कोरोना महामारी ने हमारी जीवनशैली की दिशाओं में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है। कोरोना वायरस के कारण हमारी आदतें और हमारी दिनचर्या काफी हद तक बदल गई है, जिसे हम हर दिन अनुभव भी कर रहे हैं और जी भी रहे हैं। इतिहास की कई बड़ी आपदाओं के बाद सामाजिक, आर्थिक समझ और जीवनशैली में व्यापक बदलाव देखे गए हैं लेकिन कोरोना संकट के दौर ने तो सबकुछ ही बदल दिया है, हमारे खानपान और जीवन के तौर-तरीकों से लेकर हमारी कार्यशैली एवं सोचने की दिशाएं सब कुछ बदल गयी है। आने वाले समय में इन बदलावों का बड़ा असर पड़ने वाला है। हो सकता है कि इस दौरान हमारी बदली आदतें हमारे जीवन का स्थाई हिस्सा बन जाए।
नयी बनती दुनिया में एक नया आर्थिक नजरिया पनपेगा। अब तक पूंजीवादी नजरिया उद्यमिता की वकालत करता रहा है यानी वह व्यक्ति को हीरो बनाता रहा है। कभी यह नहीं बताया गया कि हर सफलता के पीछे कई लोगों की मेहनत और सहयोग होता है, कोई अकेला कुछ नहीं करता। कोरोना वायरस अब यह समझ पैदा करेगा कि हर काम की कीमत समझी जाए। ऐसे कई कामों की जो अब तक गरीब लोग या औरतें कर रही थीं, अब उनके श्रम का मूल्यांकन करना होगा। अब पुरुषों की मानसिकता बदलने की उम्मीद भी की जा सकती है, हालांकि कितनी बदलेगी और वो महिलाओं के काम की कीमत कितनी समझ पाएंगे, यह वक्त बताएगा। कुल मिलाकर, साथ रहने और एक दूसरे के काम का सम्मान करने की भावना विकसित होने की उम्मीद जगी है। दुनिया में भले ही बाहर जाकर रेस्टॉरेंट में खाने का चलन पूरी तरह खत्म न हो लेकिन सीमित हो ही जाएगा। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि डिजिटल मेन्यू, रेस्तरां के किचन की लाइव स्ट्रीमिंग और वेटरों के चेहरों पर मास्क जैसे कई बदलाव दिखाई देने वाले हैं। शिक्षा में व्यापक बदलाव होंगे। दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते स्कूलों के बंद करने पर जोर हर जगह दिखा। टीचरों और छात्रों के बीच ऑनलाइन संपर्क बढ़ा।
शासन-प्रशासन एवं उनकी नीतियों में भी व्यापक बदलाव होंगे। उम्मीद की जा रही है कि भारत रक्षा पर जितना खर्च करता है, अब स्वास्थ्य पर भी करने लगेगा। ऐसा बहुत कुछ होगा, जो आमूलचूल बदलाव लगेगा क्योंकि अब सबसे बड़ा दुश्मन महामारी को समझने की समझ बनेगी। सरकारी स्वास्थ्य तंत्र को विकसित किया जाएगा क्योंकि प्राइवेट सेक्टर इस महामारी के दौर में नाकाफी साबित हुआ है। वहीं देश में, डॉक्टरों और नर्सों की संख्या बढ़ाने पर जोर रहेगा। दवाओं और जरूरी मेडिकल उपकरणों का उत्पादन देश में करने जैसे कई बदलावों की उम्मीद की जा रही है क्योंकि अब संकट के समय में दूसरे देशों पर निर्भर रहने की आदत छोड़ना होगी, क्योंकि इस आदत ने हमें गहरी चोंटें दी है।
कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान लोगों के पहनावे में भी बड़े बदलाव देखने को मिले। लोग लग्जरी कपड़ों के बजाय पाजामा जैसे जरूरत के कुछ ही सेट कपड़ों में कई दिन गुजारने के आदी हो रहे हैं। विदेश यात्राओं, पर्यटन, पार्टी और आउटिंग जैसे बहुत से बदलाव समाज देखेगा। शादी-विवाह जैसे सामाजिक रीति-रिवाजों एवं पर्व संस्कृति में भी बदलाव आयेगा।
सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन के मुताबिक मई 2020 के अंत तक दुनिया की ज्यादातर एयरलाइन्स दीवालिया हो जाएंगी। अगर आप कोविड 19 के बाद दफ्तर जाएंगे तो बहुत कुछ बदला हुआ होगा। बिल्डिंगों के डिजाइन से लेकर बैठक व्यवस्था और व्यवहार तक बहुत कुछ। इन बड़े बदलावों के बावजूद सभी चाहते हैं कि जीवन पूर्ववत संचालित हो। कोरोना की आक्रामकता से उपरत होते हुए एक ऐसी मानवीय संरचना की आवश्यकता है जहां इंसान और उसकी इंसानियत दोनों बरकरार रहे। इसके लिये मनुष्य को भाग्य के भरोसे न रहकर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। इंसान का अपना प्रिय जीवन-संगीत भले टूट रहा है। वह अपने से, अपने लोगों से और प्रकृति से अलग हो रहा है। उसका निजी एकांत खो रहा है और रात का खामोश अंधेरा भी। इलियट के शब्दों में, ‘‘कहां है वह जीवन जिसे हमने जीने में ही खो दिया।’’ फिर भी हमें उस जीवन को पाना है जहां इंसान आज भी अपनी पूरी ताकत, अभेद्य जिजीविषा और अथाह गरिमा और सतत पुरुषार्थ के साथ जिंदा रह सके। इसी जिजीविषा एवं पुरुषार्थ के बल पर वह चांद और मंगल ग्रह की यात्राएं करता रहा है। उसने महाद्वीपों के बीच की दूरी को खत्म किया है। कहीं न कहीं इंसान के पुरुषार्थ की दिशा दिग्भ्रमित न हो है कि मनुष्य के सामने हर समय अस्तित्व का संघर्ष कायम बना रहे हंै, इसके लिये प्रयास करना होगा। हालांकि इस संघर्ष से ही उसको नयी ताकत, नया विश्वास और नयी ऊर्जा मिलेगी, जो जीवन के अंधेरों को उजालों में बदलेगी।
इंसान को स्वार्थी नहीं परोपकारी भी बनना होगा। उसे क्रूरता छोड़कर दयालु बनना होगा। लोभी व लालची बनने के नुकसान देखें हैं अब उदार व अपरिग्रह बनकर जीवन की दिशाओं को नियोजित करना होगा। कोरोना महामारी में भी उसकी चतुराई, उसकी बुद्धिमता, उसके श्रम और मनोबल ने निराशाओं को घनघोर किया है। इस सबके बावजूद जरूरत है कि इंसान का पुरुषार्थ उन दिशाओं में अग्रसर हो जहां से उत्पन्न सद्गुणों से इंसान का मानवीय चेहरा दमकने लगे। इंसान के सम्मुख खड़ी शिक्षा, चिकित्सा, जीने की मूलभूत सुविधाओं के अभाव की विभीषिका समाप्त हो। वह जीवन के उच्चतर मूल्यों की ओर अग्रसर हो।
मनुष्य को अपना प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए। किसी काम में सफलता मिलेगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। भविष्य में क्या होने वाला है, सब अनिश्चित है। यदि कुछ निश्चित है तो वह है व्यक्ति का अपना पुरुषार्थ। यह आवश्यक नहीं है कि सफलता प्रथम प्रयास में ही मिल जाए। कोरोना से पीड़ित मानवता को उस शिशु की भांति अभी चलना सीखना होगा। चलने के प्रयास में वह बार-बार गिरता है किंतु उसका साहस कम नहीं होता। गिरने के बावजूद भी प्रसन्नता और उमंग उसके चेहरे की शोभा को बढ़ाती ही है। जरा विचार करें उस नन्हें से बीज के बारे में जो अपने अंदर विशाल वृक्ष उत्पन्न करने की क्षमता समेटे हुए है। आज जो विशाल वृक्ष दूर-दूर तक अपनी शाखाएं फैलाएं खड़ा है, जरा सोचो कितने संघर्षों, झंझावतों को सहन करने के बाद इस स्थिति में पहुंचा है। सर्वस्व समर्पण और अपार प्रसव पीड़ा सहन करने के बाद ही कोई नारी मातृत्व का गौरव प्राप्त करती है। यदि लक्ष्य स्पष्ट हो,
उसको पाने की तीव्र उत्कष्ठा एवं अदम्य उत्साह हो तो अकेला व्यक्ति भी बहुत कुछ कर सकता है। विश्वकवि रविंद्रनाथ टैगोर का यह कथन कितना सटीक है कि अस्त होने के पूर्व सूर्य ने पूछा कि मेरे अस्त हो जाने के बाद दुनिया को प्रकाशित करने का काम कौन करेगा। तब एक छोटा-सा दीपक सामने आया और कहा प्रभु! जितना मुझसे हो सकेगा उतना प्रकाश करने का काम मैं करूंगा। हम देखते हैं कि आखिरी बूंद तक दीपक अपना प्रकाश फैलाता रहता है। जितना हम कर सकते हैं उतना करते चले। आगे का मार्ग प्रशस्त होता चला जाएगा। किसी ने कितना सुंदर कहा हैµजितना तुम कर सकते हो उतना करो, फिर जो तुम नहीं कर सको, उसे परमात्मा करेगा।
जीवन की नई शुरुआत हो या उसे आगे बढ़ाने का मन, या फिर नये रिश्तों एवं जीविका के साधनों की ओर कदम बढ़ाने की चेष्टा, बहुत आसान नहीं होता। पर, आसान तो कुछ भी नहीं होता। बड़ी सफलताओं के लिये बड़ी कोशिश करनी होती है। फिर दुख, पीड़ाएं कितनी भी बड़ी हो, हम उबर सकते हैं, क्योंकि हम अपनी सोच एवं संकल्प से ज्यादा मजबूत होते हैं। जो व्यक्ति आपत्ति-विपत्ति से घबराता नहीं, प्रतिकूलता के सामने झुकता नहीं और दुःख को भी प्रगति की सीढ़ी बना लेता है, उसकी सफलता निश्चित है। ऐसे धीर पुरुष के साहस को देखकर असफलता घुटने टेक देती है। इसीलिए तो इतरा पुत्र महीदास एतरेय ने कहा हैµ‘‘चरैवेति-चरैवेति’’ अर्थात् चलते रहो, चलते रहो, निरंतर श्रमशील रहो। किसी महापुरुष ने कितना सुंदर कहा हैµअंधकार की निंदा करने की अपेक्षा एक छोटी-सी मोमबत्ती, एक छोटा-सा दिया जलाना कहीं ज्यादा अच्छा होता है। प्रे