अल कायदा नेता अयमन अल-जवाहिरी का मारा जाना आतंकवाद के खिलाफ विश्वस्तरीय अभियानों के इतिहास में एक बड़ी कामयाबी इसलिये है कि आतंकवाद ने दुनिया में भय, क्रूरता, हिंसा एवं अशांति को पनपाया है। जवाहिरी जैसे हिंसक, क्रूर, उन्मादी एवं आतंकी लोगों ने शांति का उजाला छीनकर अशांति का अंधेरा फैलाया है। दरअसल, वह इतना खुंखार एवं बर्बर इंसान था कि उसको मार गिराना अंसभव-जैसा ही था। ऐसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी गिरोह के शीर्ष नेताओं तक पहुंचना और दूसरे देश की सीमा में उन्हें मार गिराना साहस एवं शौर्य का काम है। इससे पहले दुनिया भर में अन्य आतंकवादी संगठनों के मामले में भी इस तरह की जटिलताओं का अनुभव दुनिया की महाशक्तियां करती रही है।, इसलिए जवाहिरी को उसके घर में घूस कर मारना अमेरिका की एक बड़ी उपलब्धि है।
दुनिया में अब आतंकवाद पर काबू पाने की दृष्टि से वातावरण बन रहा है, जवाहिरी का खात्मा उसी दिशा में एक बड़ी सफलता है। अमेरिका में विश्व व्यापार केंद्र पर हमले में हुई तबाही ने अमेरिका के महाशक्ति होने पर ही प्रश्न लगा दिया था। उस घटना ने आतंकवाद की जड़े मजबूत होने को ही उजागर किया था। उस घटना ने अमेरिका की शक्ति को गहरी चुनौती दी। इसीलिये उस घटना के दो दशकों बाद जवाहिरी का मारा जाना एक बेहद अहम कामयाबी है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुद यह बताया कि शनिवार को उनके निर्देश पर काबुल में ड्रोन हमले में अल कायदा सरगना अल-जवाहिरी मारा गया। इस अभियान के क्रम में पहले हर पल के लिए कार्ययोजना तैयार की गई, नजदीक से जवाहिरी के ठिकाने और उसकी गतिविधियों पर नजर रखी गई और खास बात यह रही कि हमले के लिए ड्रोन और लेजर जैसी आधुनिकतम तकनीक का सहारा लिया गया। यही वजह रही कि इस अभियान के दौरान किसी भी अन्य व्यक्ति की मौत नहीं हुई और ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।
11 नवंबर, 2001 को हुए उन हमलों की याद आज भी बहुत सारे लोगों को डराती है, कंपकंपाती है और यही वजह है कि विश्व में जवाहिरी के मारे जाने को आतंकी हमले के पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक और कदम के तौर पर देखा जा रहा है। इससे दुनिया ने राहत की सांस ली है। यह एक जगजाहिर तथ्य है कि अनेक देशों में सख्ती की वजह से आतंकवादी संगठनों की हरकतों को सीमित किया गया है, मगर आज भी दुनिया अलग-अलग स्तर पर आतंकवाद के कई खतरों का सामना कर रही है, जूझ रही है। विशेषतः भारत इन्हीं आतंकवादी घटनाओं का लम्बे समय से शिकार रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अफगानिस्तान में अब तालिबान का शासन है और वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद के यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस हमले के लिए क्या संबंधित देश की सहमति की औपचारिकता हासिल की गई थी। मगर आतंकवाद दुनिया भर के लिए जिस स्वरूप में एक जटिल समस्या बन चुका है, उसमें इस पर काबू पाने और खत्म करने के लिए अगर कोई ठोस पहलकदमी होती है तो उससे शायद ही किसी देश को असहमति होगी।
आज अफगानिस्तान खुद भी आतंकवाद से जूझ रहा है। इस्लामिक कट्टरपंथी ताक़तें पूरी दुनिया में अमन और भाईचारे का माहौल बिगाड़ने का काम कर रही हैं। जबकि इस्लाम के नाम पर दुनिया के हर कोने में हो रहे आतंकवादी हमलों एवं वारदातों के विरुद्ध इस्लाम के अनुयायियों के बीच से ही आवाज़ उठनी चाहिए। पाकिस्तान जैसे इस्लाम को धुंधलाने वाले राष्ट्र की गुमराह करने वाली बातों से दूरी बनाई जानी चाहिए। उसके द्वारा मज़हब के नाम पर किये जा रहे ख़ून-खराबे का खंडन करना चाहिए था। उसे सच्चा इस्लाम न मानकर कुछ विकृत मानसिकता का प्रदर्शन माना-बतलाया जाना चाहिए था।
