हवा का रूख भांप,घाटी नेताओं ने बदलेे सुर


अजय कुमार

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार

जम्मू-कश्मीर काफी बदल चुका है। बदला हुआ कश्मीर देश की जनता को काफी रास आ रहा है। इसके लिए केन्द्र की मोदी सरकार को सबसे अधिक श्रेय मिलना स्वभाविक है। क्योंकि 1954 में पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को अस्थायी रूप से धारा-370 और 35 ए के तहत जो स्पेशल स्टेट का दर्जा दिया गया था, वह कश्मीर के कुछ राजनैतिक और अलगाववादी नेताओं के अलावा किसी को रास नहीं आ रहा था,लेकिन इसको हटाने की बजाए कांगे्रस सहित जो भी दल सत्ता में आया वह इसे पालता पोसता रहा।परंतु जब से केन्द्र में मोदी सरकार आई थी, तब से लगने लगा था कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर से इन दो धाराओं को ‘विदा’ कर दिया जाएगा। ऐसा इस लिये भी लगता था क्योंकि जब भी केन्द्र के चुनाव होते थे भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में जम्मू-कश्मीर से धारा-370 और 35 ए को हटाए जाने का जिक्र जरूर होता था। मोदी सरकार ने उक्त दोनों धाराओं को खत्म करके जो दिलेरी दिखाई है,

उसकी चैतरफा चर्चा हो रही है, तो खुशी की बात यह भी है कि धारा 370 एवं 35 ए की बहाली को लेकर आगल उगलने वाले जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों के नेता और पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूख अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला,महबूबा के सुर भी हल्के पड़ गए हैं। उनको भी इस बात का अहसास हो गया है कि अब धारा-370 और 35 ए इतिहास बन चुका है। उक्त नेताओं के सुर ऐसे ही नहीं बदल गए है। इन नेताओं को इस बात का अच्छी तरह से अहसास है कि जम्मू-कश्मीर की जनता बदले माहौल में अपने आप को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही है।

उक्त दोनों धाराओं की समाप्ति के बाद जे एंड के में आतंकवाद 50 फीसदी कम हो गया है। वहां के चंद सियासी घरानों की ‘लूट-खसोट’ पर विराम लग गया है। विकास की योजनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
बैठक में जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा और खासकर कांग्रेस के दिग्गज नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की अहम भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है, जो पीएम मोदी के भी करीबी हैं। संसद में आजाद का कार्यकाल समाप्त होने केे समय आजाद की विदाई भाषण के समय मोदी ने कहा भी था कि हम आप यहां से जा रहे हैं, लेकिन हम आपका कहीं और बेहतर इस्तेमाल करेेंगे।बैठक में ऐसा ही देखने को मिला आजाद घाटी और दिल्ली में बैठे नेताओं के बीच ‘सेतु’ बांधने का काम करते दिखे।
दरअसल,भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता मिली थी। वहीं, 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य विधानमंडल को ‘स्थायी निवासी’ परिभाषित करने और उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता था।

यह भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया था। राष्ट्रपति ने 14 मई 1954 को इस आदेश को जारी किया था। यह अनुच्छेद 370 का हिस्सा था। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था। लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए थी. इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। 1976 का शहरी भूमि कानून राज्य पर लागू नहीं होता था। भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है। यह जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।

धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को मिले हुए थे। इस धारा की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी जैसे कानून लागू नहीं होते थे। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। जम्मू-कश्मीर का अलग राष्ट्र ध्वज था. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का था। जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता था।
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं थे। भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती थी। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।

बात 35 ए की कि जाए तो इसके तहते जम्मू-कश्मीर के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते थे। 14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे, उन्हीं को स्थायी निवासी माना जाता था। जो जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं था। राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकता था। सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकता था। वहां के विश्विद्यालयों में दाखिला नहीं ले सकता था। न ही राज्य सरकार की कोई वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता था। संवाद एक सतत प्रक्रिया है, इसका होना और जारी रहना ही अपने आप में सफलता है। जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की पहल को आगे बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में हुई बातचीत स्वागतयोग्य है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद खास तौर पर घाटी में जो तल्खी दिखी, उसका समाधान संवाद से ही संभव है। घाटी के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य दिग्गज मंत्रियों, नेताओं की बातचीत पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाह है। बहुत दिनों से यह मांग उठ रही थी कि केंद्र सरकार को कश्मीरी नेताओं से बातचीत करनी चाहिए। इस मांग के प्रति केंद्र ने उदारता दिखाई है और प्रधानमंत्री की इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के आठ राजनीतिक दलों के करीब 14 नेता शामिल हुए हैं। इनमें से ज्यादातर नेता वे हैं, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान नजरबंद कर दिया गया था। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के बाद निस्संदेह यह एक बड़ी सकारात्मक राष्ट्रीय घटना है।

