नया भारत-सशक्त भारत को निर्मित करते हुए आज भी स्त्रियों के प्रति प्रदूषित एवं अश्लील दृष्टिकोण का कायम रहना, परेशान करता है। विडम्बना तो यह है कि इस तरह का अनैतिक, अमर्यादित एवं अश्लील दृष्टिकोण आम आदमी का नहीं बल्कि देश के भाग्यविधाता बने राजनेताओं का है। ऐसा ही एक शर्मनाक दृश्य कर्नाटक के विधानसभा में सम्पूर्ण देश ने मीडिया के माध्यम से देखा, जब विधायक -ः :-रमेश कुमार ने एक तरह से बलात्कार के बचाव में बेहद शर्मनाक टिप्पणी की। मंत्री रह चुके इस वरिष्ठ विधायक ने हंगामा होने के बाद माफी मांग ली है, लेकिन उनकी टिप्पणी इतनी अश्लील एवं नारी अस्मिता को आघात करने वाली है कि विवाद जल्दी शांत नहीं होगा, होना भी नहीं चाहिए। विरोध का धुंआ उठना ही चाहिए। महिलाओं ने त्वरित प्रक्रिया व्यक्त करते हुए इस तरह के व्यक्तियों के लोकतांत्रिक पदों पर कायम रहने को राष्ट्र का अपमान बताया है।
महिलाओं पर हो रहे बलात्कार, व्यभिचार, अपराध को रोकना या रोकने में मदद करना सरकार और उससे जुड़े लोगों की जिम्मेदारी है, लेकिन अव्वल तो अपराध को नहीं रोक पाना और इस तरह की आपराधिक स्थितियों का आनंद लेते हुए चर्चा करना हर दृष्टि से अक्षम्य है, एक अपराध है। अक्सर ऐसे मौके आते हैं, जब इस तरह से हमारे जन-प्रतिनिधियों का व्यवहार दुखी और शर्मसार कर जाता है। विधायक रमेश कुमार एवं पूरे सदन का इस चर्चा के दौरान जो व्यवहार देखने को मिला, वह लोकतांत्रिक मूल्यों का मखौल उड़ा रहा था, सदन की मर्यादाओं को शर्मसार कर रहा था।
कांग्रेस नेता रमेश कुमार की ओर से की गई दुखद एवं त्रासद टिप्पणी को लेकर कांग्रेस पार्टी की सहजता आश्चर्य करने वाली है, इस घटना पर भाजपा का आक्रामक होना स्वाभाविक है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को यह मामला लोकसभा में उठा दिया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विधायक की माफी के बाद इस मामले को तूल देने को गलत ठहरा दिया हैं। हालांकि, जो कांग्रेस लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा की बर्खास्तगी की मांग को लेकर आक्रामक बनी हुई थी, उसके तीखे तेवर कांग्रेस विधायक की विवादास्पद एवं शर्मनाक टिप्पणी के बाद नरम पड़े हैं। वैसे अपने-अपने दागियों के बचाव की राजनीति नई नहीं है, लेकिन यह सिलसिला कहीं तो रुकना चाहिए। नैतिकता ही किसी को सच बोलने का साहस प्रदान करती है। चरित्रवान राजनेता ही ऐसे मौकों पर सत्य का साथ देते हैं। लोकतांत्रिक पदों पर आसीन होकर भी राजनेता कहां आदर्श उपस्थित कर पाते हैं? आज चारों तरफ से ऐसे चरित्रहीन राजनेताओं के खिलाफ महिलाएं आवाज उठा रही है। लोकसभा में चर्चा हो रही है। इस चारित्रिक गिरावट को रोका जाए। अश्लील सोच को रोका जाए, इस पर सब एकराय थे। राजनेताओं के लिये एक आचार संहिता होनी चाहिए, बोलने की मर्यादा एवं नारी के प्रति सम्मान का नजरिया होना चाहिए। पर ऐसा न होना राष्ट्र का दुर्भाग्य है।
कर्नाटक विधानसभा में जो घटित हुआ, वह पहली बार घटा ऐसा नहीं है। कुछ साल पहले इसी सदन में अश्लील फिल्म देखने का आरोप तीन भाजपा विधायकों पर भी लगा था, उनमें से एक बाद में उप-मुख्यमंत्री भी बनाए गए। इसलिए अपने दागी को बचाना और दूसरे के दागी पर निशाना साधने की राजनीति हमें उत्तरोतर पतन की ओर ही ले जा रही है। सपा सांसद जया बच्चन ने उचित कहा है कि पार्टी को दोषी विधायक पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि यह उदाहरण बने, जिससे वह ऐसा सोचें भी नहीं, सदन में बोलना तो दूर की बात है। जब सदन में ऐसे लोग बैठेंगे, तो जमीन पर स्थितियां कैसे सुधरेंगी? आम आदमी में सुधार की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। राजनीति की इन दूषित हवाओं ने न केवल सदनों की गरिमा को बल्कि भारत