काश नेता जी भी ज्योति बुझाने वालों को माफ कर पायें…

-भूपेन्द्र गुप्ता

गोल पोस्ट बदलने में माहिर देश की ताजा राजनीति ने फिर से नेताजी सुभाष
की प्रतिमा के और अमर जवान ज्योति को बुझाकर अन्य ज्योति में विलय
करने जैसे मुद्दों को सामने लाकर नई बहस खड़ा करने की कोशिश की
है।जिससे आगामी चुनाव में सामयिक मुद्दों पर चर्चा टाली जा सके। सभी
जानते हैं कि किंग जार्ज की मूर्ति जब 1968 में इंडिया गेट से हटाई गई थी तो
माना गया था कि साम्राज्यवाद के प्रतीकों का यहां पर रहना उचित नहीं है।
किंग जार्ज की मूर्ति यहां से हटाकर कोरोनेशन पार्क में लगा दी गई थी। तब
यहां पर लगाने के लिए महात्मा गांधी की मूर्ति बनवाई गई थी। जो आज भी
भारत सरकार के आर्काइ्व्स में रखी है ।जब इस मूर्ति को लगाने का विषय उठा
तो बृहद विमर्श के बाद यह तय हुआ कि चूंकि वह छतरी कॉलोनियल
आर्किटेक्चर का प्रतीक है इसलिए वहां गांधी जी की मूर्ति लगाना ठीक नहीं
होगा।
1996 में नरसिम्हा राव सरकार में पुनः इस छतरी के उपयोग पर
विचार हुआ और ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की एक समिति बनाई गई। देश के कई
वास्तुविदों से प्रस्ताव मांगे गए और अंततः फिर यह तय हुआ कि इस
कॉलोनियल आर्किटेक्चर के नीचे किसी राष्ट्रभक्त की मूर्ति लगाना उचित नहीं
होगा जिसने ब्रिटिश कॉलोनियलिज्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी हो। तत्कालीन
सेनाध्यक्ष जनरल मलिक से भी विमर्श हुआ और उन्होंने भी वार मेमोरियल इस

स्थान पर ना बनाने की राय दी और यह प्रस्ताव फिर से ठंडे बस्ते में चला
गया । एक बार पुनःअटल जी की सरकार में भी यह फाइल खुली और अंततः
इसी निष्कर्ष के साथ ठंडे बस्ते में डाल दी गई। हर बार जो तर्क सामने आया
वह यही कि कॉलोनियल रिजीम के प्रतीकों के साथ आजादी का संघर्ष करने
वाले महानायकों का मेल नहीं कराया जा सकता ।किंतु अब मोदी सरकार ने
फैसला किया है कि इस छतरी के नीचे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सैल्यूट
लगाते हुए प्रतिमा लगाई जाए। बार-बार कॉलोनियल आर्किटेक्चर के नाम पर
महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित करने का फैसला रद्द किया गया जबकि
उनकी मूर्ति तैयार हो चुकी थी। अब उसी छतरी के नीचे राष्ट्रभक्त नेताजी
सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई जा रही है जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की
सेल्यूट की मुद्रा है क्या यह उचित होगा? नेताजी ने तो इस साम्राज्य के खिलाफ
सशस्त्र लड़ाई लड़ी थी।
इस छतरी के सामने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गये सैनिकों
का स्मारक है जिसमें भारतीय सैनिकों के लड़ाई में शामिल होने का नेताजी ने
विरोध किया था।वह मेमोरियल भी कोलोनियल आर्किटेक्चर है। क्या नेताजी की
भव्य प्रतिमा उनके गौरवपूर्ण योगदान को प्रतिष्ठित करने के लिये अन्यत्र नहीं
स्थापित की जानी चाहिये,जहां बड़ा स्थान हो और जहां साम्राज्यवादी सरकार
की छाया न हो।
वर्तमान सरकार सेन्ट्रल विस्टा बनाने के लिये तो इसे कोलोनियल आर्किटेक्चर
और साम्राज्यवाद का प्रतीक मानती है किंतु राष्ट्रभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस
को उसी साम्राज्यवादी छतरी के नीचे खड़ा करने में उन्हें गुरेज नहीं है।एक ही
स्थान और दो दर्शन।
बंगलादेश की आजादी का युद्ध दुनिया के सबसे चमत्कारी शौर्य का
प्रतीक है जब हमने 13 दिन के छोटे से युद्ध में न केवल पाकिस्तान के दो

टुकड़े कर करोड़ों बंगालियों को नरसंहार से बाहर निकाला बल्कि दुनिया के
युद्ध इतिहास का सबसे बडा आत्मसमर्पण करवाया।जिसमें दुश्मन की 93 हजार
सेना ने अपने जनरल (नियाजी) सहित हथियार डाले।इस महान युद्ध की याद
में अमर जवान ज्योति की स्थापना 1972 में की गई थी। अमर ज्योति का अर्थ
ही है कि ज्योति और शहादत दोंनों अमर हैं।बांगला देश की आजादी के 50साल
अभी दिसंबर में ही पूरे हुये हैं और इस महान जीत की याद में स्थापित यह
अमर जवान ज्योति अपनी स्थापना के 50 साल पूरे करने के चंद हफ्ते पहले
ही बुझा दी या स्थानांतरित कर दी गई है।जैसे उसकी अमरता ही समाप्त कर
दी गई हो।ऐसे मेमोरियल अगर विलय या स्थानांतरित किये जा सकते होते तो
कई शहरों में शौर्य स्मारक न बनाये जाते ।क्या भारत के इस ऐतिहासिक युद्ध
की स्मृतियों पर ऐसा कुठाराघात शहीदों को विस्मरण करना नहीं होगा?इस पर
कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने ट्वीट किये हैं,जिन्हें यह फैसला आहत करने
वाला लगा ,क्या देश इस पर विमर्ष करेगा?
जब यह सब घटनाक्रम घट रहा है तब एक तीसरा फैसला भी सरकार की
मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है। ‘बीटिंग द रिट्रीट ‘ कार्यक्रम में आर्मी बैंड
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पसंदीदा गीत की धुन बजाता रहा है,जिसे 2020 में
धुनों की सूची से हटाने की कोशिश हुई थी किंतु जबरदस्त आलोचना के कारण
2021में फिर शामिल कर बजाई गई जिसे फिर 2022की सूची से हटा दिया गया
है।
गांधी का चश्मा उतारकर उनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष स्मृतियों को धूमिल
करने के ये प्रयास बताते हैं कि गोडसे का मंदिर बनाने की लालसायें राजनीति
पोषित हैं।गांधी और भारत के गौरव पूर्ण इतिहास पर क्या सिर्फ इसलिये पर्दा
डाला जा सकता है कि उस इतिहास में एक पार्टी की कोई भागीदारी नहीं
है।जिस क्षण गांधी का पसंदीदा गीत ‘एबाईड विद मी’ बीटिंग द रिट्रीट से हटाया
जा रहा है उसी समय सिंगापुर की सरकार गांधी मेमोरियल हाल का लोकार्पण

कर रही है।क्योंकि गांधी अब वैश्विक व्यक्तित्व है,उसे हीन भावनायें न मिटा
सकतीं हैं न छोटा कर सकतीं हैं।

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