प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारी विकास का सपना रात के अँधेरे में बंद आँखों से नहीं, दिन के उजाले में खुली आँखों से देखा है। उनके स्वप्न में नारी के चहुंमुखी विकास की कल्पना के साथ स्त्री और पुरुष की समानता की दस्तक है। मोदी ने 2020 के स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन में घोषणा की थी कि देश में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 किया जाएगा। वे जो कहते हैं, उसे साकार भी करते हैं, यही कारण है कि करीब एक वर्ष बाद ही प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा को क्रियान्वित कर दिखाया हैै। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 18 से 21 वर्ष तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब इसे संसद में पेश किया जाएगा। निश्चित ही इस नयी व्यवस्था के बनने से नारी जीवन में एक नया उजाला होगा। एक मंजिल, एक दिशा और एक रास्ता, फिर भी स्त्री और पुरुष के जीवन में अनेक असमानताएं रही हैं, समाज की दो शक्तियां आगे-पीछे चल रही थी। इस तरह की विसंगतियों एवं असमानताओं को दूर करने के लिये सोच के दरवाजे पर कई बार दस्तक हुई, जब-जब दरवाजा खोला गया, दस्तक देने वाला वहां से लौटता दिखाई दिया। लेकिन मोदी ने दस्तक भी दी और इसे साकार भी किया है, जिसका स्वागत होना चाहिए। क्योंकि इससे नारी तेजी से विकास करते हुए अपने जीवन में पसरी अनेक विसंगतियों को दूर होते हुए देख सकेंगी। लेकिन कानून बनाने का फायदा तभी है, जब उसे संपूर्णता में लागू किया जाये। परिवार व समाज को बेटियों के व्यापक हित के लिए ज्यादा ईमानदारी एवं संवेदना से सोचना अपेक्षित है। अब भारत में पुरुष और महिला, दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सीमा 21 हो जाएगी, जो एक आदर्श एवं समतामूलक समाज की संरचना को आकार देगी।
लड़कियों के विवाह की उम्र का प्रश्न केवल संतुलित समाज व्यवस्था से ही नहीं जुड़ा है बल्कि यह उनके स्वास्थ्य, सोच, सुरक्षा, विकास से भी जुड़ा है। हर देश, समाज एवं वर्ग विकसित होना चाहता है। विकास की दौड़ में महिलाएं भी पीछे क्यों रहे? यह प्रश्न अर्थहीन नहीं है, पर इसके समाधान में अनेक बिन्दुओं को सामने रखकर मोदी ने चिन्तन किया और एक नवनीत समाज एवं राष्ट्र के सम्मुख प्रस्तुत किया है। प्रधानमंत्री ने तब कहा था, ‘सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए जरूरी है कि उनकी सही उम्र में शादी हो।’ इसके लिए एक टास्क फोर्स की स्थापना हुई थी, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, कानून मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। टास्क फोर्स ने पुरजोर तरीके से कहा था कि पहली गर्भावस्था के समय किसी महिला की आयु कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए। सही समय पर विवाह होने पर परिवारों की वित्तीय, सामाजिक और स्वास्थ्य की स्थिति मजबूत होती है। परिपक्व उम्र में शादी होने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ने और आजीविका चुनने का मौका मिलता है। वे एक परिवार के कुशल संचालन में भी दक्ष हो जाती है। जगजाहिर है कि बड़ी संख्या में लड़कियों की पढ़ाई, रोजगार, परिवार संचालन की जिम्मेदारी कम उम्र में शादी की वजह से बाधित होती रही है। अपने मौलिक गुणों से सम्पन्न लड़कियों जिस किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो वह कल-कल करती नदी की तरह निर्मल व पवित्र रहती हुई न केवल स्वयं विस्तार पाती है बल्कि जहां-जहां से वह गुजरती है विविध रूपों में उपयोगी बनती जाती है। उपयोगी बनने की एक उम्र सीमा होती है।
मोदी सरकार विवाह की उम्र सीमा बढ़ाने के बाद अब बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में संशोधन पेश करेगी और इसके परिणामस्वरूप विशेष विवाह अधिनियम और हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 जैसे व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन लाएगी। दिसम्बर 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता वाली केन्द्र की टास्क फोर्स द्वारा नीति आयोग को सिफारिशें सौंपी थीं। इस टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की उम्र से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने की अनिवार्यता, पोषण में सुधार से संबंधित मामलों की जांच के लिए किया गया था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इन्हीं सिफारिशों के आधार पर ही लड़कियों के विवाह उम्र बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होने के अनेक फायदे हैं, सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि लड़कियों का आत्मविश्वास एवं मनोबल बढ़ेगा। वे अपने कैरियर एवं जीवन के लिये प्रभावी निर्णय लेने में सक्षम होंगी। वे बाल विवाह जैसे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस करेंगी। अत्याचार एवं शोषण का प्रतिकार कर सकेंगी। परिवार व समाज को बेटी के 21 साल की होने का इंतजार करना पड़ेगा।
