यह कैसी मस्ती की अंधेरी काली दुनिया!

 ललित गर्ग –

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज में नशाखोरी कर रहे अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन समेत अन्य लोगों की गिरफ्तारी न केवल शर्मनाक है बल्कि देश की जड़ों को खोखला करने वाली है। देश में नशीले पदार्थों का कारोबार और सेवन जिस गति से बढ़ता चला जा रहा है, वह चिन्ताजनक है। यह पहली बार नहीं, जब नशे का सेवन कर रहे नामचीन अथवा धनी लोगों को गिरफ्तार किया गया हो। रेव पार्टियां, नशे का बढ़ता प्रचलन एक त्रासदी है, विडम्बना है। ऐसे बहुत से गिरोह सक्रिय हैं जो युवावर्ग को नशे की दलदल में ढकेल रहे हैं। बढ़ती रेव पार्टियां उन्मुक्त होने एवं नशे की अंधी सुरंगों में उतरने का एक माध्यम है, जो समाज एवं राष्ट्र के लिये खतरनाक साबित होती जा रही है। क्या ऐसी पार्टियां बिना स्थानीय पुलिस की मिलीभगत के हो सकती हैं? यह सब कुछ पुलिस और ड्रग्स एवं नशे का धंधा करने वालों की सांठगांठ से ही होता है। इसमें सरकार की नीतियों पर भी प्रश्न खड़े होते हैं।
रेव पार्टियों का बढ़ता प्रचलन इसलिये खतरनाक है कि इनमें गांजा, चरस, अफीम, कोकीन और न जाने किन-किन ड्रग्स का इस्तेमाल होता ही है, एमडीएमए नाम के एक ड्रग का भी उपयोग हाता है जो सेक्स को लेकर उत्तेजना पैदा करता है। इतनी भीषण उत्तेजना कि घंटों तक और कई लोगों के साथ सेक्स में लगे रहने की शक्ति पैदा हो जाती है। जरा सोचिए कि जिन लड़कियों के साथ यह सब होता होगा वो भी तो किसी घर की बेटी ही होंगी! मस्ती के चक्कर में मासूम बालिकाएं किस तरह खुद को क्रूर पंजों में सौंप देती हैं? इसके लिए क्या वो अकेली दोषी हैं? आश्चर्य नहीं कि नशाखोरी से कलंकित बालीवुड फिर से विवादों में है। शाहरुख खान कोई आम भारतीय नहीं हैं। हिंदी सिनेमा के करोड़ों प्रशंसकों में उनकी पहचान है। जिन शाहरुख को उनके चाहने वाले अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं, उनके पुत्र का इतने संगीन अपराध से जुड़ा होना क्या प्रेरणा दे रहा है? शाहरुख खान जैसे धनाढ्य माता-पिता और परिवार इसके लिए ज्यादा दोषी है। हमारा बच्चा क्या कर रहा है, इसकी जानकारी रखना परिवार का दायित्व है।
दुनिया की चकाचैंध से आकर्षित मध्यम वर्ग की बच्चियों को शिकार बनाया जाता है तो दौलतमंद लोेगों की संतानें केवल मौज-मस्ती के चक्कर में फंस जाती हैं। गलत तरीकों से कमाई दौलत का इसी तरह औलादों को बिगाड़ रही हैं। एक वो माता-पिता होते हैं जो मजदूरी करके, घरों में बर्तन मांजकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और उमनें से ही कोई अब्दुल कलाम निकल आता है। दूसरे वो मां-बाप हैं जो बच्चे को हर रोज हजारों रूपए जेब खर्च देते समय यह नहीं पूछते कि इतने पैसे क्यों चाहिए? देर रात तक लौटे तो नहीं पूछते कि कहां थे? नतीजा आपके सामने हैं। बच्चों को फांसने के लिए तो हर मोड़ पर ड्रग्स के सौदागर ग्लैमर लिए खड़े हैं। रेव पार्टियों में इसीलिए तो हालीवुड और बाॅलीवुड के सितारों या उनकी औलादों को शामिल किया जाता है।
रेव पार्टियों की नई पनप रही संस्कृति अनेक विकृतियों का सबब बन रही है, जिसमें युवापीढ़ी को नये-नये नशे के साधन उपलब्ध कराये जाते हैं। देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में महफिलें जमती हैं, महानगरों में हर वीकेंड पर फार्म हाउस एवं आलीशान बिलिं्डगों, होटलों, क्रूज में ये महफिलें सजती हैं। इन महफिलों में आने वाले लोगों को पूरी रात डांस, म्यूजिक, ड्रग्स और सैक्स का काकटेल मिलता है। इन रेव पार्टी में भारी मात्रा में विदेशी ब्रांड की शराब के साथ ब्रिक्स कोकिंग टैबलेट परोसी जाती है। रात भर उन्मुक्तता, अश्लीलता एवं सैक्स से भरपूर मनोरंजन तरह-तरह के नशे के साथ परोसा जाता है। नशे एवं पागलपन की