की चेतना को प्रदूषित कर दिया है। बुराई कहीं भी हो, स्वयं में या समाज, परिवार अथवा देश में तत्काल त्वरित कार्रवाई करना सर्वोच्च नेतृत्व को अपना दायित्व समझना चाहिए। क्योंकि एक नैतिक एवं चरित्रवान जनप्रतिनिधि न केवल पार्टी का बल्कि एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र एवं स्वस्थ जीवन की पहचान बनता है। ऐसी पहचान न बनना सबसे बड़ी नाकामी है। बड़ा प्रश्न है कि हम कैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था निर्मित कर रहे हैं? हम भला कैसी विधायिका के दौर में जी रहे हैं? विधायक जब बोल रहे थे, तब पूरे सदन में ठहाके लग रहे थे। ऐसे में, आज हर जागरूक नागरिक स्वाभाविक ही रोष में है, महिलाओं का रोष एवं उनके द्वारा विधायक के इस्तिफे की मांग करना गलत नहीं है।
जिस तेजी के साथ अश्लीलता एवं अश्लील सोच एक जीवन शैली का रूप ले रही है वह अवश्य खतरनाक है, यह समाज के विभिन्न सूत्रों को प्रभावित करती है। पर उससे भी खतरनाक बात यह है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि को इस तरह की अपसंस्कृति को महिमामंडित करने में कोई हिचक नहीं है। अपनी मूल संस्कृति की परिधि से ओझल होते ही जीवन संस्कारों का आधार खिसक जाता है, बिना चार दीवारी का मकान बन जाता है जहां सब कुछ असुरक्षित होता है। अतीत तो मिटता नहीं -मिटता वर्तमान ही है और भुगतता भविष्य है। इस संबंध में इस वास्तविकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अपने आनन्द के बदले संस्कृति के मूल्यों के स्खलन की उन्हें परवाह नहीं होती। ऐसे लोग संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने के अपराधी हैं।
दरअसल, हमारे समाज में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार, बलात्कार, व्यभिचार को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं। इसीलिये महिलाओं के खिलाफ अपराध निरंतर बढ़ रहा है। एनसीआरबी 2019 के अनुसार, अपने देश में प्रति 16 मिनट पर एक बलात्कार होता है, ससुराल में हर चार मिनट पर एक महिला के साथ निर्मम एवं बर्बर घटना घटित होती है। नेताओं को तो चर्चा यह करनी चाहिए कि इस निर्ममता एवं बर्बरता को कैसे खत्म किया जाए, लेकिन जब वह किसी न किसी बहाने से महिला विरोधी अपराध को सामान्य बताने की कुचेष्टा करते हैं, तो यह किसी अपराध से कम नहीं है। ऐसे हल्के नेताओं के वजूद पर अवश्य आंच आनी चाहिए, ताकि दुनिया को महिलाओं के अनुकूल बनाया जा सके, उनके अस्मिता एवं अस्तित्व को कुचले जाने की कुचेष्टाओं पर विराम लगाया जा सके। अन्यथा जन्म से लेकर मृत्यु तक एक स्त्री के प्रति जिस तरह की धारणाएं समाज में काम करती हैं, उसमें बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के लड़कियां या महिलाएं कई बार अपने न्यूनतम मानवीय अधिकारों एवं सम्मान से भी वंचित हो जाती हैं। उन्हें जो मिलता भी है, उसमें या तो दया भाव छिपा होता है या फिर वह उच्च सदनों में ऐसी त्रासद एवं स्तरहीन चर्चा में बार-बार कुचली जाती है। जब हमारी संस्कृति की सीमाओं को लांघा जाता है, हमारी नारी अस्मिता को दूषित करने की मानसिकता की चर्चाओं को भी तथाकथित रसभरा बनाने की कोशिश होती है एवं नारी की लज्जा और उसकी मान-मर्यादा की रक्षा के नाम पर उसको नंगा किये जाने का कुत्सित प्रयास होता है, तब भारत की आत्मा रो पड़ती है। जब इस तरह के फूहडपन को जबरन हमारे सदनों की चौखट के भीतर घुसाया जा रहा होता है, तब ऐसा विभिन्न राजनीतिक दलों में मौन और गोलमाल क्यों? जनप्रतिनिधियों की नई पात्रता का निर्माण हो, उनका चरित्र एवं साख अपमान नहीं, सम्मान का माध्यम बने, जहां हमारी संस्कृति, हमारा चरित्र एवं हमारी नैतिकता पुनः अपने मूल्यों के साथ प्रतिष्ठापित हो। ऐसा होने से ही अश्लीलता घूंघट निकाल लेगी