राघवेन्द्र पी. तिवारी
कुलपति, पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने एक बार कहा था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में चरित्र निर्माण; मानवीय मूल्यों का विकास; आध्यात्मिक नींव के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करना; अनिश्चित भविष्य का मुकाबला करने के लिए आत्मविश्वास का निर्माण करना तथा गरिमा, आत्मसम्मान एवं आत्मनिर्भरता की भावना का विकास करना है। भारत की शिक्षा प्रणाली में तत्काल सुधार करने की आवश्यकता है ताकि हमारे युवा उपरोक्त गुणों को आत्मसात कर सकें; सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए युवाओं में विश्वस्तरीय दक्षता का विकास हो सके तथा देश को भौगोलिक लाभांश का फायदा मिल सके। आवश्यकता इस बात की है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के लिए अच्छे गुणों को विकसित करने के साथ व्यक्ति को प्रशिक्षण प्रदान कर सके। इसके अलावा मानव सभ्यता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए व्यक्ति में पूरी दुनिया के लोगों के प्रति बन्धुत्व की भावना तथा अन्य गुणों का विकास हो सके। इस संदर्भ को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) में सभी आवश्यक बदलावों को शामिल करने की कोशिश की गई है तथा इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वर्ष पहले भारत सरकार द्वारा घोषित इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करना और भी जरूरी हो गया है। एनईपी-2020 वास्तव में सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए राष्ट्र निर्माण के प्रति भारत सरकार की कटिबद्धता को दर्शाता है।
विद्यार्थी केंद्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में ऐसी ठोस व्यवस्था की गई है जिससे समानता, किफायती और सीखने के व्यापक अवसरों के आधार पर आजीवन सीखने वाले ज्ञान आधारित समाज का निर्माण करना संभव हो सकेगा। अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (एबीसी) विद्यार्थियों को मान्यता प्राप्त संस्थानों से अर्जित अकादमिक क्रेडिट को डिजिटल रूप से संग्रहीत करके विविध पाठ्यक्रमों एवं संस्थानों को चुनने में सक्षम बनाएगा और इसके साथ ही किसी कार्यक्रम या पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए आवश्यक क्रेडिट को अर्जित और संग्रहीत करके उन्हें संबंधित डिग्री प्रदान करने को सुविधाजनक बनाएगा। विद्यार्थियों को किसी कार्यक्रम या पाठ्यक्रम को छोड़ दूसरे कार्यक्रम या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने या उससे बाहर निकलने के विकल्प का उपयोग एक से अधिक बार करने की इजाजत दिए जाने से शिक्षार्थियों के विविध समूह की सीखने की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करना संभव हो सकेगा। कौशल विकास करने के मजबूत घटकों से युक्त बहु-विषयक पाठ्यक्रम संरचना से विद्यार्थियों को खंडित एवं गैर-प्रासंगिक शिक्षण परिवेश के बजाय प्रासंगिक और समग्र शिक्षण परिवेश से लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। ज्ञान सीखने की विधि को रोचक बनाने, और उच्च स्तर की चिंतन क्षमताओं को विकसित करने के लिए अनुभवात्मक शिक्षण अध्यापन, अर्थात, चर्चा/बहस/वाद-विवाद, प्रदर्शन, गतिविधि, परियोजना/शोध निबंध/इंटर्नशिप/केस स्टडी और भ्रमण आधारित सहयोगात्मक शिक्षण, और मिश्रित अध्यापन दृष्टिकोण के अनुरूप एवं अन्य तरीकों पर विशेष जोर दिया गया है। स्नातक संबंधी विशिष्ट गुण (जीए)/शिक्षण संबंधी विशिष्ट उपलब्धियां विद्यार्थियों में उन गुणों, कौशल और गहन समझ को सुनिश्चित करेंगी जिसे डिग्री प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए अध्ययन करते समय विद्यार्थियों में विकसित करने की आवश्यकता होती है। ये विशिष्टताएं पाठ्यपुस्तकों और कक्षाओं के दायरे से परे दक्षताओं को विद्यार्थियों में विकसित करने में मदद करेंगी। यही नहीं, ये विशिष्टताएं स्नातकों को वैश्वीकृत नागरिक बनने के साथ-साथ राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक हालात को बेहतर करने में सक्षम ‘ज्ञान आधारित समाज’ का प्रभावशाली सदस्य बनने के लिए भी सशक्त बनाएंगी। इस नीति में विद्यार्थियों की शिक्षण संबंधी सटीक उपलब्धियों या परिणामों को मापने के लिए उनका आकलन करने के उपयुक्त साधनों को विकसित करने पर भी विशेष जोर दिया गया है। भारतीय भाषाओं के बीच ज्ञान साझा करने के लिए परिकल्पित राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन के जरिए गवर्नेंस एवं नीति संबंधी ज्ञान के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं में संरक्षित पारंपरिक ज्ञान को प्रमुख भारतीय भाषाओं में इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जाएगा। इससे निश्चित रूप से देशवासियों में राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करने को काफी प्रोत्साहन मिलेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में सुझाये गये परिवर्तनकारी सुधार प्रौद्योगिकी के उपयोग के बिना लागू नहीं किए जा सकते। सिखाने-सीखने की प्रक्रिया में शिक्षकों और छात्रों को समान रूप से प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए। बहु-विषयक शिक्षा के युग की शुरुआत करने के लिए, एक व्यापक सांस्कृतिक और नैतिक बदलाव की जरूरत है। शैक्षणिक समुदाय, उद्योग जगत और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के प्रयोगशालाओं के बीच बेहतर पारस्परिक आदान-प्रदान जरूरी है। ‘वोकल फॉर लोकल‘ की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए शोध के संस्थागत जोर वाले पहलू अब सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और स्थानीय एवं क्षेत्रीय जरूरतों के अनुरूप होंगे।
