समाज में जहर घोलने वाले बुल्ली-सुल्ली ऐप

– ललित गर्ग-

राष्ट्र एवं समाज में नफरत, द्वेष, साम्प्रदायिक संकीर्णता एवं बिखराव पैदा करने के लिये अनेक शक्तियां सक्रिय हंै। इन जोड़ने की बजाय तोड़ने वाली शक्तियों की सोच इतनी जहरीली एवं घातक है कि समाज को कमजोर ही नहीं बनाती बल्कि तोड़ भी देती है। ऐसी ही शक्तियों ने अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की जानकारी और इजाजत के बगैर उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें नीलामी के लिए इंटरनेट पर डालने का निन्दनीय एवं त्रासद कार्य किया है। इससे जुड़े बुल्ली बाई ऐप केस में हुए खुलासे हैरान भी करते हैं, शर्मनाक और अक्षम्य अपराध भी है। नए साल के पहले दिन कुछ महिला पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के जरिए सामने आया यह मामला सबको सकते में डालने वाला था। हालांकि इससे मिलता-जुलता एक मामला पिछले साल जुलाई में भी उठा था, जो सुल्ली डील के नाम से चर्चित हुआ था।
बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया साइटों पर महिलाओं को निशाना बनाने का मुद्दा देश में काफी तूल पकड़ रहा है। बुल्ली बाई ऐप हो या सुल्ली डील इनसे जुड़े कुछ लोग जानते नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। उससे कितना नुकसान हो रहा है या हो सकता है। उनके इन शरारतपूर्ण आपराधिक कार्याें से समाज में एक-दूसरे वर्ग के लिये बेवजह नफरत, घृणा एवं द्वेष पनप रहा है। समाज को तोड़ने की इन नापाक कोशिशों को लेकर राहत की बात यह रही कि इस बार विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और विचारधाराओं ने एक स्वर में इसकी कड़ी निंदा की। मुंबई पुलिस ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया, जिसका नतीजा कुछ गिरफ्तारियों के रूप में सामने आया है। ‘बुली बाई’ ऐप मामले की जांच कर रहे मुंबई पुलिस के साइबर प्रकोष्ठ ने उत्तराखंड से मामले की मास्टरमाइंड बताई जा रही 18 साल की लड़की को गिरफ्तार किया है, लेकिन उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सहानुभूति पैदा करने वाली है। साल 2011 में उसकी मां की कैंसर से और 2021 में पिता की कोरोना से मौत हो चुकी है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। लेकिन अक्सर ऐसे हालात के मारे लोगों को ही षडयंत्रकारी बड़े आपराधिक कारनामों के लिए इस्तेमाल करते हैं। समझना जरूरी है कि इस मामले की जांच अभी शुरू ही हुई है। जो लोग अभी नजर में आए हैं और पकड़े गए हैं उनकी जड़ का पता लगना बाकी है।
यह भी देखा जाना शेष है कि ये लोग दरअसल किस तरह की परिस्थितियों में और किन लोगों के कहने से इस मामले में जुड़े थे। जब तक परदे के पीछे से इन लोगों का इस्तेमाल कर रहे किरदारों का खुलासा नहीं होता, तब तक यह स्पष्ट नहीं होगा कि किशोरों एवं युवाओं को मोहरा बनाकर इस तरह के घृणित कांड को अंजाम देने वाले असली खलनायक कौन हैं। मगर यह भी सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। ऐसे मामले महज प्रशासनिक और कानूनी नजरिए से नहीं समझे जा सकते। ट्विटर और खास ऐप के सहारे खास कम्युनिटी की महिलाओं को निशाना बनाना न केवल महिला विरोधी पुरुषवादी सोच को दर्शाता है बल्कि उस खास समूह के खिलाफ सांप्रदायिक नफरत की भावना की भी पुष्टि करता है। ऐसी खलनायकी शक्तियां तो थोक के भाव बिखरी पड़ी हैं। हर दिखते समर्पण की पीठ पर स्वार्थ चढ़ा हुआ है। इसी प्रकार हर घातक एवं जघन्य कृत्य में कहीं न कहीं स्वार्थ एवं राष्ट्र विरोधी भावना है, किसी न किसी वर्ग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय  को नुकसान पहुंचाने की ओछी मनोवृत्ति है। आज जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं वे तथाकथित ताकतवर हैं। जिनके पास खोने के लिए बहुत कुछ मान, प्रतिष्ठा, छवि, सिद्धांत, पद, सम्पत्ति, सज्जनता है, वे कमजोर हैं। यह वक्त की विडम्बना है।