विश्व के आतंकवादी संगठनों ने इनदिनों अफगानिस्तान को अपना केन्द्र बनाया है। इसलिये आतंकवाद के खतरे की संभावनाओं को देखते हुए भारत ने अफगानिस्तान पर दबाव बढ़ा दिया है। भारत ने अफगानिस्तान से साफ कहा है कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने दे। साथ ही, अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई भी करे। दरअसल, आतंकवाद को लेकर भारत की चिंता बेवजह नहीं हैं। भारत ने लंबे समय से आतंकवाद के खतरे को झेला है एवं कश्मीर की मनोरम वादियांे सहित भारत के भीतरी हिस्सों ने तीन दशक से भी ज्यादा समय तक सीमा पार आतंकवाद झेला है।
मानवता की रक्षा एवं आतंकवाद मुक्त दुनिया की संरचना की कोशिश होनी चाहिए। यह इसलिये अपेक्षित है कि किसी भी जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोगों को बंदूकों के सहारे ही जिंदगी न काटनी पडे़। महिलाओं की तौहीन एवं अस्मत न लुटी जाये। कोई भी देश दुनिया में नफरत और हिंसा बढ़ाने की वजह न बने। कुल मिलाकर, मानवीयता, उदारता और समझ की खिड़की खुली रहनी चाहिए, ताकि इंसानियत शर्मसार न हो, इसके लिये समूची दुनिया को व्यापक प्रयत्न करने होंगे। इसके साथ इस्लाम की ऐसी शक्तियां जो आतंकवाद के खिलाफ है, उनको भी सक्रिय होना होगा। क्योंकि उनके धर्म एवं जमीन को कलंकित एवं शर्मसार करने का षडयंत्र हो रहा है।
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ही यह आशंका बढ़ती जा रही है कि यह मुल्क अब आतंकियों का गढ़ बन जाएगा। ये आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं। तालिबान का उदय एक मजहबी संगठन के तौर पर हुआ था, लेकिन इसकी बुनियाद तो आतंकी संगठनों पर ही टिकी है। अमेरिका तो तालिबान को आतंकी संगठन कहता भी है। दो दशक पहले भी जब अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम हुआ था, तो इसके पीछे अलकायदा की ताकत थी। इससे उसकी आर्थिक दशा बदतर हो चुकी है और राजनीतिक अस्थिरता कायम है। इसलिए इस समस्या से निपटना खुद उसके लिए भी जरूरी है। जरूरत इस बात की है कि इस समस्या की जड़ों पर चोट किया जाए। तालिबान भारत-विरोधी है, पाकिस्तान अपने मनसूंबों को पूरा करने के लिये तालिबान की इस विरोधी मानसिकता का उपयोग करते हुए अफगानिस्तान की भूमि से भारत पर आतंकवादी निशाने साधेगा। तालिबान ने विगत दशकों में एकाधिक आतंकी हमले सीधे भारतीय दूतावास पर किए हैं। कंधार विमान अपहरण के समय तालिबान की भूमिका भारत देख चुका है। इन स्थितियों को देखते हुए आतंकवाद को पनपने की आशंकाएं बेबुनियाद नहीं है।
दरअसल, जवाहिरी भी विश्व व्यापार केंद्र पर हुए हमले का एक मुख्य आरोपी था और ओसामा बिन लादेन के बाद अल कायदा का दूसरे नंबर का नेता था। स्वाभाविक ही, उसके मारे जाने की घटना को वैश्विक आतंकवाद का पर्याय बन चुके ऐसे संगठनों की गतिविधियों को खत्म करने के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। बड़ा प्रश्न है कि एक जवाहिरी नहीं बल्कि आतंकवाद को पोषण देने वाले सभी जवाहिरियों का ऐसा ही हश्र होना चाहिए। दुनिया की महाशक्तियों को एकजूट होकर आतंकवाद के खिलाफ शंखनाद करना होगा। सबसे पहले दुनिया के आतंकवादियों को अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाना बनाने से रोकना होगा। क्योंकि ये आतंकवादी खुंखार नेता एवं आतंकवादी संगठन पैसे लेकर सभ्य देशों को परेशान करने और निशाना बनाने का ही काम करेंगे? जो देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तालिबान की पीठ पीछे खड़े हैं, उनकी भी मानवीय जिम्मेदारी बनती है कि वे दुनिया को अशांति, हिंसा, साम्प्रदायिक कट्टरता एवं आतंकवाद की ओर अग्रसर करने वाली इस कालिमा को धोये।