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Author: Lok Shakti
दक्षिण भारत में अधिकांश लेखन ताड़पत्रों पर किया जाता था। सर्वप्रथम पत्तों को तोड़कर छाया में सुखाया जाता था और फिर नर्म होने के लिए कई दिनों तक रसोई में टांग कर रखा जाता था। फिर पत्तों पर लिखने के लिए विमान बनाने के उद्देश्य से उन्हें पत्थरों पर अच्छी तरह रगड़ा जाता था। बाद में नुकीले लोहे से पत्तियों में छेद कर लिखने का काम किया जाने लगा। बाद में उस पर कार्बन स्याही रगड़ी गई। इसने छेद को कार्बन से भर दिया और इस प्रकार लेखन दिखाई देने लगा। पत्तियों को कीड़ों से बचाने और कार्बन न छोड़ने…
दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा ताड़ के पत्ते पर लिखा गया। सबसे पहले पत्तों को छांव में सुखाया जाता था और फिर साफ करने के लिए किचन में कई दिनों तक टांग कर रखा जाता था। फिर पत्ते पर लिखने के लिए प्लेन बनाने के मकसद से उन पर दांव पर बड़े सलीके से रांगा चला जाता था। बाद में नुकीली मोटी चादरों में छिद्र करके लिखा गया। बाद में इस पर कार्बन इंक राँगा गया। इसके छिद्र में कार्बन भर गया था और इस तरह की दिखने वाली कंपनियाँ थीं। पत्ते को कीड़े से बचाएं और कार्बन ना छूटे,…
वर्तमान को बेहतर बनाने के लिए अतीत का ज्ञान आवश्यक है। हमारी परंपराओं, ऐतिहासिक विरासत और गौरवशाली अतीत को संजोए रखने वाली ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियां इसमें प्रमुख हैं। ताड़ के पत्तों पर लिखे लेखों में भारत के अतीत के बारे में बहुमूल्य जानकारी है। इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि राजा-महाराजा अपने समय के बारे में पत्थर के टुकड़ों, खंभों और ताड़ के पत्तों पर लिखते थे। चोल वंश के राजाओं की तरह। ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियां सूखे ताड़ के पत्तों से बनी पांडुलिपियां हैं। भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में ताड़ के…
वर्तमान की श्रेष्ठता के लिए अघटित का ज्ञान आवश्यक है। परंपराओं हमारी पारंपरिक ऐतिहासिक विरासतों व गौरवशाली घटनाओं को संजोने वाले ताड़पत्र पांडुलिपियां इसमें प्रमुख हैं। ताड़पत्र पर लिखे गए इबारतें भारत के अचूक की बहुमूल्य जानकारियों में समाहित हैं। इतिहास को दुर्घटना को पलटकर देखें तो पता चलता है कि राजा-महाराजा अपने समय का हाल पत्थर के मोहरे, खंभों और ताड़पत्रों पर लिख रहे थे, चोल वंश के राजा। पाम पल्लियां हैं पांडुलिपियों सूखे खजूर के पत्तों से बाहर कर दिया। भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व दिनांकित और बहुत पहले ताड़ के पत्ते…
कांचीपुरम से 30 किलोमीटर दूर उथिरामेरुर 1250 साल पुराना है। तमिलनाडु के मशहूर कांचीपुरम से 30 किलोमीटर दूर उथिरामेरुर नाम का गांव करीब 1250 साल पुराना है। गाँव में एक आदर्श चुनाव प्रणाली थी और चुनाव के तरीके को निर्धारित करने वाला एक लिखित संविधान था। यह लोकतंत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।वैकुंठ पेरुमल मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है।यहां के वैकुंठ पेरुमल (विष्णु) मंदिर के चबूतरे की दीवार पर, चोल वंश के राजकीय शिलालेख वर्ष 920 ईस्वी के दौरान दर्ज हैं। इनमें से कई प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता में भी हैं। यह ग्राम सभा…
