अपने देश-प्रदेश में अक्सर ही तमाम मंचों, बैठकों और बुद्धिजीवियों के बीच राजनीति के गिरते स्तर को लेकर चर्चा सुनने को मिल जाती है। आमजन हो या फिर खास वर्ग सभी इस बात से दुखी दिखाई देते हैं कि देश में सियासत का लगातार गिरता जा रहा है। पहले के नेताओं के बीच मतभेद तो देखने को मिलता था,लेकिन मनभेद कभी सामने नहीं आता था। अलग-अलग पार्टियों और विचारधारा के बाद भी सभी नेता एक साथ उठते-बैठते, एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे। बड़े हो या फिर छोटे नेता सभी परस्पर विरोधी विचारधारा और पार्टी के नेताओं के यहां होने वाले पारिवारिक समारोह में भी शामिल होने से गुरेज नहीं करते थे,यदि कभी कोई सवाल खड़ा करता तो यही नेता बड़ी सादगी से कह दिया करते थे, हमारे विचार अलग-अलग हो सकते हैं,लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं। परस्पर विरोधी दलों के पुराने नेता यह कहते ही नहीं करके भी दिखाते थे,इसी लिए किसी भी विरोधी दल के नेता के जन्मदिन पर बधाई देने वाले अन्य दलों के नेता पार्टी से ऊपर उठ कर इस स्वस्थ्य परम्परा का निर्वाहन करते थे। यही परम्परा तमाम नेताओं के यहां होने वाले पारिवारिक समारोह के दौरान भी देखने को मिलती थी,इसी लिए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीजेपी से 36 का आकड़ा रखने वाली समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के यहां सैफई में हुए शादी समारोह में पहंुच जाते है। इसी तरह से हिन्दू हदय सम्राट पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का मुल्ला मुलायम कहलाये जाने वाले नेताजी के यहां आना जाना लगा रहता था। कल्याण सिंह खुलकर हिन्दुत्व की राजनीति करने के लिए जाने जाते थे तो मुलायम सिंह यादव मुसलमानों के पक्ष में बोलते थे,इसी लिए कारसेवकों पर गोली तक चलाने से उनकी(मुलायम सिंह)सरकार ने परहेज नहीं किया। बीजेपी के ही एक और दिग्गज नेता राजनाथ सिंह भी जब-तब मुलायम के घर पर पहुंच जाया करते थे,खासकर मुलायम सिंह के जन्मदिन पर तो यदि राजनाथ सिंह लखनऊ में होते थे तो जरूर जाते थे। इसी तरह से मंदिर-मस्जिद विवाद को छोड़कर पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव हमेशा बीजेपी नेताओं से मिलते-जुलते रहते थे। मुलायम सिंह सत्ता में रहे हो या नहीं बीजेपी नेताओं राजनाथ सिंह,कल्याण सिंह,लाल जी टंडन, कलराज मिश्र से उनका मिलना-जुलना लगा रहता था। मुलायम जहां नहीं पहुंच पाते थे,वह वहां अपने अनुज शिवपाल यादव को भेजते थे। कौन भूल सकता है जब 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने उनके कान में कुछ कहकर खूब सुर्खियां बटोरी थी। यह घटना तब की है जबकि कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा चुनाव मंे मोदी के चलते समाजवादी पार्टी चारो खाने चित हो गई थी। इसको देखकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव को कुछ अचरत भी हुआ था।
खैर,इसी प्रकार से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी,वीर बहादुर सिंह, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी,जगदम्बिका पाल भी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सामाजिक शिष्टाचार निभाते थे। सामाजिक शिष्टाचार निभाने के मामले में यदि कुछ नेता कंजूसी करते थे तो उसमें प्रमुख नाम पूर्व मुख्यमंत्री वीपी सिंह और बसपा सुप्रीमों मायावती का नाम आता था। वीपी सिंह को अपने राजा होने का दंभ था तो मायावती ने अपने पूरे सियासी जीवन में इस तरह के शिष्टाचार को कभी महत्व नहीं दिया। इसी लिए जब मायावती जब बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने उनके आवास पहुंची तो सब आश्चर्यचकित हो गए,लेकिन मायावती के कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने से अधिक चौंकाने वाली खबर यह बनी की लखनऊ में रहते हुए भी उन्होंने अपने समकक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को उनके आवास जाकर श्रद्धांजलि देना उचित नहीं समझा।इसी तरह से पूर्व सपा प्रमुख मुलायम ने भी कल्याण सिंह की मौत पर शोक संवेदना व्यक्त करना तक उचित नहीं समझा। इस पर सोशल मीडिया पर वह काफी ट्रोल भी हुए। लोगों ने यहां तक कहा की तुष्टिकरण की सियासत के चलते सपा प्रमुख आम शिष्टाचार भी भूल गए।अखिलेश ने सिर्फ ट्विट करके शोक संवेदना व्यक्त की थी। बहरहाल,अब यह मामला सियासी रूप से तूल पकड़ता जा रहा है. बीजेपी के नेता और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि कल्याण सिंह किसी की श्रद्धांजलि के मोहताज नहीं हैं लेकिन भगवान राम उन्हें सद्बुद्धि दें जो दिवंगत आत्माओं में भी तुष्टिकरण देखते हैं। कन्नौज से सांसद सुब्रत पाठक ने कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि न देने के लिए मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव, दोनों को आड़े हाथों लिया और ट्वीट कर कहा कि हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह जैसे जनप्रिय नेता को अगर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव श्रद्धांजलि और सम्मान नहीं देंगे तो इससे उनके (कल्याण सिंह) कद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने आगे ये भी कहा कि अगर लखनऊ में ये दोनों कल्याण सिंह के आखिरी दर्शन कर लेते तो इससे कार सेवकों पर गोली चलवाने वाली समाजवादी पार्टी को अपने पाप धोने का आखिरी मौका जरूर मिल जाता, लेकिन विनाशकाले विपरीत बुद्धि होती है और यही इनकी तालिबानी मानसिकता को दर्शाता हैं। योगी कैबिनेट मंत्री श्स्वामी प्रसाद मौर्या ने इस पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव पिछड़ों के वोट तो लेते हैंए लेकिन पिछड़ों के सबसे बड़े नेता कल्याण सिंह जी की लोकप्रियता को वो बर्दाश्त नहीं पाए। सपा और कांग्रेस का कोई भी नेता श्बाबूजीश् की अंतिम यात्रा में शोक संवेदना व्यक्त करने नहीं पहुंचा।
गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव ने श्रद्धांजलि के शब्द नहीं बोले जबकि अखिलेश यादव ने ट्वीट कर शोक व्यक्त किया था,जबकि कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव के साथ जनता पार्टी के सरकार में 1977 में मंत्रिमंडल में रहे थे। कल्याण सिंह जब बीजेपी से नाराज हुए तो मुलायम सिंह के करीब गए। कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी बनाई और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव भी लड़ा था। बता दें कि मायावती के कल्याण सिंह से रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। बावजूद इसके बसपा सुप्रीमो कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने लखनऊ में उनके घर पहुंची थीं और न सिर्फ श्रद्धा सुमन अर्पित किए, परिजनों से बातकर उन्हें ढांढ़स भी बंधाया।
हालांकि समाजवादी पार्टी द्वारा सफाई दी गई है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव शहर से बाहर होने और नेता जी मुलायम सिंह अस्वस्थ्य होने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के आवास पहुंच कर उन्हें श्रद्धाजंलि नहीं दे पाए थे।