पूरी दूनिया कोरोना महामारी से पिछले काफी लंबे समय से जूझती रही है। समूची दुनिया ने चुस्ती और सावधानी बरतते हुए इस महामारी से मुक्ति दिलाने में सफलता भी हासिल की है, लेकिन अभी कोरोना महामारी का खतरा पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। रह-रह कर यह महामारी विश्व के कई देशों में उभर रही है। कोरोना महामारी से निजात को लेकर अभी भी बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। वैश्विक स्तर पर सबसे चिंताजनक स्थिति यूरोपीय देशों की है। यूरोप में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चिंता जता चुका है। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि टीकों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद यूरोप महामारी का केंद्र बना हुआ है। भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सर्तकता एवं सावधानी से हम इस बड़े खतरे को नियंत्रित करने एवं सौ करोड़ से अधिक टीकाकरण का लक्ष्य हासिल करके निश्चिंत बने हैं, लेकिन इसके संभावित खतरे से पूरी तरह निश्चिंत हो जाना, हमारी भूल होगी। हमें अभी भी पूरी सावधानी एवं सतर्कता बरतने की अपेक्षा है।
यूरोप में नये रूप में कोरोना महामारी के पांव पसारने से पूरी दुनिया चिन्तित है, ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि टीकों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद यूरोप महामारी का केंद्र बना हुआ है। बहुत सारे टीकों का उपलब्ध होना ही नहीं, बल्कि वहां टीकों का उपयोग समान होना भी जरूरी है। इसलिए कोरोना मामलों की संख्या फिर से करीब-करीब रेकार्ड स्तर तक बढ़ने लगी है। करीब तिरपन देशों में कोरोना संक्रमण की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की दर अगर एक हफ्ते की तुलना में दोगुनी से अधिक हुई है तो आशंका यही है कि यह महामारी की नई लहर का संकेत है। यदि ऐसा ही चला तो इस क्षेत्र में अगले साल फरवरी 2022 तक पांच लाख लोगों को इस महामारी के कारण जान गंवानी पड़ सकती है।
भारत के कई राज्यों में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार को देखते हुए कोविड प्रोटोकॉल को अभी जारी रखने का फैसला लिया गया है। केंद्र सरकार ने कोरोना रोकथाम उपायों को 30 नवंबर तक बढ़ा दिया है। गृह सचिव के अनुसार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नियमित रूप से हर जिले के अस्पताल, आईसीयू में भर्ती मरीजों की संख्या की बारीकी से निगरानी करने की सलाह दी जा रही है। टीकाकरण का अभियान जारी रखते हुए अन्य हिदायतों का भी जिम्मेदारी से पालन करने की जरूरत है। जैसाकि हम जानते हैं कि लोग शीघ्र ही अच्छा देखने एवं स्वच्छंद जीवन जीने के लिये बेताब रहे हैं। भले ही उनके सब्र का प्याला भर चुका था, लेकिन कोरोना महामारी जैसे महासंकट को परास्त करने के लिये सब्र ही चाहिए। यह सत्य है कि आज की आबादी भगवान श्रीराम की तरह 14 वर्षों का वनवास एवं भगवान महावीर की तरह 12 वर्षों की कठोर तपस्या का इंतजार नहीं कर सकती। लेकिन जीवन रक्षा के लिये ऐसा करना पड़ता है।
कोरोना महामारी जैसे महासंकट से निताज दिलाने के लिये कोई फरिश्ता नहीं, बल्कि जन-जन को ही फरिश्ता बनने की अपेक्षा थी और है। भले ही नरेन्द्र मोदी जैसे सशक्त शासकों ने अपनी प्रभावी भूमिका अदा कर लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन की रक्षा की है। 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले राष्ट्र में हर व्यक्ति को तत्परता से निशुल्क टीके उपलब्ध कराना साहस एवं सूझबूझ का काम है। देश, काल एवं स्थिति के अनुरूप उन्होंने विरल शासक का किरदार निभाते हुए एक अनूठा एवं विलक्षण इतिहास रचा है। लेकिन इससे जनता की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती, अभी भी खतरा बना हुआ है, इसलिये सावधानी, संयम एवं स्व-अनुशासन जरूरी है। यूरोपीय देशों में कोरोना की नयी उभरती स्थिति हमें अधिक सावधानी बरतने को प्रेरित कर रही है।
