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राष्ट्र को दागी नेताओं से मुक्ति कब मिलेगी?

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-ललित गर्ग-

भारतीय राजनीति में आपराधिक छवि वाले या किसी अपराध के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को जनप्रतिनिधि बनाए जाने एवं महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी देने के नाम पर गहरा सन्नाटा पसरा है, जो लोकतंत्र की एक बड़ी विडम्बना बनती जा रही है। कैसा विरोधाभास एवं विसंगति है कि एक अपराध छवि वाला नेता कानून मंत्री बन जाता है, एक अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे प्रतिनिधि को शिक्षा मंत्री बना दिया जाता है। ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालय के साथ होता है। यह कैसी विवशता है राजनीतिक दलों की? अक्सर राजनीति को अपराध मुक्त करने के दावे की हकीकत तब सामने आ जाती है जब किसी राज्य या केंद्र में गठबंधन सरकार के गठन का मौका आता है। बिहार में नई सरकार में कानून मंत्री बने राष्ट्रीय जनता दल के विधायक कार्तिकेय सिंह हैं। जिन्हें मंगलवार को पटना के दानापुर में अदालत के सामने समर्पण करना था, मगर वे राजभवन में शपथ लेने पहुंच गए।
बिहार में नीतीश कुमार को एक सुशासन के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने राज्य में अपराध के खात्मे की घोषणा के बूते ही अपने राजनीतिक कद को ऊंचा किया। लेकिन ताजा उलटफेर में जिन लोगों को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया है, उनमें से कई पर लगे आरोपों के बाद एक बार फिर इस सवाल ने जोर पकड़ा है कि जो लोग राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त बनाने की बात करते हैं, वे हर बार मौका मिलने पर अपने संकल्प एवं बेदाग राजनीति के दावों से पीछे क्यों हट जाते हैं? गौरतलब है कि 2014 में कार्तिकेय सिंह सहित सत्रह अन्य लोगों पर पटना के बिहटा थाने में अपहरण का मामला दर्ज कराया गया था। कार्तिकेय सिंह पर आरोप है कि उन्होंने एक बिल्डर को मारने के मकसद से अपहरण की साजिश रची थी। यह अजीब स्थिति है कि अक्सर साफ-सुथरी और ईमानदार सरकार देने के दावों के बीच आपराधिक छवि के लोगों को उच्च पद देने का सवाल उभर जाता है। सवाल है कि क्या नीतीश कुमार अपने ही दावों को लेकर वास्तव में गंभीर हैं? ऐसे जिम्मेदार राजनेता अपने दावों से पीछे हटेंगे तो राजनीति को कौन नैतिक संरक्षण देगा?
आज भारत की आजादी का अमृत महोत्सव की परिसम्पन्नता पर एक बड़ा प्रश्न है भारत की राजनीति को अपराध मुक्त बनाने का। यह बेवजह नहीं है कि देशभर में अपराधी तत्त्वों के राजनीति में बढ़ते दखल ने एक ऐसी समस्या खड़ी कर दी है कि अपहरण के आरोपी अदालत में पेश होने की जगह मंत्री पद की शपथ लेने पहुंच जाते हैं। हम ऐसे चरित्रहीन एवं अपराधी तत्वों को जिम्मेदारी के पद देकर कैसे सुशासन स्थापित करेंगे? कैसे आम जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे? इस तरह अपराधी तत्वों कोे महिमामंडित करने के बाद नीतीश कुमार के उन दावों की क्या विश्वसनीयता रह जाती है कि वे बिहार को अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्त कराएंगे?
बड़ा प्रश्न है कि आखिर राजनीति में तब कौन आदर्श उपस्थित करेगा? क्या हो गया उन लोगों को जिन्होंने सदैव ही हर कुर्बानी करके आदर्श उपस्थित किया। लाखों के लिए अनुकरणीय बने, आदर्श बने। चाहे आज़ादी की लड़ाई हो, देश की सुरक्षा हो, धर्म की सुरक्षा हो, अपने वचन की रक्षा हो अथवा अपनी संस्कृति और अस्मिता की सुरक्षा का प्रश्न हो, उन्हांेने फर्ज़ और वचन निभाने के लिए अपना सब कुछ होम दिया था। महाराणा प्रताप, भगत सिंह, दुर्गादास, छत्रसाल, शिवाजी जैसे वीरों ने अपनी तथा अपने परिवार की सुख-सुविधा को गौण कर बड़ी कुर्बानी दी थी। गुरु गोविन्दसिंह ने अपने दोनों पुत्रांे को दीवार में चिनवा दिया और पन्नाधाय ने अपनी स्वामी भक्ति के लिए अपने पुत्र को कुर्बान कर दिया। ऐसे लोगों का तो मन्दिर बनना चाहिए। इनके मन्दिर नहीं बने, पर लोगों के सिर श्रद्धा से झुकते हैं, इनका नाम आते ही। लेकिन आज जिस तरह से हमारा राष्ट्रीय जीवन और सोच विकृत हुए हैं, हमारी राजनीति स्वार्थी एवं संकीर्ण बनी है, हमारा व्यवहार झूठा हुआ है, चेहरों से ज्यादा नकाबें ओढ़ रखी हैं, उसने हमारे सभी मूल्यों को धराशायी कर दिया। राष्ट्र के करोड़ों निवासी देश के भविष्य को लेकर चिन्ता और ऊहापोह में हैं। वक्त आ गया है जब देश की संस्कृति, गौरवशाली विरासत को सुरक्षित रखने के लिए कुछ शिखर के व्यक्तियों को भागीरथी प्रयास करना होगा। दिशाशून्य हुए नेतृत्व वर्ग के सामने नया मापदण्ड रखना होगा। अगर किसी हत्या, अपहरण या अन्य संगीन अपराधों में कोई व्यक्ति आरोपी है तो उसे राजनीतिक बता कर संरक्षण देने की कोशिश या राजनीतिक लाभ उठाने की कुचेष्ठा पर विराम लगाना ही होगा।
सीमाओं पर राष्ट्र की सुरक्षा करने वालों की केवल एक ही मांग सुनने में आती है कि मरने के बाद हमारी लाश हमारे घर पहुंचा दी जाए। ऐसा जब पढ़ते तो हमारा मस्तक उन जवानों को सलाम करता है, लगता है कि देश भक्ति और कुर्बानी का माद्दा अभी तक मरा नहीं है। लेकिन राजनीति में ऐसा आदर्श कब उपस्थित होगा। राजनीति में चरित्र एवं नैतिकता के दीये की रोशनी मन्द पड़ गई है, तेल डालना होगा। दिल्ली सरकार में मंत्रियों के घरों पर सीबीआई के छापे और जेल की सलाखें हो या बिहार मंत्री परिषद के गठन में अपराधी तत्वों की ताजपोशी-ये गंभीर मसले हैं, जिन पर राजनीति में गहन बहस हो, राजनीति के शुद्धिकरण का सार्थक प्रयास हो, यह नया भारत -सशक्त भारत की प्राथमिकताएं होनी ही चाहिए।
ंसभी अपनी-अपनी पहचान एवं स्वार्थपूर्ति के लिए दौड़ रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। कोई पैसे से, कोई अपनी सुंदरता से, कोई विद्वता से, कोई व्यवहार से अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयास करते हैं। राजनीति की दशा इससे भी बदतर है कि यहां जनता के दिलों पर राज करने के लिये नेता अपराध, भ्रष्टाचार एवं चरित्रहीनता का सहारा लेते हैं। जातिवाद, प्रांतवाद, साम्प्रदायिकता को आधार बनाकर जनता को तोड़ने की कोशिशें होती है। पर हम कितना भ्रम पालते हैं। पहचान चरित्र के बिना नहीं बनती। बाकी सब अस्थायी है। चरित्र एक साधना है, तपस्या है। जिस प्रकार अहं का पेट बड़ा होता है, उसे रोज़ कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार राजनीतिक चरित्र को रोज़ संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल, साफ छवि, ईमानदारी एवं अपराध-मुक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। नीतीशकुमार से बहुत उम्मीदें है, वे अपनी छवि के मुताबिक फैसले लेे और ईमानदार लोगों को मंत्री बनाएं। यही उनके लिये सुविधाजनक होगा और यही उनके राजनीतिक जीवन का दीर्घता प्रदान करेंगा।
बिहार ही नहीं समूचे देश में जन प्रतिनिधि बनने एवं उसे मंत्री बनाये जाने की न्यूनतम अपेक्षाओं में उसका अपराधमुक्त होना जरूरी होना चाहिए। उस पर किसी भी अदालत में कोई मामला विचाराधीन नहीं होना चाहिए। बिहार की मौजूदा सरकार में हालत यह है कि जितने विधायकों को मंत्री बनाया गया है, उनमें से बहत्तर फीसद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। गैरसरकारी संगठन एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिसर्च की ताजा रिपोर्ट में यह बताया गया है कि तेईस मंत्रियों ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी दी है। इनमें सत्रह मंत्रियों के खिलाफ गंभीर अपराधों का धाराएं लगी हुई हैं। कब मुक्ति मिलेगी इन अपराधी तत्वों से राष्ट्र को? राजनीति में चरित्र-नैतिकता सम्पन्न नेता ही रेस्पेक्टेबल (सम्माननीय) हो और वही एक्सेप्टेबल (स्वीकार्य) हो।