घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की आहट

  (ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

जम्मू एवं कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर के चैदह प्रमुख नेताओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की, आपसी संवाद की इस सार्थक पहल के दौरान मोदी ने संकेत दिया कि राज्य में शीघ्र ही चुनावी प्रक्रिया शुरु की जा सकती है। हिन्दुस्तान विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसमें भाषा, जाति, वर्ण, धर्म, पंथ, रीति-रिवाज, परम्परा, लोक-संस्कृति का वैविध्य भरा पड़ा है, वही इस देश का सबसे बड़ा सौन्दर्य भी है, शक्ति है एवं सशक्त राष्ट्र का आधार भी है। अनेकता में एकता एक राष्ट्रीय ध्वज के नीचे खड़ी रही है, इस संकल्प के साथ कि हम एक हैं, हमारी धरती एक है, धरती के लोग एक है, आकाश एक है, हवा, पानी, जीवन एक है। यहीं जनमें हैं, यही मरेंगे। दुर्भाग्य से इसी एकता और अखण्डता को खंडित करने के प्रयास भी होते रहे हैं, ऐसे ही प्रयास जम्मू-कश्मीर की शांति, अमन-चैन एवं विकास को अवरूद्ध करने के भी होते रहे हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से घाटी में अभूतपूर्व शांति एवं सद्भावना का वातावरण बना है, जो वर्तमान केन्द्र सरकार की सूझबूझ, विवेक एवं दूरगामी सोच का परिणाम है।


जो मुद्दा आज जम्मू-काश्मीर के सामने है वह साफ दिखाई दे रहा है। वह राजनीति का नहीं, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने एवं विकास का है। वहां जरूरत है एक साफ-सुथरी शासन प्रणाली एवं आवश्यक बुनियादी सुविधाओं तथा भयमुक्त व्यवस्था की। और इससे ऊपर एक ऐसी सरकार की जो यह सब कुछ दे सके। स्वार्थी एवं विघटन की राजनीति के कारण वहां लोकतंत्र यानी लोगों का तंत्र स्थापित नहीं हो पाया। अब इस दिशा में सार्थक पहल हो रही है, जिससे वहां शांति एवं संवाद की दिशाएं उद्घाटित होती दिखाई देने लगी है।
संवाद एवं शांति एक सतत प्रक्रिया है, लोकतंत्र की बुनियाद है, इसका होना और जारी रहना ही अपने आप में सफलता है। जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की पहल को आगे बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में हुई बातचीत एवं बैठक स्वागतयोग्य है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में जहां शांति की फिजाएं दिखाई दी, वहीं कुछ राजनीतिक कारणों से नाराजगी भी दिखी, उसका समाधान संवाद से ही संभव है। घाटी के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य दिग्गज मंत्रियों, नेताओं की बातचीत पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाह है। बहुत दिनों से यह मांग उठ रही थी कि केंद्र सरकार को कश्मीरी नेताओं से बातचीत करनी चाहिए, यह लोकतांत्रिक दृष्टि से अपेक्षित है। इस मांग के प्रति केंद्र ने उदारता दिखाई है और प्रधानमंत्री की इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के आठ राजनीतिक दलों के करीब 14 नेता शामिल हुए हैं। इनमें से ज्यादातर नेता वे हैं, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान नजरबंद कर दिया गया था। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के बाद निस्संदेह यह एक बड़ी सकारात्मक राष्ट्रीय घटना है, जिसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे। अब जमीन के साथ जमीर को भी खुला राष्ट्रीयता का, शांति का एवं विकास का परिवेश मिलेगा।

कश्मीरी नेताओं के साथ दिल्ली में आयोजित यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जायेगी कि इसमें स्वयं प्रधानमंत्री मोदी उपस्थित थे, वे चाहते हैं कि अब घाटी का राजनीतिक भविष्य तय हो, विकास एवं शांति का शंखनाद बजे। जरूरी नहीं है कि एक ही बैठक में शांति एवं विकास वाले जम्मू-कश्मीर का नया रोडमैप तय हो जाए, बैठकों का दौर जारी रहना चाहिए, संवाद की प्रक्रिया सतत गतिमान रहनी चाहिए। यह एक शुभ संकेत है कि कश्मीरी नेताओं को केंद्र सरकार पर भरोसा हुआ है और तभी यह महत्वपूर्ण बैठक सफलतापूर्वक एवं सकारात्मक परिवेश में संपन्न हो पायी है। अब असली चुनौती केंद्र सरकार के सामने है कि वह घाटी के दिग्गज नेताओं को कैसे विकास और लोकतंत्र की प्रक्रिया में व्यस्त रखती है। यह बातचीत प्रमाण है, नजरबंदी, हिंसा, विघटन और आतंकवाद के भयानक दौर से हम निकल आए हैं। इसे कायम रखने के लिये निरन्तर प्रयासों की जरूरत है। ऊंची कूद के लिए आवश्यक है प्रशिक्षण, न कि ऊंचाई के मापदण्ड (बार) को नीचे करना। लक्ष्य नजदीक नहीं आया करता, लक्ष्य के नजदीक जाने का हौसला लक्ष्य को नजदीक ले आता है। व्याप्त अनगिनत समस्याएं काश्मीर में भय का रूप लेती रही हैं। वहां व्यक्ति बौना होता रहा और परछाइयां बड़ी। अन्धेरों से तो हम अवश्य निकल आएं है और अंधेरों के बाद प्रकाश आता है यह भी देखा है। पर व्यवस्थाओं में और शासन संचालन में अन्धापन न हो अन्यथा वह निश्चित ही गढ्ढे मंे गिराने की ओर अग्रसर करता रहेगा। जैसाकि इस प्रांत की अब तक तकदीर बना रहा है। वहां स्वार्थ एवं तथाकथित विघटनकारी राजनीति ने जनम दिया है वैचारिक विरोध को, स्वार्थ मदान्धता को, अराष्ट्रीयता को, पदलोलुपता को एवं भ्रष्ट आचरण को। अब जबकि सरकार चुनने एवं बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ होने जा रही है तो राजनेताओं को बेदाग चरित्र एवं राष्ट्रीयता का प्रमाण देना ही होगा। क्योंकि भारतीय जनता ने बार-बार अपने जनादेश में स्पष्ट कर दिया कि जो हाथ पालकी उठा सकते हैं वे हाथ अर्थी भी उठा सकते हैं।