हद तक चूर हो जाने के बाद छात्र-छात्रायें अपनी चमचमाती गाड़ियों में घर लौट जाते हैं। इन महफिलों की सूचना भी खास-खास लोगों को सोशल मीडिया पर दी जाती है। समाज में नशीले पदार्थों एवं सैक्स के एजेंट सक्रिय हैं जो युवा पीढ़ी को ऐसी पार्टियों के लिये आकर्षित करते हैं। रेव पार्टियों में पकड़े जाने वाले लोगों में स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं से लेकर बड़े बिजनेसमैन,सिने स्टार, राजनीतिज्ञों और अफसरों के बच्चे तक शामिल हैं। ऐसी पार्टियों में ऊंची पहुंच वाले और पैसे वाले ही जा सकते हैं। आयोजक न केवल एक ही रात में लाखों कमाते हैं बल्कि जो लड़के-लड़कियां अपने ज्यादा दोस्तों को लाते हैं, उन्हें भी मोटी कमीशन दी जाती है। यह मुम्बई-दिल्ली जैसे महानगरों की रातों को रंगीन बनाने का जरिया बनता जा रहा है। लेकिन ये रंगीनियां कितने अंधेरों एवं खतरों का कारण बन रही है, इस चिन्तन करना जरूरी है।
मुम्बई, गोवा, पुणे, खंडाला, पुष्कर, मनाली से चली रेव पार्टियों ने दिल्ली और आसपास के शहरों में भी जगह बना ली है। ड्रग्स का धंधा करने वालों के लिये यह पार्टियां फायदे का धंधा बन गई हैं। जो देश के युवाओं को बर्बाद कर रहे हैंै, अब तो लड़कियों ने भी सारी सीमाएं तोड़ दी है। नशीले पदार्थों, शराब, बीयर से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियांे तक की सहज उपलब्धता से इन रेव पार्टियां के प्रति युवा एवं किशोर वर्ग का आकर्षक बढ़ता जा रहा है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है। सरकार भी विवेक से काम नहीं ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए? यह कैसी समाज-व्यवस्था है जिसमें लाइसैंस लेकर आप चाहे जो करों? इनके पीछे कौन-कौन लोग हैं, जो देश के युवाओं को बर्बाद कर रहे हैं, ड्रग्स एवं नशीले पदार्थों के सेवन से जवानी खत्म हो रही है। बावजूद इसके उन पर हाथ डालने की हिम्मत किसी में नहीं होती। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) अब सक्रिय हुआ है, तो उसे अपराध पर काबू पाने में कोई बाधा राजनीतिक पहुंच या बड़ी हस्ति होने की न खड़ी हो, इस पर शीर्ष नेतृत्व को ध्यान देना चाहिए।
विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन की निरंतर हो रही वृद्धि। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे का आदी हो चुका है। गुजरात प्रांत में कुल शराबबन्दी है, क्योंकि वह महात्मा गांधी का गृह प्रदेश है। क्या पूरा देश गांधी का नहीं है? वे तो राष्ट्र के पिता थे, जनता के बापू थे। नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे अपना पूर्व गौरव प्राप्त कर सकेगा?
बढ़ती नशा प्रवृति के चलते महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे हैं। भावी पीढ़ी को बचाना है तो राजनीतिक दलों और समाज को मिलकर नशे के विरुद्ध अभियान चलाना होगा और पुलिस को भी युवाओं को मौत की ओर धकेलने वाली अपने भीतर की काली भेड़ों की पहचान करनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया गया तो युवा वर्ग नशे की दलदल में इतना फंस जायेगा जहां से उसे निकालना मुश्किल होगा। किसी भी महानगर का रात की बांहों में झूमना जीवन की शैली हो सकता है लेकिन नशे में झूमना एक कैंसर है। नशे की आदत कांच की तरह नहीं टूटती, इसे लोहे की तरह गलाना पड़ता है। पक्षी भी एक विशेष मौसम में अपने घांेसले बदल लेते हैं। पर मनुष्य अपनी वृत्तियां नहीं बदलता। वह अपनी वृत्तियां तब बदलने को मजबूर होता है जब दुर्घटना, दुर्दिन या दुर्भाग्य का सामना होता है। आखिर हम क्यों दुर्घटना, दुर्दिन या दुर्भाग्य का इंतजार कर रहे हैं? हजारों-लाखों लोग अपने लाभ के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं।

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