गडकरी की सीख क्या शीतल  फुहार कर सकेगी?

-भूपेन्द्र गुप्ता

इंदौर के एक समारोह में मध्य प्रदेश की विभिन्न परियोजनाओं की घोषणा करते हुए देश के
भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने जो भाषण दिया वह अत्यंत प्रेरक था और उन्होंने मध्य
प्रदेश के मुख्यमंत्री को जो सीख दी वह तो और भी चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा कि नेता वही है
जो 25 साल आगे की सोचता है कल्पना करता है और योजना बनाता है। ब्यूरोक्रेसी के भरोसे काम
करने वाले लोग नेता नहीं होते।नौकरशाही को उन्होंने पैच वर्क करने वाला बताया और कहा कि वह
आज के आगे कुछ भी नहीं सोचती। उनकी इस सीख में शायद उनकी राजनीति छोड़ने का वैराग्य
भाव शामिल रहा हो, किंतु जो प्रदेश येन केन प्रकारेण केवल चुनाव जीतने को ही अपना लक्ष्य मानता
हो वहां ऐसी सीखें गुदगुदाती जरूर हैं।
इसी संदर्भ को आगे बढाते हुये गडकरी ने ग्रीन हाइड्रोजन, एलएनजी इलेक्ट्रोलाइजर के
तकनीकी पहलुओं पर चर्चा की जो उन्हें जिज्ञासु के रूप में स्थापित करती हैं और सुनने में अत्यंत
प्रिय हैं। किंतु दुर्भाग्य है कि गडकरी को छोड़कर उनकी पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता 25 साल
आगे देखने वाले प्रत्येक नेता की कुटिल आलोचना में अपनी शान समझता है ।क्या भारतीय जनता
पार्टी के उन लोगों को गडकरी के वक्तव्य से प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए जो रात दिन 50 साल आगे
देखने वाले जवाहरलाल नेहरू,लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी,और मनमोहन सिंह को पानी
पी पीकर कोसते हैं। गडकरी जिस इलेक्ट्रोलाइजर और ग्रीन हाइड्रोजन की चर्चा आज 2022 में
आधुनिक तकनीकी के नाम पर कर रहे हैं वह तकनीकी तो पंडित जवाहरलाल नेहरु ही ला चुके थे ।
जिन्होंने सदियों के पार देखकर भारत के भविष्य का रूपांकन किया।
देश में लगभग 245 करोड़ रुपए से भाखड़ा नांगल बांध बनाया गया जिसकी कीमत आज की मुद्रा
में लगभग 17 हजार करोड़ से अधिक होगी ।कौन जानता था कि इस बांध से देश की आगे की सदी
चमकदार होने वाली थी यह बांध मूलतः तो अंग्रेजों की परिकल्पना थी किंतु अंग्रेज इसे नहीं बना
सके क्योंकि उस समय उनके पास पैसों की कमी थी। किंतु जवाहरलाल नेहरू ने इस बांध को

बनाया जबकि देश के पास इतने पैसे ही नहीं थे लेकिन उन्होंने अभावपूर्ण परिस्थितियों में भी इस
बांध को बनाने का बीड़ा उठाया। कल्पना कीजिए कि जब यह बांध बनाया गया तब इससे 1325
मेगावाट बिजली पैदा होती थी। जबकि देश में बिजली की इतनी खपत ही नहीं थी तब सोचा गया
कि इस बिजली का क्या किया जाएगा। तब नेहरू जी ने नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड की कल्पना
की ।जिसमें 155 मेगावाट बिजली खपाई जा सकती थी।इससे बनने वाली खाद को बनाने में
अमोनिया की आवश्यकता पड़ती थी जब अमोनिया बनाते थे ,तो उसमें से हाइड्रोजन और आक्सीजन
सेपरेट करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर तकनीकी लाई गई जिससे लगभग 15 किलो लीटर हाइड्रोजन उस
समय पैदा होती थी ।उस हाइड्रोजन को संचित किया जाता था । जब हाइड्रोजन की अधिक मात्रा
मिलने लगी तो सोचा गया कि इसका क्या उपयोग करेंगे तब हमारे वैज्ञानिकों ने हैवी वाटर बनाने
की परिकल्पना की ।तब नंगल की इस हाइड्रोजन से हैवी वाटर बनाया जाने लगा। सामान्यता पानी
100 डिग्री पर उबलने लगता है किंतु हैवी वाटर लगभग 600 डिग्री तक भी तापमान को सहन कर
लेता है जिससे यह एटॉमिक पावर प्लांट को ठंडा करने में उपयोग आने लगा तकनीकी से तकनीकी
कैसे बढ़ती है और दृष्टि संपन्न नेता कितनी दूर का सोचते हैं भाखड़ा उसकी जीवंत मिसाल है। कोई
सोच भी नहीं सकता कि सिंचाई के लिए बनाया गया भाखड़ा नंगल बांध अंततः परमाणु बिजली घरों
के लिए हैवी वाटर भी दे सकेगा। जब यह बांध बन रहा था तब विपक्ष के नेता भाषण देते थे कि
पानी को मथकर नेहरू बिजली निकाल लेंगे तो पानी की ताकत चली जायेगी।
तकनीकि और परंपरागत सोच का यह टकराव नया नहीं है यह सनातन है।इंदिरा गांधी जब
चांद पर जाने की सोचती थीं तब यथास्थितिवादी कहते थे धरती तो संभाल लो।जब राजीव गांधी
21वीं सदी की बात करते थे तब खिल्ली उड़ाओ गैंग उन्हें कम्प्यूटर व्वाय बताती थी। लेकिन समय
ने सिद्ध किया कि वे लोग अपने समय से आगे थे।
ऐसी बंजर जमीन में जहां कमलनाथ की लाजिस्टिक एप्रोच,आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस और
एनर्जी स्टोरेज की कल्पना की खिल्लियां उड़ाईं गईं हों वहां गडकरी की सीख कोई शीतल बारिस कर
सकेगी? यह समय तय करेगा। समय अपनी तरह चलता है अगर मध्यप्रदेश की भाजपा को गडकरी
का भाषण जरा भी छू सका तो कल्याण होगा।भगवान करे ऐसा न हो कि पुरातनपंथी गमछावादी
गडकरी को ही खारिज कर दें। जिसके पास दृष्टि है उसका स्वागत करने की आदत हमें डालनी
पड़ेगी,फिर चाहे वे गडकरी हों या कमलनाथ।

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