भाजपा की मोदी सरकार राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिये प्रतिबद्ध एवं संकल्पबद्ध है। यही कारण है कि उसने जम्मू-कश्मीर की स्थिति को बदलने के लिये साहसिक कदम उठाये, उन कदमों को उठाये हुए करीब दो साल हो चुके हैं और इस बीच कोई ऐसी बड़ी नकारात्मक एवं हिंसक घटना नहीं हुई है, जिससे लगे कि देश का यह अटूट क्षेत्र गलत दिशा में जा रहा है। अब कश्मीर के नेता भी अपने देश एवं अपने प्रांत को लेकर चिंतित दिखाई देने लगे हैं। अलगाववाद की राह पर चलने और लोकतंत्र की धारा से अलग रहने का उन्होंने भारी नुकसान सहा है, ऐसे में, सब चाहेंगे कि घाटी में शुद्ध राजनीतिक प्रक्रिया फिर शुरू हो। यह बहुत अच्छी बात है कि बैठक में पहले केंद्र सरकार ने एक प्रस्तुति के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर में कैसे विकास कार्य चल रहे हैं, कैसे शांति के फूल खिल रहे हैं। केंद्र सरकार अगर विकास की पहल से भी घाटी के नेताओं को जोड़ सके, तो अच्छा होगा। राजनीतिक स्तर पर फिर से राज्य का दर्जा पाने के लिए, कश्मीर की तकदीर एवं तस्वीर बदलने के लिये तो कश्मीर के नेताओं को केंद्र सरकार के प्रति गंभीरता का प्रदर्शन करना ही होगा। केंद्र सरकार ने पहले भी संकेत दिए हैं कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा। अगर राज्य का दर्जा लौटाने के आग्रह के साथ घाटी के नेता अग्रसर हुए हैं, तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन अगर उनकी मंशा पड़ोसी मुल्क की वकालत करना या भारत के मामलों में उसे जबरन हिस्सेदार बनाना हो तो यह संभव नहीं होगा, दुर्भावना होगी। संवाद की राह काफी समय बाद प्रशस्त हुई है, अतः इसके प्रति गंभीरता एवं ईमानदारी बरतना जरूरी है।

एक शुभ शुरुआत में कोई अवरोध न आए, अशालीन, हल्की या किसी उग्र टिप्पणी से उसे आहत करने की कोई चेष्ठा न हो। आने वाले समय में ऐसी बैठकों का विस्तार हो, ज्यादा से ज्यादा संबंधित दलों-पक्षों को साथ लिया जाए और शांति-विकास की पहल हो, इसी में देशहित है, इसी में सुन्दर राष्ट्र की परिकल्पना का आकार निहित है, इसी से लोकतंत्र भी फलता-फूलता रहेगा। आदर्शों एवं शुभ-संकल्पों की केवल पूजा न हो बल्कि उसके लिये कसौटी हो। आदर्श हमारे शब्दों में ही नहीं उतरे, जीवन का अनिवार्य हिस्सा बने। जम्मू-कश्मीर ने राष्ट्रीयता के ईमान को, कत्र्तव्य की ऊंचाई को, संकल्प की दृढ़ता को और शांति-सद्भावना को सुरक्षित रखने, विकास के नये पद्चिन्ह स्थापित करने के लिये आह्वान किया है, आओ, फिर एक बार आगे बढ़े, कश्मीर में शांति, लोकतंत्र एवं विकास की गंगा को प्रवहमान करें। अब कश्मीर के भाल पर दूषित राजनीति के कंचन मृग और कठिनाइयों के रावणों को रूप बदल-बदलकर नहीं आने देना है और नेतृत्व वर्ग को भी अब शाखाओं पर कागज के फूल चिपकाकर भंवरों को नहीं भरमाने देना है।

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