उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। 14 मार्च 2022 तक 18वीं विधान सभा का गठन होना है। बीजेपी पिछली बार की तरह इस बार भी मोदी के भरोसे चुनाव मैदान में उतरेगी। 2017 और 2022 के विधान सभा चुनाव में फर्क की कि जाए तो पिछला चुनाव बीजेपी तत्कालीन अखिलेश सरकार की खामियों को गिनाकर जीती थी तो इस बार योगी सरकार के पांच वर्षो के फैसलों को आधार बनाकर बीजेपी को चुनाव जीतना होगा। 2017 में जिस तरह से समाजवादी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था, वहीं अबकी बार योगी सरकार को वैसे ही हालातों का गुजरना पड़ेगा। बीजेपी आलाकमान एक-एक विधान सभा सीट को महत्वपूर्ण मानकर रणनीति बना रही है तो उसकी खास नजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के अंतर्गत आने वाली पांचो विधान सभा सीटों पर विशेष तौर पर लगी है।
बीजेपी के शीर्ष नेताओं को पता है कि मोदी के संसदीय क्षेत्र की पांचों विधान सभा सीटों के लिए विपक्ष मजबूत चुनावी रणनीति बनाता है क्योंकि यहां होने वाली किसी भी जीत-हार का सीधा असर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘साख’ पर तो पड़ता है।इसका मैसेज भी दूर तक जाता है। वैसे वाराणसी जिले में कुल 8 विधान सभा सीटें हैं और इस समय सभी आठ सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। इस बार भी लगता नहीं है कि बीजेपी को वाराणसी की आठों विधान सभा सीटों पर विपक्ष की तरफ से कोई खास चुनौती मिल पाएगी, लेकिन सबसे अधिक सुर्खियां तो यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद वाराणसी उत्तरी विधान सभा क्षेत्र के दो बार के विधायक और योगी सरकार में स्टांप एवं पंजीयन मंत्री रवीन्द्र जायसवाल बटोर रहे हैं। रवीन्द्र जायसवाल का पूरा परिवार पिता से लेकर भाई तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस)से जुड़ा हुआ है।रवीन्द्र जायसवाल ने छात्र जीवन के दौरान अनेक आन्दोलनों में भाग लिया जिसके चलते उन्हें वाराणसी व मिर्जापुर जेल में भी काफी समय गुजारना पड़ा था।
बीजेपी नेता रवीन्द्र जायसवाल ने पिछले दो विधान सभा चुनाव वाराणसी शहर उत्तरी से जीते हैं। 2012 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में रवीन्द्र जायसवाल बीएसपी उम्मीदवार सुजीत मौर्य को 2336 वोटों से हरा कर विधायक बने थे। तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री। वहीं 2017 का विधान सभा चुनाव बीजेपी उम्मीदवार रविंद्र जायसवाल ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी को परास्त कर जीता था। वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के दौरान वाराणसी से दो विधायक मंत्री बने थे, तब शिवपुर विधानसभा सीट से अनिल राजभर को स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री और नीलकंठ तिवारी को राज्यमंत्री बनाया गया था।इसके बाद 21 अगस्त 2019 को हुए मंत्रिपरिषद के विस्तार के दौरान वाराणसी शहर उत्तर के विधायक रवींद्र जायसवाल को भी मंत्रिपरिषद के विस्तार के दौरान स्टांप एवं पंजीयन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बना दिया गया था।
वैसे पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के शहर उत्तरी विधानसभा से लगातार दूसरी बार विधायक बने रवीन्द्र जायसवाल को काफी पहले से मंत्री बनाने की मांग हो रही थी। मंत्री रवीन्द्र जायसवाल के पिता रामशंकर जायसवाल संघ के कार्यसेवक थे और उनके पिता का सपना था कि उनका बेटा एक दिन राजनीति के माध्यम से जनता की सेवा करे। रवीन्द्र जायसवाल जब राजनीति में आने लगे तो उनके पिता ने रवीन्द्र से एक वायदा लिया था कि वह (रवीन्द्र)राजनीति का पैसा कभी घर नहीं लाएंगे। अपने पिता से किया गया यह वायदा आज भी रवीन्द्र पूरी शिददत के साथ निभा रहे हैं।पेशे से अधिवक्ता विधायक रवीन्द्र जायसवाल ने आज तक जनप्रतिनिधि के तौर पर मिलने वाले वेतन का एक भी पैसा परिवार या स्वयं पर खर्च नहीं किया है,बल्कि इसे अन्य लोगों की मदद में ही लगाया है। सैलरी में मिलने वाली धनराशि से रवींद्र जायसवाल अपनी विधानसभा क्षेत्र में बिजली के खंभे और बड़ी संख्या में सोलर लाइटें लगवाते रहते हैं। पहली बार वर्ष 2012 में जब वह चुनाव जीते तब भी उन्होंने विधायक के तौर पर मिलने वाली सैलरी लेने से इंकार कर दिया था।
वाराणसी उत्तर विधान सभा क्षेत्र के निवासी खालिद जादूगर कहते हैं कि मंत्री रवींद्र जायसवाल, एक ऐसी शख्सियत है जो पूरी तरह बेदाग है। उनका जीवन सादगी भरा है। समाज सेवा में यह परिवार हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है।विधायक जायसवाल जनप्रतिनिधि के रूप मिलने वाला वेतन नहीं लेते हैं तो लखनऊ में मंत्री के रूप में मिलने वाले आलीशान बंगले को भी उन्होंने अपने निवास के लिए स्वीकार नहीं किया है। विधायक के रुप में मिले दो कमरों के एक छोटे से फ्लैट में ही वह लखनऊ प्रवास के दौरान निवास करते हैं। नदेसर, वाराणसी निवास अतुल सक्सेना रवीन्द्र जायसवाल की ईमानदारी की मिसाल देते हुए बताते हैं कि इनका(रवीन्द्र जायसवाल) विभाग (स्टांप एवं पंजीयन) एक ऐसा कमाऊ विभाग है जिसमें रजिस्टार सब रजिस्टार की ट्रांसफर पोस्टिंग में लाखों- करोड़ों के वारे न्यारे होते रहे हैं।पूर्व के अनेक विभागीय मंत्रियों पर ट्रांसफर पोस्टिंग में दलालों के माध्यम से लंबी धनराशि वसूलने के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष आरोप लगते रहे हैं। परंतु मंत्री बनने के दो वर्षो के बाद भी रवीन्द्र की छवि बेदाग है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि स्टांप एवं पंजीयन विभाग के रजिस्टार सब रजिस्टार तथा अन्य उच्च अधिकारियों की स्थानांतरण सूची हाल में ही जारी हुई थी। इनमें एक भी ऐसा अधिकारी नहीं मिला, जिसे अपनी मैरिट और योग्यता के आधार पर पोस्टिंग न मिली हो। यहां तक की विभागीय अधिकारी तो सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि इस बार पूरी ईमानदारी और पक्षपात रहित स्थानांतरण हुए हैं। इसके लिए मंत्री रविंद्र जायसवाल न केवल बधाई बल्कि साधुवाद के पात्र हैं। उनकी ईमानदारी निष्ठा और विभाग के प्रति समर्पण भावना की पूरे विभाग में चर्चा है।इसी लिए वाराणसी के तमाम लोग रवीन्द्र को ‘छुटका मोदी’ की उपमा भी देते हैं।
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