संसद ही नहीं, देश एवं दुनिया में गूंजा मोदी संदेश

ललित गर्ग

इनदिनों संसद एवं संसद के बाहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार के खिलाफ विवादित बयानों की बाढ़ आयी है, सभी राजनीतिक दल कीचड़ उछाल रहे हैं, गाली-गलौच, अपशब्दों एवं अमर्यादित भाषा का उपयोग कर रहे हैं, जो लोकतंत्र के सर्वोच्च मंच में लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठाराघात है। विशेषतः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और उनकी जन-कल्याण की योजनाओं से भड़के कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एवं विपक्षी दलों के नेता अपनी जुबान संभाल नहीं पा रहे। जैसे-जैसे मोदी की साख एवं प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे उनके प्रति विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की बौखलाहट बढ़ती जा रही है, जिसे बजट सत्र में पहले संसद को बाधित करने एवं फिर संसद शुरु होने पर बहसों के दौरान देखने को मिला है।  
प्रधानमंत्री जब भी संसद में बोलते हैं, गहरा सन्नाटा छा जाता है। उनका एक-एक शब्द नपा-तुला एवं अर्थपूर्ण-परिपूर्ण होता है, जिसमें शेर-शायरी, महापुरुषों के कोटेशन भी होते हैं। यह सुखद एवं प्रेरक है कि भाषण के दौरान शायर जिगर मुरादाबादी से कवि दुष्यंत कुमार और काका हाथरसी तक की पंक्तियों को मोदी ने याद किया और अपने उद्बोधन का हिस्सा बनाया। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर हुई चर्चा में विपक्षी नेताओं और विशेष रूप से राहुल गांधी ने जो आरोप लगाए थे, उनका जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो उद्बोधन दिया, निश्चित ही संसद के इतिहास का एक यादगार उद्बोधन है। नरेन्द्र मोदी के दर्शन, उनके विकासमूलक कार्यक्रमों, उनके व्यक्तित्व, उनकी बढ़ती ख्याति व उनकी कार्य-पद्धतियां पर कीचड़ उछालने की हदें पार हो रही हैं, उनके खिलाफ अमर्यादित भाषा का उपयोग हो रहा हैं, संसद में बहस एवं चर्चाओं में भाषा की मर्यादा बिखर रही है, लेकिन मोदी ने अपने उद्बोधन में भाषा की मर्यादा को कायम रखते हुए कडवे सच एवं यथार्थ को भी शालीनता एवं सहजता से परोसा। जिस तरह अदाणी मामले को लेकर कुछ कहने की आवश्यकता उन्होंने नहीं समझी, उससे उन्होंने उस शोर को शांत करने का ही काम किया, जो अदाणी समूह को लेकर मचाया जा रहा है। आम तौर पर प्रधानमंत्री विपक्ष के आरोपों का चुन-चुनकर जवाब देते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने रणनीति के तहत अदाणी मामले पर कुछ नहीं कहा। इससे उन्होंने बिना कुछ कहे यही संदेश दिया कि विपक्ष अदाणी मामले को लेकर निराधार आरोप लगा रहा है। वैसे भी अदाणी को लेकर भाजपा ने संसद के बाहर एवं भीतर बहुत कुछ स्थितियों को स्पष्ट कर दिया था।
भले ही धन्यवाद प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया, लेकिन इस दौरान सदन में तीखे भाषण हुए, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चला, जो संसदीय परम्परा का एक हिस्सा कहा जा सकता है लेकिन जैसी बहस हुई, उसे देश में स्वस्थ लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाला कत्तई नहीं कह सकते है। विपक्ष की ओर से सबसे बड़ा मुद्दा अडाणी मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की मांग है। अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद इस ग्रुप के शेयरों में बड़ी गिरावट आई और उसके लगाए आरोपों का भारतीय कारोबारी समूह ने जवाब भी दिया। इससे जुड़े पहलुओं पर बैंकिंग और शेयर बाजार नियामकों की ओर से भी पहल हुई। ऐसे में जेपीसी की जांच की मांग इस मुद्दे का राजनीतिक पहलू ही है। यहां विपक्ष से गंभीर होकर सार्थक बहस करने एवं बुनियादी तथ्यों को उजागर करने की अपेक्षा थी, क्योंकि यह मसला बेवजह देश की अर्थव्यवस्था एवं बाजार को अस्त-व्यस्त कर रहा है। नियामक संस्थाओं की ओर से इस मामले में तत्परता से जांच-पडताल हो रही है, फिर भी राजनीतिक दलों एवं नेताओं के द्वारा इस मुद्दे को लेकर तिल का ताड़ बनाना, देशहित में नहीं है। क्योंकि विपक्ष के बेतूके बयानों एवं आरोपों से शेयर बाजार अनिश्चित होता है, जो ठीक नहीं है। वैसे सरकार को चाहिए कि अदाणी को लेकर छाये धूंध की तस्वीर को साफ करें ताकि इस मामले का साया स्टॉक मार्केट से हट सके। देश के विकास में उद्योगपतियों की भी एक बड़ी भूमिका है, लेकिन विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस की ओर से रह-रहकर ऐसा माहौल बनाया जाता है कि उद्योगपति सरकार की सहायता से देश को ठगने-लूटने का काम कर रहे हैं। यह इसलिए ठीक नहीं, क्योंकि इससे उद्योगपतियों के साथ उद्यमशीलता के विरुद्ध भी वातावरण बनता है। जो देश को विकास की ओर अग्रसर करने की बड़ी बाधा है।
