गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है, इसी दिन 26 जनवरी, 1950 को हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। इस दिन भारत ने खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। बहत्तर वर्षों में हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फँसा रहा। लेकिन अब नये भारत में इन राष्ट्रीय पर्वों को मनाते हुए संप्रभुता का अहसास होने लगा है। गणतंत्र का जश्न सामने हैं, जिसमें कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी है तो अब तक कुछ न कर पाने की बेचैनी भी है। हमारी जागती आंखों से देखे गये स्वप्नों को आकार देने का विश्वास है तो जीवन मूल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्मित करने की तीव्र तैयारी है। अब होने लगा है हमारी स्व-चेतना, राष्ट्रीयता एवं स्व-पहचान का अहसास। जिसमें आकार लेते वैयक्तिक, सामुदायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थ की सुनहरी छटाएं हैं।
राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस हमें सिर्फ इस बात का अहसास ही नहीं कराता है कि अमुक दिन हम संप्रभु राष्ट्र बने थे या अमुक दिन हमारा अपना बनाया संविधान लागू हुआ था, बल्कि यह हमारी उन सफलताओं की ओर इशारा करता है जो इतनी लंबी अवधि के दौरान अब जी-तोड़ प्रयासों के फलस्वरूप मिलने लगी हैं। यह हमारी विफलताओं पर भी रोशनी डालता है कि हम नाकाम रहे तो आखिर क्यों! क्यों हम राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ता नहीं दे पाये है? क्यों गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेरे रखा है? हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह सही है और इसके लिए सर्वप्रथम जिस इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है, वह हमारी शासन-व्यवस्था एवं शासन नायकों में सर्वात्मना नजर आनी चाहिए और ऐसा होने लगा है तो यह सुखद अहसास है।
एक संकल्प लाखों संकल्पों का उजाला बांट सकता है यदि दृढ़-संकल्प लेने का साहसिक प्रयत्न कोई शुरु करे। अंधेरों, अवरोधों एवं अक्षमताओं से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। उनके दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सुखद एवं उपलब्धिभरी प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही है, कुछ समय पूर्व हमने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के मन्दिर के शिलान्यास का दृश्य देखा। अभी काशी में विश्वनाथ धाम का जो विकास हुआ है, उसे देखा। इंडिया गेट पर स्वत्रंतता के महानायक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति का अनावरण होना भारतीयता के वास्तविक आभामंडल की रोशनी-प्रस्तुति है। मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में जता दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली सरकार अपने फैसलों से कैसे देश की दशा-दिशा बदल सकती है, कैसे कोरोना जैसी महाव्याधि को परास्त करते हुए जनजीवन को सुरक्षित एवं स्वस्थ रख सकती है, कैसे महासंकट में भी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचा सकती हैं, कैसे राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए पडौसी देशों को चेता सकती है, कैसे स्व-संस्कृति एवं मूल्यों को बल दिया जा सकता है। गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए भारत में धर्मस्थलों और तीर्थों के विकास की किसी भी पहल की भी प्रशंसा होनी ही चाहिए। विस्मृत किये गये राष्ट्रनायकों को जीवंतता देने की सार्थक कोशिशों को बहुमान मिलना चाहिए। काशी की जो चमत्कारपूर्ण एवं विलक्षण आभा सामने आयी है, इसके लिये भगवान शिव की नगरी काशी के सांसद एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री की इस परियोजना के मार्ग में कई अड़चनें थीं, दुकानों, लोगों को विस्थापित किया गया, दृढ़ता के साथ कुछ धर्मस्थल भी हटाए गए, चंद लोग तो आज भी राजनीतिक कारणों से विरोध जता रहे हैं, लेकिन एक भव्य मंदिर परिसर के रूप में परिणाम दुनिया के सामने है।
