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आरईवीएम चुनावी प्रक्रिया में एक क्रांति की आहट

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 ललित गर्ग

किसी भी राष्ट्र के जीवन में चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण घटना होती है। यह एक यज्ञ होता है। लोकतंत्र प्रणाली का सबसे मजबूत पैर होता है। राष्ट्र के प्रत्येक वयस्क के संविधान प्रदत्त पवित्र मताधिकार प्रयोग का एक दिन। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों में अधिकतम यानी शत-प्रतिशत मताधिकार का प्रयोग हो, इसके लिये देश में चुनाव प्रक्रिया में एक और क्रांतिकारी कदम की दिशा में अग्रसर होते हुए एक नये अध्याय की शुरुआत होने जा रही है, जिसके अन्तर्गत रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) का मॉडल विकसित कर चुनाव आयोग ने महत्त्वपूर्ण पहल की है। चुनावों के दौरान यह मशीन उन घरेलू प्रवासियों के लिए वरदान साबित होगी, जो शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के सिलसिले में अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। आरईवीएम को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करने के बाद जो प्रवासी जहां है, वहीं से मतदान कर सकेगा। निश्चित ही इसके लागू होने से मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा एवं लोकतंत्र में जनभागीदारी अधिकतम होने लगेगी। चुनाव आयोग के मुताबिक अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहने के कारण करीब 30 करोड़ मतदाता मतदान से वंचित रह जाते हैं। शिक्षा या रोजगार की व्यस्तता के कारण उनके लिए अपने क्षेत्र में पहुंचकर मतदान करना सुविधाजनक नहीं होता। आरईवीएम के जरिए ऐसे मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया में शामिल कर मतदान प्रतिशत बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी, जो भारतीय लोकतंत्र को अधिक सशक्त एवं प्रभावी बना सकेगा।
चुनाव आयोग इस नयी प्रक्रिया एवं नये मॉडल का प्रदर्शन 16 जनवरी 2023 को नई दिल्ली में करेंगा, जिसमें विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को आमंत्रित कर उनके सुझाव और आपत्तियांे के लिये खुला मंच प्रस्तुत किया जायेगा। इसे हम भारत की चुनाव प्रक्रिया में एक नये सूरज का अवतरण मान सकते हैं, एक अभिनव एवं क्रांतिकारी दिशा में चुनाव के महाकुंभ को अग्रसर करते हुए इसे अधिक सशक्त एवं प्रभावी बना सकेंगे। चुनाव आयोग की इस शुभ-शुरुआत का स्वागत होना चाहिए। जिस तरह 1982 केरल के एक विधानसभा क्षेत्र में पहली बार ईवीएम का प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करते हुए क्रांति की शुरुआत हुई थी उसी तरह चुनाव प्रक्रिया में आरईवीएम की शुरुआत से चुनाव प्रक्रिया की तस्वीर बदलेगी, मतदाता जहां ज्यादा जागरूक होगा, राजनीतिज्ञ भी ज्यादा समझदारी से चुनाव में हिस्सेदारी करेंगे। हालांकि आरईवीएम को चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाने के लिए आयोग को अभी अनेक संघर्षों, आलोचनाओं, बाधाओं के साथ कई कानूनी, तकनीकी और राजनीतिक अड़चनों को पार करना है। जिस तरह मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने के प्रस्ताव पर सवाल उठे थे, उसी तरह अब आरईवीएम को लेकर भी विपक्षी दल शंकाएं उठा रहे हैं।
लम्बे समय से चुनाव में गिरता मतदान का प्रतिशत चिन्ता का विषय बना हुआ है। वास्तविक लोकतंत्र वही है जिसमें हर व्यक्ति अपने मतदान का उपयोग करते हुए अपने प्रतिनिधि चुने। लेकिन हर व्यक्ति अपने मत का उपयोग नहीं कर पाता, क्योंकि वह अपने मूल स्थान से दूर दूसरे शहरों या कस्बों में रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, पारिवारिक कारणों से होता है। अगर ऐसे लोगों को मतदान में हिस्सेदारी का अवसर दिया जाता है, तो इससे निस्संदेह मत प्रतिशत बढ़ेगा। मगर दिक्कत यह है कि ऐसे लोगों की पहचान सुनिश्चित करना और वे जहां रह रहे हैं, वहां मतदान केंद्र स्थापित कर पाना कैसे संभव होगा? इस बड़ी बाधा को दूर करना चुनाव आयोग के सम्मुख एक बड़ी चुनौती रही है, वही लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों को चुनने में समग्रता एवं बहुसंख्य मतदाताओं के मतों का उपयोग न होना एक अधूरापन है। लोकतंत्र की मजबूती की दृष्टि से यह वाकई चिंताजनक है कि कई चुनाव क्षेत्रों में करीब आधी आबादी की मतदान में सहभागिता नहीं होती।
जनतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू चुनाव है, जनतंत्र में स्वस्थ मूल्यों को बनाये रखने के साथ उसमें सभी मतदाताओं की सहभागिता को सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके लिये आरईवीएम के प्रयोग का प्रस्ताव सैद्धांतिक तौर पर एक सराहनीय एवं जागरूक लोकतंत्र की निशानी है। क्योंकि आजादी के बाद से ही जितने भी चुनाव हुए है, उनमें लगभग आधे मतदाता अपने मत का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, ऐसा हर चुनाव में होता आया है। इसलिए लंबे समय से मांग उठती रही थी कि ऐसे लोगों के लिए मतदान का कोई व्यावहारिक एवं तकनीकी उपाय निकाला जाना चाहिए। उसी के मद्देनजर निर्वाचन आयोग के द्वारा घरेलू प्रवासियों के लिए आरवीएम का प्रस्ताव एक सूझबूझभरा एवं दूरगामी सोच एवं विवेक से जुड़ा उपक्रम है। जरूरत है राजनीतिक दल ऐसे अभिनव उपक्रम का विरोध करने या अवरोध खड़ा करने की बजाय उसका अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए स्वागत करें।
हमने देखा है ईवीएम कितनी उपयोग साबित हुई है, फिर इसको लेकर भ्रम बने हुए हैं और हर चुनाव के बाद कुछ आवाजें मतदान में हुई गड़बड़ी को लेकर उठती रहती हैं, उसमें स्वाभाविक ही आरवीएम भी संदेह से परे नहीं होगी। जब मतदाता पहचानपत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव आया, तब भी इसी शंका के चलते सवाल उठे थे कि कोई भी बाहरी व्यक्ति मतदान में गड़बड़ी कर सकता है। इसलिए आरवीएम को पूरी तरह भरोसेमंद बनाना होगा। सबसे बड़ा विरोध कांग्रेस की ओर से इसके भरोसेमंद एवं निष्पक्ष होने के लेकर है, जाहिर है, कांग्रेस के साथ-साथ दूसरे दलों की तरफ से भी ऐसे एतराज उठने की संभावना है। मगर यह प्रस्ताव अगर किन्हीं वजहों से व्यावहारिक रूप नहीं ले पाता, तो ऐसे करोड़ों लोगों का मताधिकार फिर अंधेरों में रहेगा। तमाम अपीलों और जागरूकता अभियानों के बावजूद हर चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों में पचास प्रतिशत से भी कम मतदान हो पाता है। इस तरह जन प्रतिनिधित्व का मकसद ही अधूरा हो जाता है। इसे दूर करना जितना निर्वाचन आयोग का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है, उतना ही राजनीतिक दलों को भी इसे सुनिश्चित करने में अपनी सकारात्मक पहल करनी चाहिए।
सबसे प्रमुख सवाल कि मतदाता कैसे स्वतंत्र रूप से अपने मताधिकार का उपयोग करे। मगर जैसा कि निर्वाचन आयोग का दावा है, उससे लगता है कि उसने तमाम आशंकाओं, पक्षों एवं आलोचनाओं पर गंभीरता से विचार कर लिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने इसे शानदार पहल बताते हुए कहा कि यह अच्छी बात है कि आयोग यह सब लोकतांत्रिक तरीके से कर रहा है। लोकतंत्र का हित इसी में है कि घरेलू प्रवासियों के मतदान से दूर रहने की समस्या के समाधान के लिए नकारात्मक की बजाय सकारात्मक रवैया अपनाया जाए। आयोग का यह भी कहना है कि इस मशीन को त्रुटिहीन बनाया जाएगा। कई चुनाव विशेषज्ञ इसे एक क्रांतिकारी पहल मान रहे हैं। भारत की इस बड़ी पहल से दुनिया की चुनाव प्रक्रिया को एक नई रोशनी मिलेगी। इससे भारत का लोकतंत्र अधिक सशक्त, निष्पक्ष एवं प्रभावी बनकर प्रस्तुत होगा। जन प्रतिनिधित्व एवं सत्ता तक पहुँचने के रास्तों को अधिक कारगर, निष्पक्ष एवं बहुसंख्य मताधिकार पूर्ण बनाने में सहयोग मिलेगा। रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) के लिये चुनाव आयोग की प्रभावी भूमिका प्रशंसनीय है। उसकी सतत जागरूकता एवं चुनाव सुधार की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहनी अपेक्षित है, इसी से शत-प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा।