आजादी के गुमनाम मतवालों को याद करते हुए स्वतंत्रता दिवस के 76 वें मौके पर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बेहद अलग, दार्शनिक लेकिन संकल्पित अंदाज में दिखे। उन्होंने
भ्रष्टाचारियों को भी खुले तौर पर ललकारा तथा भाई-भतीजावाद का विरोध कर इसे नई पीढ़ी
के खिलाफ बताया। लालकिले की प्राचीर से उनका यह पहला भाषण था जिसमें उन्होंने
देशवासियों का बेहद भावुक अंदाज में आव्हान किया और बताया कि किस तरह आजादी के
सैकड़ों वर्षों के संघर्ष, पराक्रम, बलिदान, त्याग और उपलब्धियों के चलते ही आज हम यहाँ
तक पहुँचे हैं। प्रधानमंत्री ने आने वाले 25 साल के लिए पंच प्रण यानी 5 संकल्पों पर सभी
को अपनी शक्ति, संकल्प तथा सामर्थ्य के साथ केंद्रित होने का आग्रह किया। पहला प्रण देश
बड़े संकल्प के साथ चले जिसमें हमें विकसित भारत से कम कुछ भी नहीं चाहिए। दूसरा
प्रण किसी भी कोने में हमारे मन में गुलामी का लेशमात्र अंश भी न रहे। हमें वैसा ही होना
चाहिए जैसे हैं। अब बिल्कुल जरूरी नहीं कि सात समंदर पार के गुलामी के जरा से भी तत्व
रह जाएं। दासता के सभी निशान मिटा दें। तीसरा प्रण हमें हमारी अपनी विरासत पर गर्व
करना होगा। यही वो विरासत है जो कभी भारत का स्वर्णिम काल था और जिस पर हमें गर्व
होना चाहिए। चौथा प्रण एकता और एक जुटता का है। 130 करोड़ देशवासियों में ऐसी एकता
हो जिसमें न कोई अपना न कोई पराया हो सब एक हों। एकता की ताकत एक भारत, श्रेष्ठ
भारत के सपनों के लिए अहम है। पांचवां प्रण नागरिकों के कर्तव्य हैं सब इसे समझें और पूरा
करें चाहे प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री कोई भी बाहर नहीं है।
इस बार प्रधानमंत्री का उद्बोधन और आत्मविश्वास का बेहद अलग ही दार्शनिक
लेकिन दो टूक रहा जो बता रहा था कि वो एक नए भारत का खाका लालकिले की प्राचीर से
देश के सामने रख रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने बड़े ही खुलेपन से कहा कि यह वही भारत है
जिसने अन्न संकट पर आत्म निर्भरता प्राप्त की। युध्द की विभीषिकाओं, आतंकवाद से
निपट कर हमने अपना सामर्थ्य दुनिया को दिखा दिया। यह भारत की संस्कार सरिता ही है
जिसने सफलता-विफलता, आशा-निराशा के अनेकों पड़ावों के बाद भी देश को दुनिया में एक
अलग मुकाम पर ला खड़ा किया। आज दुनिया को भारत जो दे रहा है वह किसी के पास
नहीं है। व्यक्तिगत तनाव से निपटने खातिर भारतीय योग तो सामूहिक तनाव से निपटने के
लिए भारतीय परिवारों के उदाहरण दिए जाते हैं। संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी पूंजी सदियों
से हमारी माताओं का त्याग और बलिदान है जिनके कारण ही परिवार नाम की जो व्यवस्था
विकसित हुई वह हमारी बड़ी विरासत है जिस पर गर्व है।
नारी के सम्मान पर बेहद भावुक अंदाज में उन्होंने सबका ध्यान खूब खींचा। उन्होंने
कहा किसी न किसी कारण से हमारे बोलचाल, व्यवहार में एक विकृति आई है। क्या हम
स्वभाव, संस्कार, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का
संकल्प ले सकते हैं? हम इस पर जितना ध्यान देंगे, जितना ज्यादा अवसर बेटियों को देंगे
देखेंगे कि वो देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगी। अदालतों का उदाहरण देते हुए कहा कि
वकील के तौर पर नारी शक्ति का वर्णन और गांवों में पंचायत से लेकर आज ज्ञान-विज्ञान के
हर क्षेत्र में नारी शक्ति सिरमौर नजर आती हैं। पुलिस में सुरक्षा की जिम्मेदारी उठातीं तो
खेल-कूद का मैदान देखें या युद्ध की भूमि देखें भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य के
साथ आगे आ रही हैं। आने-वाले 25 साल में ये योगदान और ज्यादा बढ़ेगा।
आजादी की जंग की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने उसके रूपों की भी चर्चा की। ऐसे ही
एक रूप में स्वामी नारायण गुरु, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंदो, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे
अनेकों महापुरूषों ने देश के कोने-कोने में भारत की चेतना को जगाया। वहीं मंगल पांडे, तात्या
टोपे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, असफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल
जैसे क्रांति वीरों का वो रूप भी दिखा जिसने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दीं। वहीं अलूरी
सीताराम राजू तो महिलाओं में रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, रानी गाइडिंगलू, रानी
चेनम्मा का दौर भी बताया। जब देश का कोई कोना या कोई काल ऐसा नहीं था जहाँ
देशवासियों ने सैंकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न लड़ी हो। तमाम यातनाएं झेलीं
और अपने प्राणों तक की आहुति दे दी। ऐसे हर महापुरुष, हर बलिदानी और त्यागी को याद
करने व नमन करने का अवसर बताया।
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