1250 साल पुराना है कांचीपुरम से 30 किमी दूर उथिरामेरूर तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम से 30 किमी दूर उथिरामेरूर नाम का गांव लगभग 1250 साल पुराना है। गांव में एक आदर्श चुनावी प्रणाली थी और चुनाव के तरीके तय करने वाला एक संविधान लिखा था। यह लोकतंत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।वैकुंठ पेरुमल मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है।यहां वैकुंठ पेरुमल (विष्णु) मंदिर के मंच की दीवार पर, चोल वंश के राज्य आदेश वर्ष 920 ईस्वी के दौरान दर्ज किए गए हैं। इनमें से कई मौजूदा मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता भी हैं। यह ग्रामसभा की दीवारों…
भारत में पिछले लगभग एक दशक से क्राउडफंडिंग का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, विदेशों में यह स्थापित है, लेकिन भारत के लिये यह तकनीक एवं नई प्रक्रिया है, अभी इसके लिये कानून नहीं बना है। चंदे का नया स्वरूप है जिसके अन्तर्गत जरूरतमन्द अपने इलाज आदि की आर्थिक जरूरतों को पूरा कर सकता है। न केवल व्यक्तिगत जरूरतों के लिये बल्कि तमाम सार्वजनिक योजनाओं, धार्मिक कार्यों और जनकल्याण उपक्रमों को पूरा करने के लिए लोग इसका सहारा ले रहे हैं। भारत सरकार एवं विभिन्न राज्यों की सरकारें भी क्राउडफंडिंग के जरिये गंभीर बीमारियों से पीड़ित असहाय एवं गरीब लोगों…
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक, “भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं” भारत को केवल एक भूमि के टुकड़े के रूप में नहीं देखता बल्कि इसे एक पूर्ण राष्ट्र के रूप में व्यक्त करता है। यह कविता देशभक्ति की बेहतरीन अभिव्यक्ति देती है। व्यक्त करते हुए यह राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण जीवन के समर्पण का भाव व्यक्त करता है। भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,वह एक जीवित राष्ट्रीय व्यक्ति हैं।हिमालय सिर है, कश्मीर ताज है,पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल पर्वत हैं।’कन्याकुमारी इसके पैर हैं, सागर इसके पैर धोता है।यह…
भारत रत्न अटल बिहारी टैगिंग जी की बेहतरीन दृष्टिकोण से एक “भारत जमीन का टुकड़ा नहीं” भारत देश को केवल एक जमीन के टुकड़े के रूप में न देखकर उसे पूर्ण राष्ट्रपुरुष के रूप में अभिव्यक्त करता है। यह कविता देशप्रेम की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त करते हुए राष्ट्र के प्रति संपूर्ण जीवन के समर्पण का भाव व्यक्त करता है। भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।हिमालय मस्त है, कश्मीर किरीट है,पंजाब और बंगाल के दो बड़े कंधे हैं।पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।’कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसकी पग पखारता है।यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन…
भारत की रत्नगर्भा माटी में जन्मे संतपुरुषों, गुरुओं एवं महामनीषियों की शृृंखला में एक महापुरुष हैं गुरु गोविन्द सिंह। जिनकी दुनिया के महान् तपस्वी, महान् कवि, महान् योद्धा, महान् संत सिपाही साहिब आदि स्वरूपों में पहचान होती है। दुनिया में देश व धर्म की रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुष तो अनेक मिलेंगे किन्तु अपनी तीन पीढ़ियों, बल्कि यों कहें कि अपने पूरे वंश को इस पुनीत कार्य हेतु बलिदान करने वाले विश्व में शायद एकमेव महापुरुष गुरु गोविन्द सिंहजी ही है। जिन्होंने त्याग, बलिदान एवं कर्तृत्ववाद का संदेश दिया। भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित की। स्वयं की अनन्त…