदिनों गैरभाजपा प्रांतों में भ्रष्टाचार के मामले बड़ी संख्या में उजागर हो रहे हैं। पहले दिल्ली में आम आदमी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन और अब पश्चिम बंगाल में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी एवं अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करें, लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों एवं विभिन्न…
भारत के लिये यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिन्ता का विषय है कि भारत के लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं। पिछले तीन साल से औसतन 358 लोग प्रतिदिन और प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 63 हजार लोग भारत की नागरिकता त्यागकर विदेशों में बस गये हैं। भारत से पलायन कर विदेशों में बसने के क्या कारण है? ऐसा क्यों हो रहा है? क्या आम नागरिकों को जिस तरह का सहज एवं शांतिपूर्ण जीवन अपेक्षित होता है, उसका अभाव पलायन का कारण है? क्या रोजगार एवं जीवन-निर्वाह की मूलभूत सुविधाएं सुलभ कराने में सरकार नाकाम हो रही है? जो भी कारण हो,…
भारत की आजादी के लिये मिट्टी से लोहपुरुषों यानी सशक्त, शक्तिशाली एवं राष्ट्रभक्त इंसानों का निर्माण करने का श्रेय जिस महापुरुष को दिया जाता है, वह लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय देश की आशाओं के प्रतीक बने। उनके विचारों और कार्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा देने में अग्रिम भूमिका निभाई। उन्होंने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’ का नारा देकर लाखों भारतीयों को प्रेरित, संगठित और आन्दोलित किया। तिलक व्यक्ति-प्रबंधन कैसे करते, किस तरह आजादी के लिये हर भारतीय के मन में आन्दोलन की भावना भरते, मनुष्यों को कैसे…
अगर हम अपने आदर्शों को आतंकवादी कहेंगे तो फिर राष्ट्रवादी कौन होगा? यहसवाल इन दिनों देश में बड़ी गंभीरता से लोगों को परेशान और हतप्रभ कर रहा है। माना किऐसे सवालों की जद में राजनीति होती है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के लिएप्राणों की आहुति देने वालों उसमें भी खासकर देश भक्ति की अनूठी मिशाल पेश करने वालोंपर स्वतंत्रता या इससे जुड़े आन्दोलनों या कोशिशों के इतने लंबे अरसे बाद केवल सियासतचमकाने के लिए सवाल उठाना न केवल हैरान और परेशान करता है बल्कि भावनाओं कोआहत भी करता है। लगता नहीं कि ऐसे सवालों को अब…