समृद्ध एवं शक्तिशाली यूरोप में टीकाकरण की रफ्तार अलग-अलग एवं असंतुलित रही है। अभी तक औसतन सैंतालीस फीसद लोगों का टीकाकरण पूरा हो पाया है। महज आठ देश ऐसे हैं, जहां पर सत्तर फीसद आबादी टीके की सभी खुराक ले चुकी है। इस दौरान वे दृश्य लोगों ने टेलीविजन पर खूब देखे हैं जिनमें कई यूरोपीय देशों में कोरोना पाबंदियों को सरकारों ने या तो न्यूनतम कर दिया, या फिर ऐसी सख्ती के खिलाफ वहां जनता विरोध में सड़कों पर उतरी। इस स्थिति को वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के कई समूहों के अलावा डब्लूएचओ भी गंभीर मानता रहा है। डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि टीकों की उपलब्धता के बावजूद यूरोप में संक्रमण के मामले अगर बढ़ रहे हैं तो यह केवल यूरोप के लिये ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए खतरे की एक और घंटी से कम नहीं है।
साफ है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ तनिक भी लापरवाही या गैरजिम्मेदाराना व्यवहार होगा तो इस महामारी के खतरे से आसानी से मुक्ति संभव नहीं है। भारत उन देशों में शामिल है जो पहले दिन से यह कहता रहा है कि इस महामारी के खिलाफ न सिर्फ वैश्विक पहल की स्पष्ट रूपरेखा तय होनी चाहिए बल्कि इस पर साझा अमल भी होना चाहिए। भारत ने इसमें सार्थक पहल की एवं सकारात्मक भूमिका भी निभाई है। असल में कोरोना एक संक्रमण वाला महारोग है, इसलिये एक देश में उसके फैलने का असर पूरी दुनिया में फैल जाने के खतरे की घंटी है। इसलिये मौजूदा हालात में यूरोप में अब ऐसी स्थिति बन रही है कि वहां टीकाकरण की अनिवार्यता पर बड़े फैसले लिए जाने की अपेक्षा है। इसकी शुरुआत आस्ट्रिया ने कर भी दी है। अलबत्ता यूरोपीय संघ में टीकाकरण अनिवार्य करने वाला आस्ट्रिया इकलौता देश जरूर है, लेकिन बाकी देशों की सरकारें भी सख्त पाबंदियां लगा रही हैं।
यूरोपीय देशों का नया उभर रहा संकट भारत के लिये एक चेतावनी एवं बड़ा सबक है। क्योंकि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है, यहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं का आनुपातिक अभाव है, शिक्षा का अभाव है। टीकाकरण और जरूरी सावधानी के जरिए ही इस महामारी को कारगर तरीके से रोका जा सकता है। टीका लगवाने के साथ मास्क पहनने और आने-जाने के लिए कोविड पास का इस्तेमाल करने से स्थिति से निपटने में मदद मिल सकती है। जब तक पूरी तरह कोरोना पर नियंत्रण न हो जाये, भीड़-भाड़ से बचने की जरूरत है, जहां तक हो सके घरों पर ही रहकर काम किये जाये, शादी-विवाह, धार्मिक आयोजनों, राजनीतिक जलसों में भीड़ को नियंत्रित रखा जाये। स्कूलों, सिनेमाघरों, स्विमिंग पूल आदि पर पूरी तरह अनुशासन एवं प्रोटोकॉल कायम रहे। जहां अपेक्षित हो आंशिक लॉकडाउन लगाया जाये। सामाजिक दूरी का पालन किया जाये। यह समझ एवं सोच यूरोप सहित दुनिया के लिए तो जरूरी है ही, विश्व समाज को भी समझ की इस दरकार पर पक्के तौर पर खरा उतरना होगा।
जीवन-रक्षा के लिये लगाये जा रहे प्रतिबंधों को लेकर विरोध की मानसिकता घातक है। ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया और इटली में भी नये प्रतिबंधों के खिलाफ हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल आए। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में सरकार की ओर से नये राष्ट्रीय लॉकडाउन की घोषणा और फरवरी 2022 तक टीका लगाना अनिवार्य किये जाने के बाद हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। क्रोएशिया की राजधानी ज़ाग्रेब में सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए वैक्सीन अनिवार्य करने के खिलाफ हजारों लोगों ने मार्च किया। इटली में भी ग्रीन पास प्रमाण पत्र अनिवार्य किये जाने के विरोध में हजारों लोग प्रदर्शन में शामिल हुए। दुनिया में कोई भी कोरोना से मरने को विवश न हो, इसके लिये संतुलित एवं स्व-शासित व्यवहार एवं जीवनशैली ही सबको जीवन-रोशनी दे सकती है। प्रेषक