मोदी के इस भाषण को एक सन्देश के रूप में याद किया जायेगा। जैसे अटल विहारी वाजपेयी के अनेक संसदीय उद्बोधन आज भी याद किये जाते हैं, सुने जाते हैं। इस तरह वर्षों बाद संसद में ऐसी रोचक एवं प्रेरक स्थिति बनी, जब लोगों ने कान लगाकर मोदी को सुना है और उनके इस उद्बोधन को याद भी रखेंगे। विपक्ष का हमला अगर तीखा था, तो सत्ता पक्ष का जवाबी प्रहार भी कुछ कम न था। बहरहाल, अडानी के संबंध में मोदी ने एक शब्द भी नहीं बोला बल्कि उन्होंने विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथ लेने की रणनीति को तरजीह दी। विशाल आबादी वाले हमारे देश की तेज उभरती अर्थव्यवस्था में अनैतिक चालाकियों के लिए कोई जगह न रहे, बेवजह के आरोपों से राजनीतिक दलों का भले हित सधता हो, लेकिन देश का भारी नुकसान होता है। इस नुकसान की चिन्ता मोदी के उद्बोधन में थी। प्रधानमंत्री का जहां तक संबंध है, विपक्ष के आरोपों को उन्होंने बहुत गंभीरता से लिया है, उनके आहत मन को उनकी चुटकियों और उक्तियों में समझा जा सकता है। अपशब्दों और आरोपों से वह आहत थे और उन्होंने यह भी छिपाया नहीं। उन्होंने अपनी ओर से भी शालीनता से सुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। विपक्ष अडानी-अडानी के शोर के साथ विरोध में जुटा रहा, मोदी अपने इस उद्बोधन से देश की असंख्य जनता के दिलों में जगह बनाने में कामयाब होते रहे। प्रधानमंत्री ने विपक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘ये लोग तो अपने और अपने लोगों के लिए जी रहे हैं, लेकिन मोदी देश के 25 करोड़ परिवारों का सदस्य है। मेरे लिए 25 करोड़ परिवार ही सुरक्षा कवच हैं, जिसे आप इन शस्त्रों से कभी भेद नहीं सकते।’ यह एक तरह से विपक्ष की ओर इशारा भी है कि हमले की उसकी तैयारी मुकम्मल नहीं है, निस्तेज एवं आधारहीन आरोपों की विपक्षी संस्कृति उसके लिये ही नुकसान का कारण बनती रही है। प्रधानमंत्री के जवाब ने बता दिया कि मजबूत सत्ता पक्ष के सामने बिखरे हुए विपक्ष की मंजिल अभी दूर है।
देखा जाये तो प्रधानमंत्री ने यह कहकर विपक्ष के बुने जाल में फंसने के बजाय उसके इरादों पर पानी फेर दिया कि झूठ और झूठ के हथियार से उन्हें हराया नहीं जा सकता। उनके इस कथन का कोई मतलब है तो यही कि विपक्ष जो कुछ कहने और सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है, उसमें कोई दम नहीं। उन्होंने विपक्ष को आईना दिखाने के लिए यूपीए सरकार के समय हुए उन घोटालों का भी जिक्र किया, जो सच में हुए थे और एक पूरा दशक घोटालों का दशक बना था। प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी तो विपक्ष के लिए बड़े काम की है कि ‘जो लोग अहंकार के नशे में चूर हैं और सोचते हैं कि केवल उनके पास ज्ञान है, उन्हें लगता है कि मोदी को गाली देने से ही रास्ता निकलेगा, कि मोदी पर झूठे, बेतुके कीचड़ उछालने से ही रास्ता निकलेगा, तो 22 साल हो गए, उन्हें अभी भी गलतफहमी है।’ क्या अब भी विपक्ष मोदी को निशाना बनाने से परहेज करेगा, राहुल गांधी एवं विपक्ष अपनी ऐसी ही बेवकूफी से अपनी ही जड़े खोद रहा है। क्योंकि मोदी को निशाना बनाने की राजनीति विपक्ष के लिये हमेशा नुकसानदायी रही है, मोदी अधिक चमके हैं, अधिक सशक्त बने हैं। इसका जबाव भी मोदी ने ही दिया कि भारतीय समाज नकारात्मकता को सहन कर लेता है, स्वीकार नहीं करता है।’ आज जैसे बुद्धिमानी एक ”वैल्यू“ है, वैसे बेवकूफी भी एक ”वैल्यू“ है और मूल्यहीनता के दौर में यह मूल्य काफी प्रचलित है। आज के माहौल में इस ”वैल्यू“ को फायदेमंद मानना राजनीति की एक अपरिपक्वता एवं नासमझी ही कही जायेगी। कांग्रेसी नेताओं एवं अन्य दलों के नेताओं की फिसली जुबान ने भाजपा को संजीवनी ही दी है।

Keep Up to Date with the Most Important News

By pressing the Subscribe button, you confirm that you have read and are agreeing to our Privacy Policy and Terms of Use