काशी हो या अयोध्या या ऐसे ही धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रांति के परिदृश्य- ये अजूबे एवं चौंकाने वाले लगते हैं। काशी से नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश दिया है, उसे केवल चुनावी नफा-नुकसान के नजरिये से नहीं देखना चाहिए, बल्कि एक सशक्त होते राष्ट्र के नजरिये से देखा जाना चाहिए। उनका यह कहना खास मायने रखता है कि सदियों की गुलामी के चलते भारत को जिस हीनभावना से भर दिया गया था, आज का भारत उससे बाहर निकल रहा है। यह स्थिति इस वर्ष का गणतंत्र दिवस समारोह मनाते हुए विशेष रूप से गौरवान्वित करेंगी। वाकई यहां अब कोई संदेह शेष नहीं है कि यह सरकार देश व समाज को बदल रही है, लोगों का जीवनस्तर उन्नत कर रही है। मोदी अपने आलोचकों को खूब जानते हैं, अतः उन्होंने उचित ही कहा है कि आज का भारत सिर्फ सोमनाथ के मंदिर का सौंदर्यीकरण ही नहीं कर रहा, अयोध्या में श्रीराम के मन्दिर के सदियों पूराने सपने को आकार ही नहीं दे रहा है, बाबा केदारनाथ धाम का जीर्णाेद्धार ही नहीं कर रहा, बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य रूप ही नहीं दे रहा है बल्कि सीमाओं की सुरक्षा भी बेखूबी कर रहा है, समुंदर में हजारों किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर भी बिछा रहा है, हर जिले में मेडिकल कॉलेज भी बना रहा है, गरीबों को पक्के मकान भी बनाकर दे रहा है, रोजगार, चिकित्सा, शिक्षा की अनूठी व्यवस्थाएं भी कर रहा है। मतलब वर्तमान शासन-नायकों को विरासत और विकास की समन्वित चिंता है। हिंदुत्व की चिंता है, तो विकास की भी पूरी फिक्र है। अब सुधार, सुशासन, स्व-संस्कृति, स्व-पहचान के दीपक जल उठे हैं, तो उसकी रोशनी तमाम देशवासियों को नया विश्वास, सुखद जीवनशैली देगी।
वर्ष 2014 के बाद भारत ने केवल आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक विकास को ही सुनिश्चित नहीं किया है बल्कि भारत की छवि वैश्विक पटल पर एक तीसरी दुनिया के देश से बदलकर एक तेजी से विकसित होते देश के रूप में बनाई है, तो इसमें नरेंद्र मोदी का बड़ा योगदान रहा है। पहली बार सरकार बनाते ही उन्होंने विश्व राजनीति में भारत की छवि मजबूत करने के अनूठे कदम उठाये। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों में किसी भी राष्ट्र की शक्ति और स्थान उसकी आर्थिक, सैन्य, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति के अलावा एक और अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु से निर्धारित होता है, वह है उसके शासक या नेता की सोच, संवेदना एवं स्वभाव से। किसी भी राष्ट्र के साथ संबंध किस दिशा में ले जाने हैं, अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपने राष्ट्र की छवि निर्माण से लेकर कौनसे मुद्दे रखने हैं, द्वि-पक्षीय तथा बहु-पक्षीय संबंधों को कैसी दिशा देनी है, कितनी गति देनी है, यह सब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोच से जुड़े हैं। इसी से अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जापान, आस्ट्रेलिया, कोरिया, न्यूजीलैंड, फ्रांस आदि देशों से भी नरेंद्र मोदी के चलते सकारात्मक एवं ऊर्जावान संबंधों का एक नया युग प्रारंभ हुआ है। सुदूर पूर्व हो या पश्चिम के देश एवं खाड़ी देशों से नरेंद्र मोदी ने भारत के संबंध सशक्त करने के प्रयास किए हैं। आज पूरे विश्व में भारत की सकारात्मक ऊर्जा का असर स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
130 करोड़ के राष्ट्र को राजपथ पर निकलने वाली झांकियां एवं उनके बीच फहरा रहा तिरंगा ध्वज कह रहा है कि मुझे आकाश जितनी ऊंचाई दो, भाईचारे का वातावरण दो, मेरे सफेद रंग पर किसी निर्दोष के खून के छींटे न लगें, आंचल बन लहराता रहे। मुझे फहराता देखना है तो सुजलाम् सुफलाम् को सार्थक करना होगा। मुझे वे ही हाथ फहरायंे जो गरीब के आंसू पोंछ सकें, मेरी धरती के टुकड़े न होने दें, जो भाई-भाई के गले में हो, गर्दन पर नहीं। अब कोई किसी की जाति नहीं पूछे, कोई किसी का धर्म नहीं पूछे। मूर्ति की तरह मेरे राष्ट्र का जीवन सभी ओर से सुन्दर हो। ये सब स्थितियां एवं सुखद वातावरण देश में बनने लगा है, यही हमारी वास्तविक आजादी है एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता है।
भारत ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ दुनिया में शांति, अमन, अयुद्ध एवं अहिंसा को बल दे रहा है, भारत की ही पहल पर दुनिया में आतंकवाद के विरोध में सशक्त वातावरण बना है, जो भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र की गरिमा में चार चांद लगा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति दी। भारत की अहिंसा को भी दुनिया ने मान्यता दी है, विश्व अहिंसा दिवस मनाये जाने लगा है, इससे दुनिया भर में भारत का सम्मान बढ़ा है।
भारत के संवैधानिक एवं संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र बनने की 72वीं वर्षगांठ मनाते हुए हम अब वास्तविक भारतीयता का स्वाद चखने लगे हैं, यही कामना है कि पुरुषार्थ के हाथों भाग्य बदलने का गहरा आत्मविश्वास सुरक्षा पाये। एक के लिए सब, सबके लिए एक की विकास गंगा प्रवहमान हो।