ये सभी कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को उद्यम संबंधी और चुस्त सोच, परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाली नेतृत्व शैली, लचीला, पारस्परिक संवाद कौशल, व्यापक सोच, समस्या के समाधान की क्षमता, डिजिटल निपुणता और वैश्विक संचालन कौशल विकसित करने और वास्तविक जीवन के परिदृश्यों के अनुकूल बनाने में पर्याप्त रूप से सक्षम बनाते हैं क्योंकि ये कदम क्या सीखना है के बजाय वास्तविक रूप से जीवन भर सीखने और सीखने के तरीके पर जोर देते हैं, जोकि वर्तमान वैश्वीकृत वातावरण में सीखने से संबंधित एक आवश्यक गुण हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को हकीकत में बदलने के लिए एक सख्त लेकिन हल्की, गतिशील एवं लचीली नियामक व्यवस्था और सुविधाजनक समग्र कार्यान्वयन योजना समय की मांग है। प्रधानमंत्री कार्यालय, शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राष्ट्रीय कार्यशालाओं के कई दौर के जरिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को नागरिक समाज सहित विभिन्न हितधारकों तक पहुंचाने के लिए वास्तव में दिन – रात एक कर दिया है। शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बहु-विषयक और समग्र शिक्षा; उच्च शिक्षा में समानता और समावेशन; शोध, नवाचार एवं रैंकिंग; उच्च शिक्षा की वैश्विक पहुंच; एक प्रेरक, सक्रिय एवं सक्षम संकाय; एकीकृत उच्च शिक्षा प्रणाली; प्रशासन एवं विनियमन; भारतीय ज्ञान परंपरा, भाषाओं, संस्कृति एवं मूल्यों को प्रोत्साहन; और प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं एकीकरण जैसे इस नीति के नौ प्रमुख क्षेत्रों के संबंध में एक विस्तृत कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। मेरा यह स्पष्ट विचार है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने का समय आ गया है। मेरी राय में शैक्षणिक सत्र 2021-22 से बहु-विषयक सीखने के नतीजों पर आधारित पाठ्यक्रम और अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स को लागू करना संभव है। हालांकि, कोरोना महामारी के कारण इसका कार्यान्वयन प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में शिक्षकों की भूमिका खासी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए, शिक्षकों को शिक्षा के उभरते हुए विमर्श में ढलने और इसे अपनाने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम होना चाहिए। उन्हें पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु को नए और ताज़ा विचारों से भरने में सक्षम होना चाहिए, उन्हें कक्षा की पढ़ाई से इतर शिक्षार्थियों को पर्याप्त समय प्रदान करना चाहिए, उन्हें शिक्षा के सभी पहलुओं से संबंधित सार्थक विमर्शों में शामिल करना चाहिए और समाधान खोजने में उनकी मदद करनी चाहिए। शिक्षकों को व्यक्तिगत/साहसी/सहकारी/सहयोगी/सेवारूपी/स्थित/चयन की स्वतंत्रता वाली, प्रासंगिक, एकीकृत व चिंतनशील और व्यवहार उन्मुख शिक्षण शैली का सहारा लेते हुए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की जड़ता को समाप्त करते हुए एक गतिशील शिक्षा प्रणाली को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। इसका सफल कार्यान्वयन शिक्षा-प्रशासकों, छात्र-समुदाय, माता-पिता, नागरिक समाज और मीडिया के सहयोग पर भी निर्भर करता है।
संक्षेप में कहें तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सहायक, देखभाल करने वाली व भरोसेमंद है और इसका उद्देश्य मानवता की भलाई और शैक्षणिक व नैतिक उत्कृष्टता के बीच संबंध विकसित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 राष्ट्रीय आकांक्षाओं को साकार करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है। अगर एक साल के घुटनों पर चलने वाले बच्चे को भी सही संदर्भों और सही इरादे से युवा होने तक पोषण दिया जाए, तो इसमें निहित परिवर्तनकारी सुधार ऐसे भारत केंद्रित युवाओं को तैयार करेंगे जो प्राचीन शिक्षा प्रणाली की खोई हुई प्रतिष्ठा को दोबारा हासिल करने और भारत को विश्व गुरु के रूप में दोबारा स्थापित करने में सक्षम होंगे। आइए हम एक बदले हुए लर्निंग इको-सिस्टम के जरिए अपने माननीय प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बनाने के आह्वान पर आगे बढ़ें।
***यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।