इन समाज में जहर घोलने वाले ऐप के ट्विटर हैंडल पर दी गई जानकारी में दावा किया गया है कि इसका निर्माता ‘केएसएफ खालसा सिख फोर्स’ है, जबकि एक अन्य ट्विटर हैंडल, खालसा सुप्रीमैसिस्ट, इसका फॉलोअर था। पुलिस के मुताबिक, सिख समुदाय से संबंधित नामों का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया गया कि ये ट्विटर हैंडल उस समुदाय के लोगों द्वारा बनाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि जिन महिलाओं को निशाना बनाया गया, वे मुस्लिम थीं, इसलिए ऐसी संभावना थी कि इससे दो समुदायों के बीच दुश्मनी एवं नफरत पैदा हो सकती थी और सार्वजनिक शांति भंग हो सकती थी। पुलिस ने कहा कि गिटहब प्लेटफॉर्म पर होस्ट किए गए बुल्ली बाई ऐप के माध्यम से वर्चुअल नीलामी के लिए महिलाओं की तस्वीरें प्रदर्शित की गईं और यह ‘सुल्ली डील्स’ ऐप मामले के समान था जो छह महीने पहले सामने आया था। इससे पहले, मुंबई के पुलिस आयुक्त हेमंत नगराले ने कहा था कि पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि ऐसे उपनामों का इस्तेमाल क्यों किया गया? निश्चित रूप से यह कोई साधारण नहीं बल्कि एक बड़ा षडयंत्र है, जिसके झूठ एवं बनावटी नामों का सहारा लिया है और किशोरों एवं युवाओं को मोहरा बनाया गया है। इनके असली मास्टरमाइंड का पता लगाना ज्यादा जरूरी है। क्योंकि आये दिन ऐसे लोग, विषवमन करते हैं, प्रहार करते रहते हैं, चरित्र-हनन करते रहते हैं, सद्भावना, साम्प्रदायिक सौहार्द और शांति को भंग करते रहते हैं। उन्हंे राष्ट्रीयता, भाईचारे और एकता से कोई वास्ता नहीं होता। वे ऐसे घाव कर देते हैं जो हथियार भी नहीं करते। किसी भी टूट, गिरावट, दंगों व युद्धों तक की शुरूआत ऐसी ही बातों से होती है।
आज हर हाथ में पत्थर है। आज हम समाज में नायक कम खलनायक ज्यादा हैं। प्रसिद्ध शायर नज्मी ने कहा है कि अपनी खिड़कियों के कांच न बदलो नज्मी, अभी लोगों ने अपने हाथ से पत्थर नहीं फैंके हैं। डर पत्थर से नहीं, डर उस हाथ से है, जिसने पत्थर पकड़ रखा है। बंदूक अगर महावीर-गांधी के हाथ में है तो डर नहीं। वही बंदूक अगर हिटलर के हाथ में है तो डर है। हर झूठ में एक सच्चाई का दर्शन होता है……. कि ‘पत्थर भी उन पेड़ों की तरफ फैंके जाते हैं जो फलदार होते हैं।’
भारत की विविधता में एकता एवं सर्वधर्म सम्भाव संस्कृृति को कुचलने की कोशिशें लगातार होती रही है, लेकिन महिलाओं को आधार बनाकर भारतीय संस्कृति एवं संविधान को देखते हुए षडयंत्रपूर्वक नफरत एवं घृणा फैलाना अनुचित ही नहीं, आपराधिक कृत्य है।
मुस्लिम महिलाओं की बोली लगाना हो या हिन्दू महिलाओं के चरित्रहनन की कोशिशें-यह समाज को विकृत करने एवं राष्ट्र की एकता को विखंड़ित करने की कुचेष्टाएं हंै। यह समझने के लिए किसी जांच-पड़ताल की जरूरत नहीं है कि मौजूदा प्रकरण में जो भी लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल रहे हैं, वे नफरत से भरी सांप्रदायिक और पुरुषवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं। जहां तक इस प्रकरण की बात है तो पुलिस की जांच सही ढंग से आगे बढ़ाकर इसके सभी दोषियों को कानून के अनुरूप सजा दिलाई जा सकती है। लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है समाज को इस जहरीली सोच के चंगुल से निकालना। यह बड़ी लड़ाई है और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को वैसी ही एकजुटता दिखानी होगी जैसी उन्होंने इस प्रकरण की निंदा करने में दिखाई।

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