बहरहाल, मुद्दे पर आया जाए तो कश्मीरी नेताओं के साथ पीएम मोदी की बैठक इसलिए अहम रही, क्योंकि बैठक में कुछ हद तक पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी महबूबा मुफ्ती को छोड़कर घाटी के अधिकांश नेताओं का 370 एवं 35 ए को बहाल करने से अधिक जोर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिए जाने और चुनाव कराए जाने का रहा, जिसके लिए केन्द्र पहले से ही सहमत था।जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम पूरा होते ही विधान सभा चुनाव कराए जा सकते हैं। फारूख और उमर अब्दुल्ला की नेशलन कांफे्रस हो या फिर महबूबा की पीडीपी ने धारा 370 और 35 ए के पक्ष मंे इतना ही कहा कि यह लड़ाई लोकतांत्रिक तरीके से और कोर्ट में लडी जाती रहेगी। ऐसा कहना इन नेताओं के लिए इस लिए भी जरूरी था क्योंकि अभी तक इनकी पार्टी का वजूद ही धारा 370 एवं 35 ए के इर्दगिर्द घूमता रहता था। महबूबा ने बैठक के बाद मीडिया से रूबरू होते हुए कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए पाकिस्तान से भी बात करने का जुमला जरूर छोड़ा,लेकिन सच्चाई यह भी थी कि जम्मू-कश्मीर से दिल्ली आते-आते पाकिस्तान को लेकर उनके तेवरों मेें काफी नरमी आ गई थी।
जम्मू कश्मीर का लेकर वहां के नेताओं और पीएम मोदी तथा होम मिनिस्टर अमित शाह के बीच जो गुफ्तगू हुई उसे आगे भी जारी रखा जाएगा। ताकि जम्मू-कश्मीर का नया रोडमैप तय हो जाए। सबसे अच्छी बात यह है कि कश्मीरी नेताओं को नई दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार पर पूरा भरोसा है। तभी यह महत्वपूर्ण बैठक संपन्न हो पाई।

लब्बोलुआब यह है कि जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को बदले करीब दो साल हो चुके हैं और इस बीच कोई ऐसी बड़ी घटना नहीं हुई जिससे लगे कि मोदी सरकार के फैसले के चलते देश की अखंडता पर आंच आ सकती है। जब धारा 370 एवं 35 ए को हटाया गया था,तब थोडे़ समय के लिए माहौल अफरा-तफरी वाला जरूर रहा था,लेकिन इसके बाद सब कुछ शांति से चलने लगा। खासकर मोदी सरकार ने कांगे्रस जैसे दलों को भी सियासत चमकाने का कोई मौका नहीं दिया। अब तो ऐसा लगने लगा है कि कश्मीर के नेता भी नहीं चाहते हैं कि उनको आतंकवादी देश पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाया जाए,क्योंकि पाकिस्तान पोषित आंतकवाद और कुछ नेताओं के अलगाववाद की राह पर चलने और लोकतंत्र की धारा से अलग रहने का घाटी की जनता को काफी खामियाजा भुगतना पड़ा है। ऐसे में, सब चाहेंगे कि घाटी में राजनीतिक प्रक्रिया फिर शुरू हो।

यह बहुत अच्छी बात है कि बैठक में पहले केंद्र सरकार ने एक प्रस्तुति के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर में कैसे विकास कार्य चल रहे हैं। केंद्र सरकार अगर विकास की पहल से भी घाटी के नेताओं को जोड़ सके, तो अच्छा होगा। राजनीतिक स्तर पर फिर से राज्य का दर्जा पाने के लिए तो कश्मीर के नेताओं को केंद्र सरकार के प्रति गंभीरता का प्रदर्शन करना होगा। केंद्र सरकार ने पहले भी संकेत दिए हैं कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा। अगर राज्य का दर्जा लौटाने के आग्रह के साथ घाटी के नेता नई दिल्ली आए हैं, तो उनका स्वागत है, लेकिन अगर उनकी मंशा पड़ोसी मुल्क को भी वार्ता में शामिल करने पर ज्यादा होगी, तो इससे कोई फायदा नहीं होगा।क्योंकि यह बात मोदी सरकार तो क्या कोई भी सियासी दल बर्दाश्त नहीं करेगा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए पाकिस्तान को भी बातचीत मंे शामिल किया जाए। वैसे भी जम्मू-कश्मीर में जो हालात बने हुए हैं उसके लिए सबसे अधिक पाकिस्तान ही कसूरवार है।

Keep Up to Date with the Most Important News

By pressing the Subscribe button, you confirm that you have read and are agreeing to our Privacy Policy and Terms of Use