नारी को अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाना है, उन्हें एक ऐसा पेड़ बनना है जो छाया भी दे और फल भी दे। उनकी उपयोगिता बनी रहे। गुजरते दौर में उन्होंनेे सुंदर कपड़े पहनना, सुन्दर व आकर्षक दिखना, सुंदर घर सजाना, ज्ञान और विज्ञान की सुंदर बातें करना सीख लिया है। इसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन अब उन्हें अपने पेरों पर खड़े होकर स्वयं को निर्मित करते हुए समाज एवं राष्ट्र के विकास में भी योगदान देना है। इसके लिये जरूरी है कि वे कच्ची उम्र में विवाह के बंधन एवं परम्परा से मुक्ति पाये। कानून के बन जाने पर भी वे इन परम्पराओं एवं बंधनों से मुक्त हो जायेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। आज भी देश एवं दुनिया में नारी के सम्मान एवं अधिकार के लिये बने कानूनों की धज्जियां उड़ते हुए देखी जाती है।
समाज का एक बड़ा तबका आज भी नारी को दोयम दर्जा का ही मानता है। ऐसी पुरानपंथी सोच वालों का सोचना है कि लड़कियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं, इसलिए दुल्हन को दूल्हे से कम उम्र की होना चाहिए। साथ ही यह भी कहा जाता है कि चूंकि हमारे यहां पितृ सत्तात्मक समाज है, तो पति के उम्र में बड़े होने पर पत्नी को उसकी बात मानने पर उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचती। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने समय-समय पर लड़कियों की शादी की उम्र पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई हैं। वर्ष 1929 के बाद शारदा एक्ट में संशोधन करते हुए 1978 में महिलाओं के विवाह की आयु सीमा बढ़ाकर 15 से 18 साल की गई थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मातृत्व मृत्यु दर गर्भावस्था पर उसके संक्रमित कारणों के चलते हर वर्ष एक लाख महिलाओं की मातृत्व के कारण मौत हो जाती है। मातृत्व मृत्यु दर का बड़ा कारण कम उम्र में शादियां होना ही है। इसलिये समूची दुनिया में लड़कियों की उम्र बढ़ाने पर व्यावक स्तर पर चर्चा होती रही है, परिवर्तन भी किये जा रहे हैं। चीन में शादी की न्यूनतम उम्र पुरुषों के लिए 22 साल और महिलाओं के लिए 20 साल तय की गई है। पाकिस्तान और कई अन्य मुस्लिम देशों में पुरुषों के लिए शादी की उम्र 18 साल और महिलाओं के लिए 16 साल है। ईरान में लड़कियों के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 13 साल है, लेकिन अदालत और लड़की के पिता की अनुमति हो तो 9 वर्ष में भी लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इराक में लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष तय है लेकिन अगर मां-बाप की इजाजत हो तो शादी 15 वर्ष की उम्र में भी हो सकती है। यहां तक कि अमेरिका में भी कोई उच्च सीमा नहीं है। वहां साल 2000 से 2015 के बीच अवयस्कों के दो लाख से ज्यादा वैध विवाह दर्ज हुए थे। लेकिन वह अलग तरह के सामाजिक ढांचे वाला अमीर शिक्षित देश है, जबकि भारत में सामाजिक ढांचा दूसरी तरह का है, यहां कानून बनाकर और उसे ढंग से लागू करके ही आदर्श समानता, सह-जीवन एवं विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे महिलाओं के लिए शिक्षा और कैरियर में आगे बढ़ने के अवसर भी बन रहे हैं। इसलिए महिला मृत्यु दर में कमी लाना और पोषण के स्तरों में सुधार लाना जरूरी है। समय की दस्तक को सुनते हुए मां बनने वाली लड़की की उम्र से जुड़े पूरे मुद्दे को संवेदनशील नजरिये के साथ देखना जरूरी है। स्वस्थ एवं समतामूलक समाज की संरचना का दिल और दिमाग में उठ रहे इस नये सपने को आकार देने में सभी सहभागी बने, ताकि नारी जीवन-निर्माण का नया दौर शुरु हो सके।
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